नागरिकता || Citizenship
नागरिकता क्या है?
नागरिकता एक पहचान है जो हमें विश्व में एक खास स्थान और सुविधाएं प्रदान करता है।
नागरिकता कोई पृथक अवधारणा नहीं है बल्कि ये राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, मूलभूत नागरिक अधिकार, