Akbar | Biography, History, & Achievements

Akbar | Biography, History, & Achievements:

 

Akbar

 

अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 ई. में हुमायुँ के प्रवास के दौरान अमर कोट में राणा वीरसाल के महल में हुआ था

अकबर की माँ का नाम हमीदा बानो बेगम था अकबर के बचपन का नाम बदरूद्दीन था

अकबर का राज्यभिषेक 1556 ई. में बैरम खां के संरक्षण में कलानोर में हुआ था 1560 ई. तक अकबर ने बैरम खां के संरक्षण में कार्य किया और बैरम खां को वकील नियुक्त किया गया

1560 से 1564 तक का जो शासन काल है उसे पेटीकोट शासन के नाम से जाना जाता है क्योंकि उस समय अकबर की धाय माँ महामअनगा उनका शासन में विशेष दखल था

 

पानीपत का द्वतीय युध्द

सिहासन पर बैठते ही अकबर ने बैरम खां की सहायता से 1556 ई. मे पानीपत के द्वतीय युध्द में हेमू विक्रमादित्य को हराया

1561 में अकबर ने बैरम खां के संरक्षण से मुक्त होकर अपने पहले सैन्य अभियान में मालवा के शासक बाज बहादुर को पराजित किया

 

हल्दीघाटी का युध्द

1576 ई. के हल्दीधाटी के प्रसिध्द युध्द में अकबर के सेनापति राजामान सिंह ने मेवाड के शासक महाराजा प्रताप को पराजित किया

फतेहपुर सीकरी की स्थापना

1571में अकबर ने आगरा से 36 किलो मी. दूर फतेहपुर सीकरी नामक नगर की स्थापना की और उसमें प्रवेश के लिए बुलंद दरवाजा बनवाया बुलंद दरवाजा अकबर द्वारा गुजरात जीतने के पर बनवाया

 

फतेहपुर सीकरी में इबादत खाने की स्थापना

अकबर ने फतेहपुर सीकरी में धार्मिक परिचर्चा हेतु इबादत खाने की स्थापना 1575 में की जहाँ पर शुरू में तो सिर्फ मुस्लिम धर्म के अनुयायी आते थे किंतु बाद में 1578 से सभी धर्मो के अनुयायी आने लगे

 

दक्षिण विजय

दक्षिण विजय के अंतर्गत अकबर ने खानदेश, दौलताबाद, अहमद नगर, असीरगढ आदि को जीता

अकबर की धार्मिक नीति

राजपूत राजकुमारियों से विवाह किया और उन्हें अपने हरम में हिन्दू धर्म अपनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की। इन राजपूत रानियों का अकबर की धार्मिक नीति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसके अतिरिक्त अकबर की उदार धार्मिक नीति के निर्माण में सूफी धर्म और भक्ति आन्दोलन का भी पर्याप्त योगदान था। अकबर विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों को एकता के सूत्र में बाँधने का इच्छुक था। वस्तुतः वह राजनीतिक सत्ता के साथ-साथ धार्मिक सत्ता की भी स्थापना करना चाहता था।अकबर जिज्ञासु प्रवृत्ति का चिन्तनशील व्यक्ति था। इसी आध्यात्मिक चेतना के फलस्वरूप उसने हिन्दुओं से लिया जाने वाला जज़िया (धार्मिक कर) हटा दिया। तीर्थयात्रा पर से भी प्रतिबन्ध हटा लिया तथा युद्ध बन्दियों को मुसलमान बनाना निषिद्ध घोषित कर दिया। उसने आदेश दिया

“विजयी सेना का कोई भी सैनिक साम्राज्य के किसी भी भाग में इस प्रकार का कार्य न करे और स्वतन्त्रतापूर्वक बन्दियों को अपने कुटुम्बियों के पास जाने दे।”

अकबर ने अनेक मुस्लिम सन्तों से सम्पर्क किया। उसने अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति की सन्तुष्टि के लिए 1575 . में इबादतखाने की स्थापना की। इस इबादत खाने में विभिन्न धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद होता था। प्रारम्भ में दो वर्ष तक इसमें केवल मुस्लिम धर्माचार्य एकत्र होते थे, जिनकी बैठक  (गुरुवार) को होती थी। कालान्तर में अकबर ने शान्ति व सच्चे धर्म की खोज के उद्देश्य से इबादतखाने में हिन्दूजैनईसाईपारसी आदि सभी धर्मों के आचार्यों को आमन्त्रित किया। परन्तु किसी भी धर्म का आचार्य उसे ईश्वर के अस्तित्व का ज्ञान कराने में सफल नहीं हो सका।

दीनइलाही का अर्थ

इबादतखाने के माध्यम से हिन्दू धर्माचार्यों, जैन साधुओं, पारसी सन्तों एवं ईसाई मत के विद्वानों से अकबर को जो अच्छी बातें ज्ञात हुईं, उनके आधार पर  वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि मौलिक रूप से सभी धर्म एक हैं और सभी का ध्येय एक है। धार्मिक क्षेत्र में प्रमुख स्थान प्राप्त करने के लिए उसने 1589 ई. में फैजी द्वारा रचित खुतवा पढ़ा। मजहर‘ नामक प्रपत्र के द्वारा सम्राट को इस्लाम सम्बन्धी विवादों में अन्तिम निर्णय का अधिकार प्राप्त हो गया। इतिहासकार लेनपूल ने लिखा है|

दीनइलाही के सिद्धान्त

अकबर की विभिन्न धर्मों के सिद्धान्तों और व्यावहारिक पक्षों को जानने में गहरी रुचि थी। वह फतेहपुर सीकरी के शान्त वातावरण में अन्य धर्मों के विद्वानों और सन्तों से धार्मिक चर्चा किया करता था। अकबर ने सभी धर्मों के समन्वयवादी दृष्टिकोण को अपनाकर एक नया धर्म चलाने का विचार बनाया। इसे व्यावहारिक रूप देने के लिए उसने 1582 ई. में नया धर्म ‘दीन-ए-इलाही’ चलाया। वस्तुतः वह कोई नवीन धर्म नहीं था, अपितु अकबर के विचारों एवं विश्वासों का समूह था।

अकबर के काल में रची गई रचना

जैन विद्वान परम सुंदर ने ‘अकबरशाही’, ‘श्रृंगार दर्पण’ तथा सिध्दचंद्र ने ‘भानुचंद्र चरित’ की रचना की है

अबुल फजल ने ‘आईने-अकबरी’ और ‘अकबरनामा’ की रचना की

अकबर ने महाभारत का फारसी भाषा में ‘रज्जा’ नाम से अनुवाद कराया

पंचतंत्र का अनुवाद अबुल फजल ने ‘अनुवाद-ए-सुहैरी’ नाम से किया

अकबर के दरबार के नौ रत्न / उपाधियाँ

अकबर के दरबार में नवरत्न नाम से नौ प्रसिध्द व्यक्ति थे पहले बीरबल, मानसिंह, फैजी, टोडरमल, अब्दुल रहीम खानेखाना, (यह बैरम खां के पुत्र थे बैरम खां की मृत्यु के बाद बैरम खां की विधवा से अकबर ने शादी की तथा अब्दुल खानेखाना को खानेखाना की पद्वी तक पहुँचाया ) अबुल फजल, भगवान दास, तानसेन, मुल्ला दो प्याजा|  अकबर के दरबारियों में रसोई घर के प्रधान हकीम हुमाम को उसकी इमानदारी के लिए नवरत्न में शामिल किया गया।

अकबर ने संगीत सम्राट तानसेन को कण्ठाभरण वाणी-विलास की उपाधि से सम्मानित किया।

अकबर सहित संपूर्ण मुगल साम्राज्य की राजभाषा ‘फारसी’ थी।

अकबर द्वारा भगवानदास को अमीर-उल-उमरा तथा बीरबल को कविप्रिय की उपाधियाँ प्रदान की गईं।

अकबर ने ‘नरहरि’ को महापात्र, ‘अब्दस्समद’ को शीरी कलम तथा ‘मुहम्मद हसैन कश्मीरी’ को जड़ी कलम की उपाधियों से सम्मानित किया।

तानसेन को अकबर ने कण्ठाभरवाणी की उपाधि दी तानसेन का मकबरा ग्वालियर में स्थित है तांसेन का मूल नाम रामतनु पांडे था

 

अकबर की शासन व्यवस्था

अकबर एक चतुर प्रशासक था। विभिन्न विभागों को सटीक जिम्मेदारियाँ दी गईं और उन्हें ठीक से व्यवस्थित किया गया। राज्य को सुबाहों में विभाजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक का प्रशासन राज्यपालों द्वारा किया जाता था। गवर्नर रक्षा और सैन्य उद्देश्यों के लिए सेना रखते थे। परन्तु सम्पत्ति पर कर वसूल करने का अधिकार अन्य अधिकारियों को दे दिया गया। अकबर की नीति समय-समय पर अधिकारियों का स्थानांतरण करने की भी थी। उन्होंने अधिकारियों को उनके पद के आधार पर निश्चित वेतन दिया। इस प्रकार, उन्होंने किसी भी अधिकारी या गवर्नर को बहुत अधिक शक्तिशाली नहीं होने दिया और अपने साम्राज्य से अलग नहीं होने दिया और अपने साम्राज्य की अखंडता सुनिश्चित की।

उन्होंने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया और विधवा पुनर्विवाह को वैध बनाया। उन्होंने विवाह की आयु भी बढ़ा दी।

अकबर ने प्रशासन की मनसबदारी प्रणाली शुरू की। इस प्रणाली के तहत, मनसबदार या अधिकारी/रईस होते थे जिन्हें जागीरें (भूमि राजस्व असाइनमेंट) दी जाती थीं। एक मनसबदार का पद उसके अधीन सैनिकों की संख्या निर्धारित करता था। उनका वेतन नकद में दिया जाता था और उपाधि वंशानुगत नहीं थी। राजा के कहने पर एक मनसबदार को नागरिक और सैन्य कर्तव्य निभाने पड़ते थे।

अकबर द्वारा साम्राज्य की भू-राजस्व प्रणाली में सुधार किया गया और दहसाला प्रणाली को अपनाया गया। कहा जाता है कि अकबर के प्रमुख दरबारियों में से एक राजा टोडर मल इस प्रणाली के साथ आए थे जिसमें राजस्व पिछले दस वर्षों की औसत उपज का 1/3 तय किया गया था। बाढ़ या सूखे के कारण फसल खराब होने पर किसानों को छूट दी जाती थी।

अकबर के शासनकाल के अधिकांश समय उसकी राजधानी आगरा थी। फ़तेहपुर सीकरी और लाहौर ने भी राजधानियाँ के रूप में कार्य किया था।

अकबर की कई पत्नियाँ थीं और उनमें हिंदू राजपूत राजकुमारियाँ भी थीं। इन हिंदू रानियों को अपनी आस्था का पालन करने की अनुमति दी गई।

अकबर अपनी धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता था और यहाँ तक कि वह हिंदू त्योहारों में भी भाग लेता था। उन्हें अन्य धर्मों के बारे में जानना पसंद था और उनके दरबार में विभिन्न धर्मों के बारे में चर्चा होती थी। यहां तक ​​कि उन्होंने वर्ष के कुछ निश्चित दिनों में वध और मांस की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया।  उसने अपने साम्राज्य में शिया-सुन्नी विवादों पर प्रतिबंध लगा दिया। अकबर ने आस्था की परवाह किए बिना प्रतिभा और कला को संरक्षण दिया।

उन्होंने अपनी शिक्षाओं के आधार पर एक नए धार्मिक दर्शन की स्थापना की और इसे दीन-इलाही कहा। लेकिन अकबर के समय के बाद इसकी स्वाभाविक मृत्यु हो गई।

अकबर की जीवनी को अकबरनामा कहा जाता है और इसे फ़ारसी में अबुल फज़ल ने लिखा था।

सम्राट अकबर के दरबार में प्रतिभाशाली लोग थे और उनमें से सबसे प्रमुख को नवरत्न (नौ रत्न) कहा जाता था। उनमें से कुछ बीरबल, राजा टोडल मल, अबुल फज़ल, तानसेन आदि थे।

सेना में, अकबर ने कई नवीनताएँ लाईं और इस संबंध में ओटोमन्स और यूरोपीय लोगों से मदद मांगी। उन्होंने अपनी सेना में आग्नेयास्त्रों के उपयोग को प्रोत्साहित किया। उन्होंने तोपों और किलेबंदी का भी आधुनिकीकरण किया और युद्ध में हाथियों का इस्तेमाल किया।

उनकी सरकार ने व्यापारियों को प्रोत्साहित किया और उनकी रक्षा की। अकबर का शासनकाल आर्थिक और धार्मिक सद्भाव से चिह्नित है और इसलिए उसे ‘अकबर महान’ कहा जाता है।

 

अकबर की मृत्यु

1605 में पेचिश के बाद हुई बीमारी से अकबर की मृत्यु हो गई। उसकी कब्र आगरा के सिकंदरा में एक मकबरे में है। उसने 49 वर्ष तक शासन किया था।उसके बाद उसका पुत्र जहाँगीर गद्दी पर बैठा। अकबर की मृत्यु 1605 में हुई अकबर के मकबरे का निर्माण जहांगीर द्वारा आगरा के निकट सिकंदरा नामक स्थान पर कराया गया

 अकबर की धार्मिक नीति

अकबर की धार्मिक नीति गैर इस्लामीयों के प्रति सहिष्णुता (सहन करने वाला) की नीति थी। उसने दिल्ली सल्तनत कालीन सुल्तानों और अपने परवर्ती मुगल सम्राटों के प्रति कठोर क्रूर शत्रुता पूर्ण नीति का शीघ्र ही परित्याग कर दिया। वह प्रथम राष्ट्रीय शासक था जो अपने साम्राज्य की न्यू हिंदू तथा मुस्लिम दोनों संप्रदायों की सद्भावना पर रखना चाहता था। उस की धार्मिक नीति ने देश में शांति समृद्धि और एकता के नए युग का सूत्रपात किया। उसने हिंदू मुस्लिम जनता को एक सामान्य रंगमंच प्रदान करने के लिए दीन ए इलाही नामक संघ या धर्म की स्थापना की।

अकबर के धार्मिक विचारों का विकास

अकबर के धार्मिक विचारों का विकास एकाएक नहीं हुआ। निसंदेह हुआ प्रारंभ में अकबर कट्टर परंपरावादी मुसलमान रहा। 1562 ई. से 1582 ई.  तक उसके धार्मिक विचारों में निरंतर परिवर्तन आता रहा। उसके धार्मिक विचारों की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन इस प्रकार से किया जा सकता है।

 

  1. परंपरावादी मुसलमानप्रारंभ में अकबर परंपरावादी मुसलमान था वह राज्य के प्रमुख काजी अब्दुल नबी खां का बहुत आदर करता था। वह रहस्यवादी विचारों में मगन रहता था और अपनी सफलताओं के लिए खुदा का शुक्रिया अदा करने के लिए अनेक बार प्रातः काल आगरा के महल के सामने एक पुरानी इमारत के समक्ष पत्थर पर बैठकर प्रार्थना करता था और धार्मिक और रहस्यावादी विचारों में खोया रहता था।

 

  1. धार्मिक नीति से संबंधित प्रारंभिक कार्यअकबर ने 1562 ईस्वी में धार्मिक सहनशीलता की नीति को अपनाना शुरू किया। उस समय वह केवल 20 वर्ष का ही था। उसने फरमान जारी कर के युद्ध में लड़ने वाले स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाने और युद्ध बंदियों को इस्लाम में दीक्षित करना वर्जित कर दिया। 1563 ई. में हिंदुओं पर तीर्थ यात्रा कर और 1564 ई. में जजिया कर समाप्त कर दिया। उसने एक गैर मुसलमानों के लिए राज के नियुक्तियां खोल दी और इसी वर्ष आमेर के राजा भारमल की पुत्री मनीबाई से विवाह किया। वह आप भी नियम पूर्वक नमाज पढ़ता था और सलीम चिश्ती जैसे संतों की मजार पर जाया करता था।

 

  1. इबादतखाने की स्थापनाअकबर ने अपने धार्मिक विचारों में उदार दृष्टिकोण के निरंतर विकास के साथ-साथ जहां एक और अनेक उधार विचार वाले जवानों को एकत्र किया वहीं उसने 1575 ईसवी में अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना बनावाया। अकबर ने इस प्रार्थना भवन में विशेष धर्मगुरुओं, रहस्यवादियों और उस समय के प्रसिद्ध विद्वानों को आमंत्रित कर उनके साथ आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा की। पहले या इबादत खाना केवल मुसलमानों के लिए ही खुला था और मुलायम ने आपस में ही झगड़ा शुरू कर दिया था इसलिए उसने इबादत खाने के द्वार गैर मुस्लिम विद्वानों और विचारकों के लिए खोल दिए। अब इबादत खाने में सभी धर्मों- हिंदू, जैन, फारसी और ईसाई तथा नास्तिकों ने भी हिस्सा लेना शुरू किया।

 

  1. खुत्बा पढ़ना और भूमि अनुदान देनाअकबर ने 16 जून 1579 ई. में फतेहपुर सीकरी में जमा मस्जिद के इमाम को हटाकर स्वयं खुदबा पढ़ा। इस खुतबे की रचना फांसी के प्रसिद्ध कवि फैजी ने की थी। उसने हिंदू जैन और फारसी संस्थाओं को भूमि अनुदान देना शुरू किया। वैसे भारत के बाहर अन्य इस्लामी देशों में शासकों के लिए खुत्व पटना कोई नई बात नहीं थी लेकिन यहां कट्टर मुसलमानों ने इसे नई परंपरा समझा और अकबर के विरुद्ध इस्लाम विरोधी कार्य करने की अफवाहें फैलाई गई।

 

  1. मजहर जारी करनाअकबर कट्टरपंथियों के सामने नहीं झुका। उसने बुलाओ से निपटने के लिए अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अगस्त सितंबर 1579 ई. में मजहर की घोषणा की। इस घोषणा पर प्रमुख उलेमाओं के हस्ताक्षर थे। इस घोषणा में कहा गया कि यदि कुरान की व्याख्या करने वाले समर्थ विद्वानों में परस्पर मतभेद होगा तो अकबर को यह अधिकार है कि वह उनमें से किसी भी व्यक्ति को स्वीकार कर सकता है। जो की बहुसंख्यक जनता और देश के हित में हो। इसमें यह भी कहा गया कि अगर अकबर कुरान का अनुसरण करते हुए कौम तथा देश के हित में कोई नई आज्ञा जारी करें तो उसे सभी को स्वीकार करना होगा। इस तरह अकबर स्वयं प्रधान धर्म कार्य या धार्मिक कानून बनाने वाला नहीं बना बल्कि उसने कुरान की व्याख्या करने का अंतिम निर्णय स्वयं प्राप्त कर लिया।

 

  1. मजारों की यात्रा का त्यागअकबर ने 1579 ई. के बाद किसी संत के मजार की यात्रा नहीं की। उसने इन यात्राओं को संकुचित दृष्टिकोण बहूदेववादि और मूर्तिपूजा के समीप मानकर छोड़ा।

 

  1. व्यक्तिगत भेंटों की चर्चाओं का प्रारंभअकबर ने इबादत खाने में हुए धार्मिक वाद विवाद की कड़वाहट और उसमें प्रत्येक धर्म के प्रतिनिधियों द्वारा दूसरे धर्म को नीचा बताने के प्रयासों को देखकर 1582 ईस्वी में इबादतखाने की चर्चाएं बंद कर दी। उसने विभिन्न धर्मों के नेताओं संतों और योगियों से निजी तौर पर भेंट की। उदाहरण के लिए, उसने हिंदू धर्म की शिक्षाओं और सिद्धांतों को जानने के लिए पुरुषोत्तम और देवी को आमंत्रित किया। उसने जैन को समझने के लिए कठियावाड़ केसे प्रमुख जैन संत हरीविजय सूरी को अपने दरबार में 2 वर्षों तक सम्मान दिया।
  2. नए धर्मों की स्थापनाइसमे एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कीदीनइलाही क्या है – अकबर ने विभिन्न धर्मों के नेताओं से बातें करके अनुभव किया कि नामों और स्वरूपों की अनेकता के बावजूद ईश्वर एक है। अकबर धार्मिक विवादों के कारण बहुत दु:खी था क्योंकि इससे राष्ट्र की प्रगति और सद्भावना के वातावरण को बनाने में बाधा हो रही थी। इसलिए उसने इस समस्या का हल निकाला कि कोई ऐसा धर्म होना चाहिए जिसमें सभी धर्मों की अच्छाइयां तो हो किंतु किसी धर्म को दोष ना हो। इसलिए अकबर ने दिन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की।

अकबर इस धर्म के माध्यम से भारत के विभिन्न संप्रदाय के अनुयायियों में सामंजस्य उत्पन्न करना चाहता था। लेकिन ना तो उसने इस धर्म के प्रचार में कोई रुचि ली और ना ही किसी पर इसका अनुयाई बनने का दबाव डाला है। उसकी मृत्यु के बाद तुरन्त समाप्त हो गया।

अकबर की धार्मिक नीति की प्रमुख विशेषताएं

  • अकबर ने एक फरमान जारी करके युद्ध बंदियों को इस्लाम में दीक्षित करना वर्जित कर दिया।
  • उसने 1563 ई. में प्रयाग और बनारस जैसे तीर्थ स्थानों पर स्नान करने पर भी समाप्त कर दिया।
  • उसने 1564 ईस्वी में जजिया कर को समाप्त कर दिया। इस्लामी नियमों के अनुसार मुस्लिम राज्य में गैर मुसलमानों को जजिया कर देना पड़ता था।
  • अकबर ने गैर मुसलमानों के लिए राजकीय सेवा की नियुक्तियां 1562 ईस्वी में ही खोल दी थी।
  • अकबर ने अनेक हिंदू राजाओं एवं उच्च घरानों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए। उदाहरण के लिए आमेर के राजा भारमल की छोटी बेटी मनीबाई से विवाह किया। जैसलमेर और बीकानेर के शासकों ने भी अकबर के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए।
  • अकबर ने सामान्य हिंदू जनता और मुसलमानों के साथ एक जैसा व्यवहार किया। मैं अपने मंदिर बनाने पुराने मंदिरों की मरम्मत कराने आदि की पूरी छूट दी। वे अपने सभी त्यौहार एवं रीति रिवाज पूरी स्वतंत्रता के साथ मना सकते थे।
  • अकबर ने अपनी हिंदू पत्नियों को महल के अंदर अपनी इच्छा अनुसार पूजा अर्चना करने के पूर्व छूट दे दी थी।
  • उसने स्वयं अनेक हिंदू रीति-रिवाजों को अपनाया। वह तिलक लगाया करता था और हिंदू त्योहारों होली दीपावली तथा रक्षाबंधन आदि में भाग लिया करता था।
  • उसने सभी धर्मों के विद्वानों का समान आदर किया और लगभग 1575 ई. में अपनी नई राजधानी फतेहपुर सीकरी में इबादतखाने की स्थापना की। इस इबादतखाने में उसने विभिन्न धर्मों के विशेष गुरुओं, रहस्यवादियो और दरबार के विद्वानों को आमंत्रित किया। यह चर्चाएं 1582 ई. तक ही चल सकी।
  • उसने हिंदू और मुसलमानों को एक समान धर्म देने के लिए तौहीद ए इलाही नामक नया धर्म चलाया।
  • उसने हिंदू धर्म में फैली बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। और सती प्रथा का विरोध किया और विधवा विवाह का समर्थन किया।
  • उसने हिंदुओं के साथ-साथ शियाओं, सूफियों, जैनियों, ईसाइयों और महादवियों के साथ भी समानता और उदारता का व्यवहार किया।

अकबर की धार्मिक नीति के परिणाम या प्रभाव

अकबर की धार्मिक नीति का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि अधिकांश हिंदू व मुसलमान मुगल साम्राज्य के समर्थक बन गए। उन्होंने परस्पर शत्रुतू का दृष्टिकोण त्याग दिया और वे मुगल सम्राट को अपनी सैनिक और प्रशासनिक सेवाएं तथा सहयोग देने लगे। इन सभी के सहयोग से अकबर को सामराज्य विस्तार में अनेक विजय प्राप्त हुईं और विद्रोह को दबाने में सफलता मिली।

अकबर की धार्मिक नीति ने देश में शांति सहयोग और सद्भावना को प्रोत्साहन दिया। जिससे व्यापार और वाणिज्य को पनपने में मदद मिली।

अकबर की धार्मिक नीति ने सामाजिक सुधार में योगदान दिया। हिंदुओं में सती प्रथा जैसी आमानवीय बुराइयों को समाप्त किया। विधवाओं को पुनर्विवाह करने की मान्यता मिली। अकबर ने मदिरा बिक्री को सीमित करने का प्रयास किया। स्वयं मांस को खाना छोड़ कर समाज में शाकाहारी भोजन को प्रोत्साहन दिया।

अकबर की धार्मिक नीति के करण देश ने सांस्कृतिक समन्वय को प्रोत्साहन मिला।‌ उसने हिंदू और मुसलमानों को परस्पर नजदीक लाने के लिए प्रयास किया। उसने संगीत मूर्ति कला और हिंदू वस्तुकला शैली को प्रोत्साहन दिया। उसकी धार्मिक नीति के कारण राज्य धर्मनिरपेक्ष बन सका और सांस्कृतिक एकता को प्रोत्साहन मिला और दिन ए इलाही नामक धर्म का जन्म हुआ और शीघ्र ही वह समाप्त हुआ।

 अकबर कालीन कला

अकबर ने चित्रकारी का नया विभाग बनाया इसका प्रधान ख्वाजा अब्दुस्समद को नियुक्त किया व उसे शीरी कलम की उपाधि प्रदान की अकबर के दरबार में 17 या 15 चित्रकारों में से 13 हिंदू थे

अकबर ने सिकंदरा में अपना मकबरा बनवाया, आगरा में लाल किले का निर्माण कराया, फतेहपुर सीकरी में दीवाने आम, दीवाने खास, जोधाबाई का महल, बुलंद दरवाजा, शेख सलीम चिश्ती के मकबरे आदि का निर्माण कराया

इमारतें 

अकबर ने आगरे के किले के भीतर 500 इमारतों का निर्माण कराया। अकबर-कालीन उत्कृष्ट स्थापत्य के कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नवत हैं –

हुमायूँ का मकबरा – दिल्ली

लाल किला – आगरा

अकबरी महल, जहाँगीरी महल – आगरा

लाहौर का किला- लाहौर

मुहाफिज खाना – फतेहपुर सीकरी

दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास – फतेहपुर सीकरी

खजाना महल, पंचमहल – फतेहपुर सीकरी

महारानी मरीयम का महल – फतेहपुर सीकरी

जोधाबाई का महल, बीरबल का महल फतेहपुर सीकरी

सम्राट का शयन-कक्ष एवं पुस्तकालय – फतेहपुर सीकरी

बुलंद दरवाजा – फतेहपुर सीकरी

जामा मस्जिद – फतेहपुर सीकरी

सलीम चिश्ती की दरगाह – फतेहपुर सीकरी

चालीस खंभों का महल – इलाहाबाद

अकबर ने सुदृढ़ दुर्गों का निर्माण अटक एवं इलाहाबाद में भी करवाया।

बुलंद दरवाजे की ऊँचाई पास की भूमि से 134 फीट और उसकी सीढ़ियाँ 42 फीट हैं। कुल मिलाकर यह 176 फीट ऊँचा है।

अकबरकालीन प्रमुख चित्रकार/कलाकार

प्रमुख विदेशी चित्रकार-अब्दुस्समद, मीर सयद अली, फारूख बेग, खशरू, कुवीज एवं जमशेद आदि।

प्रमुख देशी चित्रकार-यशवंत,बसावन, सावलदास, ताराचंद, जगन्नाथ लाल, केशू, मुकुंद तथा हरिवंश आदि

अकबर के दरबार में 100 उच्च कोटि के तथा अनेक निम्न कोटि के चित्रकार थे।

अकबर कालीन 36 प्रसिद्ध गायकों के नाम उल्लिखित हैं, जिनमें बाजबहादुर, तानसेन, रामदास एवं बैजू बावरा आदि अत्यंत प्रसिद्ध गायक हुए।

 QUICK REVISION FACTS

  • 23 नवंबर, 1542 ई० को अमरकोट में राणा वीरसाल के महल में मुगलवंश के महानतम शासक जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर का जन्म हुआ।
  • पंजाब के कलानौर नामक स्थान पर 14 फरवरी, 1556 ई० को अकबर के संरक्षक बैरम खाँ ने अकबर का राज्याभिषेक कराया।
  • राज्याभिषेक के पश्चात अकबर को जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर बादशाह गाजी के नाम से संपूर्ण भारत का सम्राट घोषित किया गया।
  • अकबर ने हेमू को पानीपत के दूसरे युद्ध में 1556 ई० में पराजित कर आगरा एवं दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
  • 1556-60 ई० की अवधि तक अकबर का संरक्षक रहने के उपरांत बैरम खाँ की मक्का की तीर्थयात्रा के दौरान पाटन नामक स्थान पर हत्या कर दी गई।
  • महाराणा प्रताप का 1599 ई० में निधन हो गया। अकबर ने ग्वालियर (1559 ई०), जौनपुर (1560 ई०) एवं चुनार (1561 ई०) को जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
  • उपरोक्त के अतिरिक्त अकबर की विजयों में मालवा (1561-72ई०), गुजरात (1572-84ई०), बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा (1574-76 ई०), काबुल (1585 ई०), कश्मीर (1586 ई०), सिंध (1591 ई०), बलुचिस्तान (1595 ई०), कन्धार (1590), राजस्थान (1562-76ई०), कालिंजर  (1569ई०), गोंडवाना (1564ई०),अहमदनगर (1600 ई०) आदि प्रमुख थे।
  • गुजरात विजय के दौरान अकबर को पुर्तगालियों से मिलने एवं पहली बार समुद्र देखने का अवसर मिला।
  • दीन-ए-इलाही नामक एक नवीन धर्म का प्रतिपादन अकबर ने किया जिसमें सभी धर्मों के अच्छे तत्वों का समावेश था। परंतु, यह धर्म भी अशोक के धम्म की तरह अधिसंख्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में असफल रहा।

अकबर द्वारा किये गये कुछ महत्वपूर्ण कार्य

दास-प्रथा की समाप्ति- 1562 ई०,

हरमदल से मुक्ति – 1562 ई०,

तीर्थयात्रा कर की समाप्ति- 1563 ई०,

‘जजिया’ की समाप्ति- 1564 ई०

फतेहपुर सिकरी स्थापित हुई तथा राजधानी आगरा से यहाँ स्थानांतरित हुई-1571 ई०,

इबादतखाना की स्थापना- 1575 ई०,

सभी धर्मों के लोगों को इबादतखाने में प्रवेश करने की अनुमति- 1578 ई०,

मजहर घोषित हुआ- 1579 ई०,

दीन-ए-इलाही की घोषणा- 1582 ई०,

इलाही संवत् की शुरूआत- 1583 ई०,

राजधानी का लाहौर स्थानांतरण-1585 ई०,

बीरबल दीन-ए-इलाही का अनुयायी बनने वाला एकमात्र हिंदू था।

जैन आचार्य हरिविजय सूरी को अकबर द्वारा जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की गई।

1580 ई० में अकबर के दीवान टोडरमल द्वारा दहसाला बंदोस्त व्यवस्था लागू की।

प्रसिद्ध चित्रकार अब्दुसमद एवं संगीतकार तानसेन अकबर के दरबार के रत्नों में थे।

प्रशासन में अकबर ने मनसबदारी प्रथा लागू की।

सूफी संत शेख सलीम चिश्ती अकबर के समकालीन थे।

अकबर ने अबुल फजल के बड़े भाई फैजी को राजकवि के पद पर आसीन किया। वह तौहिद-ए-इलाही (दीन-ए-इलाही) का एक बड़ा समर्थक था।

अकबर ने टोडरमल को ‘राजा’ की उपाधि से विभूषित किया एवं अपने प्रशासन में प्रधानमंत्री (1582 ई० में) के पद पर नियुक्त किया।

टोडरमल ने दीन-ए-इलाही को मानने से इंकार कर दिया। अबुल फजल सूफी संत शेख मुबारक का पुत्र था। वह अकबर का मुख्य सचिव रहा, वह अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध था।

 ऐतिहासिक सृजन

अकबरनामा (अबुल फजल)

‘आइना-ए-अकबरी'(अबल फजल)

अकबरनामा(फैजी).अहसान-उत-त्वारीख (रुमल)

मुंतखाब-उत-त्वारीख (बदायूंनी)

तबकात-ए-अकबरी (निजामुद्दीन बख्शी)

तारीख-ए-मुहम्मद (हाजी मुहम्मद आरिफ)

लुबउत-त्वारीख (मीर यहया)

तारीख-ए-अलफी (मुल्ला अहमद)

तोहफा-ए-अकबरशाही (अब्बास खाँ शेरवानी)

नफाइस-उल-मासिर (अल्लाउद्दौल काजवीनी)।

अकबरकालीन अनुवाद विभाग 

मुस्लिम शासन में ऐतिहासिक एवं साहित्यिक रचनाओं के अनुवाद की दृष्टि से फिरोज तुगलक का शासनकाल महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। परतु, इस क्षेत्र में अकबर का योगदान सवाधिक प्रशंसनीय है। उसने एक अनुवाद विभाग  की स्थापना की तथा इसमें विभिन्न भाषाओं की उत्कृष्ट रचनाओं का फारसी में अनुवाद करने के लिए विद्वानों की एक टोली नियुक्त की जिन्होंने निम्न रचनाएँ की –

महाभारत का अनुवादित ग्रंथ रज्मनामा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

रज्मनामा की रचना नकीब खाँ, मुल्ला अब्दुल कादीर, सुल्तान थानेसारी, मुल्ला शेरी एवं फैजी के संयुक्त सर्वेक्षण में हुआ।

रामायण का अनुवाद नकीब खाँ, मुल्ला अब्दुल कादिर तथा सुल्तान थानेसारी द्वारा किया गया।

अथर्ववेद का फारसी अनुवाद हाजी इब्राहिम सरहिंदी ने किया।

गणित की संस्कृत भाषा में रचित उत्कृष्ट रचना लीलावती का फारसी अनुवाद फैजी ने किया।

ज्योतिष की प्रसिद्ध रचना ताजक (संस्कृत) का फारसी अनुवाद मुहम्मद खाँ ने किया

फारसी भाषा में अनुवादित कुछ और ग्रंथ एवं उनके अनुवादक निम्नवत हैं,

हरिवास-मुल्ला शेरी |

नलदमयंती-फैजी।

सिंहासन बत्तीसी-मुल्ला अब्दुला कादिर।

पंचतंत्र-बदायुनी।

राजतरंगिणी-अबूल फजल।

बाइबिल-बदायुनी।

फारसी-संस्कृत शब्दकोष-कृष्णदास।

अबल फजल ने फारसी में कालिया दमन का अनवाद आधार दानिश के नाम से किया।अकबर के दरबार में 100 उच्च कोटि के तथा अनेक निम्न कोटि के चित्रकार थे। अकबर कालीन 36 प्रसिद्ध गायकों के नाम उल्लिखित हैं, जिनमें बाजबहादुर, तानसेन, रामदास एवं बैजू बावरा आदि अत्यंत प्रसिद्ध गायक हुए।

1605 ई० में अकबर की मृत्यु हो गयी।

अकबर की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र जहाँगीर का 5 नवंबर, 1605 को आगरा में राज्याभिषेक हुआ।

जहाँगीर का जन्म 30 अगस्त, 1569 को हुआ था।

सरकार का सर्वोच्च पदाधिकारी फौजदार कहलाता था.

वजीर प्रशासनिक मामलों के अतिरिक्त वित्त विभाग भी देखता था. वजीर की स्थिति प्रधानमंत्री जैसी थी.

वजीर अथवा दीवानए-आला की सहायता के लिए अनेक पदाधिकारी नियुक्त किये गए थे, जैसे – दीवान-ए-खालसा (राज्य की भूमि की देखभाल करने वाला), दीवान-ए-तन (सरकारी कर्चारियों के वेतन और जागीर की देखभाल करनेवाला), मुस्तौफी (आय-व्यय का निरीक्षक), वाकया-ए-नवीस (राजकीय फरमानों और दस्तावेजों को सुरक्षित रखनेवाला पदाधिकारी) और मुशरिफ (दफ्तर की देखभाल करने वाला).

लगान वसूली का काम करोड़ी को सौंपा गया. यह व्यवस्था संतोषप्रद नहीं थी इसलिए 1580 ई. में दहशाळा प्रबंध अथवा जाब्ती-व्यवस्था लागू की गई जिसके अनुसार राज्य किसानों से उपज का 1/3 नकद लगान के रूप में लेता था.

लगातार मिल रही जीतों के बीच अकबर को एक बार हार का भी सामना पड़ा. बंगाल, बिहार और उड़ीसा के शासक सुलेमानी कारारानी ने अकबर को हराया था. अकबर इसलिए हारा क्योंकि वह उस समय गुजरात में अपनी जड़ें जमा रहा था.

राज्य की ओर से धार्मिक व्यक्तियों, विद्वानों इत्यादि को वजीफा, इनाम, सुयूरघल अथवा मदादीमशाह के रूप में जमीन दान दी जाती थी.

यदि हत्या की बात की तो जाए, तो अकबर के हाथ भी खून से रंगे थे, चलिए जानते हैं कि उसने किसको किसको खुद टपकाया या कहिये टपकवाया — पहला तो हुआ बैरम खां, फिर अधम खां, अपने मामा ख्वाजा मुअज्जम और कई अन्य कई सगे-सम्बन्धी. (ऐसे में अकबर को आज के जमाने में बाल सुधार गृह में डाल दिया जाता)

मुहतसिब का मुख्य कार्य यह देखना था कि राज्य की जनता नैतिक नियमों का पालन ठीक ढंग से करे.

मीर-ए-आतिश अथवा दारोगा-ए-तोपखाना शाही तोपखाना का प्रधान होता था.

मीर मुंशी का काम बादशाह की आज्ञा और फरमानों को लिखना और उसका उचित प्रसारण करना था.

मालवा में बाजबहादुर को, जौनपुर में अफगानी शेर खां, चुनार में अफगानी शासक आसफ खां, जयपुर में कछवाहा राजपूत, मेड़ता में जयमल, गोंडवाना (मध्य प्रदेश) में रानी दुर्गावती का अल्पव्यस्क पुत्र वीर नारायण को, मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राणा उदय सिंह, रणथम्भौर में हाड़ा राजपूत राजा राय सुरजन, कालिंजर में राजा रामचंद्र, गुजरात में अहमदाबाद में मुजफ्फर खां और अन्य अनेक सरदारों को और खम्बात में मिर्जाओं (मिर्जा के नेता इब्राहीम हुसैन मिर्जा) और पुर्तगालियों को, बंगाल में दाउद को हराया.

बैरम को रास्ते से हटाने में अतका खैल ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिससे वह अकबर को अपने प्रभाव में ले ले और वही हुआ भी.

परगना के शासन की जिम्मेवारी शिकदार, आमिल (मुंसिफ), और क़ानूनगो की थी. इनकी सहायता के लिए फोतेदार (कोषाध्यक्ष) और लेखक भी रहते थे.

धार्मिक क्षेत्र में अकबर का सबसे महत्त्वपूर्ण और विवादास्पद कार्य था तौहीद-ए-ईलाही अथवा दीन-ए-ईलाही की स्थापना की|

दारोगा-ए-डाकचौकी सूचना और गुप्तचर विभाग का प्रधान था.

जून, 1579 में अकबर ने फैजी के सुझाव पर इमाम का पद ग्रहण किया जिससे प्रधान सदर और उलेमा के अधिकार अब अकबर के हाथों में आ गए.

गीता, महाभारत, रामायण, पंचतंत्र, सिहासन बत्तीसी, बाइबल, कुरान इत्यादि का अनुवाद फारसी में हुआ.

कोतवाल, मीरबहार (चुंगी वसूल करने वाला) तथा वाकिया नवीस भी प्रशासन में सहायता पहुँचाते थे.

किसानों के लिए तकावी ऋण की व्यवस्था की गई.

काजी-उल-कजात प्रधान न्यायाधीश था जो पधान मुफ़्ती की सहयोग से न्याय का कार्य देखता था.

कई क्षेत्रों में कंकूत व्यवस्था (किसानों द्वारा पिछले वर्षों में दी गई लगान के आधार पर अनुमानित लगान) प्रचलित थी.

उसने मालवा, जौनपुर, चुनार, जयपुर, मेड़ता, गोंडवाना, मेवाड़, रणथम्भौर, कालिंजर, मारवाड़ (जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर), गुजरात (अहमदाबाद, खम्बात)आदि कई जगहों पर अपने जीत का परचम लहराया.

उसने मनसबदारों की दो श्रेणियाँ बनाई थी – जात और सवार.

इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि जिन परिस्थितियों में अकबर का राज्यारोहण हुआ था, उस समय मुगलों के भारत में अनेक दुश्मन थे, अकबर अगर सभी प्रभावशाली राज्यों पर अपना अंकुश नहीं रखता तो उसके खुद की सत्ता खतरे में पड़ जाती. इसलिए अकबर ने शुरूआती दौर में साम्राज्यवादी नीति को अपनाया.

  • आमिल भूमि-व्यवस्था और लगान-सम्बन्धी कार्य देखता था.
  • अबुलफजल अकबर के दरबार के एक प्रसिद्ध विद्वान् थे जिन्होंने अकबरनामा और आइने-अकबरी की रचना की.
  • अकबर ने सेना का संगठन मनसबदारी व्यवस्था के आधार पर किया था. इस व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक सरदार और सैनिक पदाधिकारी का मनसब (पद) निश्चित किया गया.
  • अकबर ने भूमि और राजस्व-व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार किए थे. अकबर के समय में राज्य की समस्त भूमि खालसा, जागीर, जमींदारी और सुयूरघल अथवा इनाम में विभाजित थीं.
  • अकबर ने खलीफा के सामान स्वयं ही खुतबा पढ़ा और जमींबोस (राजगद्दी के सामने जमीन चूमने की प्रथा) और सिजदा (सम्राट के सामने झुककर अभिवादन करने की प्रथा) की प्रथा आरम्भ की.
  • अकबर ने एक ऐसा सामजिक वातावरण तैयार करने का प्रयास किया जिसमें राज्य की समस्त जनता मिल-जुलकर सुख-शांति से रह सके. ऐसा मुग़ल साम्राज्य की सुरक्षा और स्थायित्व के लिए आवश्यक था. अकबर की यह नीति सुलहकुल के नाम से विख्यात है.
  • अकबर के समय जमीन की चार श्रेणियाँ बनायीं गईं – पोलज, परती, छच्छर और बंजर.
  • अकबर के दरबार में आने-जाने की घोषणा नगाड़ा बजाकर की जाती थी. यह प्रथा चौकी अथवा तस्लीम-ए-चौकी कहलाती थी.
  • अकबर के दरबार में 9 प्रमुख व्यक्ति (नवरत्न) स्थाई रूप से रहते थे जिनमें बीरबल अकबर से अत्यधिक निकट था.
  • अकबर के कार्यों को ध्यान में रहते हुए इतिहासकारों ने उसे एक “राष्ट्रीय सम्राट” (National Monarch) का दर्जा दिया.
  • अकबर के अधीन पाँच प्रमुख मंत्रियों अथवा अधिकारियों का उल्लेख मिलता है – वकील, वजीर अथवा दीवान, सद्र-उस-सद्र, मीर बख्शी और खानसामा (मीर सामाँ).
  • अकबर की सेना में मनसबदारों की सेना के अतिरिक्त अहदी और दाखिली सैनिकों की टुकड़ियाँ भी थीं.
  • अकबर का अंतिम युद्ध खानदेश के साथ हुआ. अली खां जो खुद अकबर का वफादार था, उसका बेटा अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था. इसलिए अकबर ने खानदेश पर आक्रमण करने का निर्णय लिया.
  • 1572-82 का समय अकबर की धार्मिक नीति को समर्पित है. इसी समय इबादतखाना (प्रार्थना भवन) की स्थापना हुई, मजहर की घोषणा हुई और दीन-ए-इलाही अथवा तौहीद-ए-इलाही की स्थापना हुई.
  • 1563 ई. में अकबर ने तीर्थयात्रा कर और 1564 ई. में जजिया कर हटा दिया.

 

Leave a Comment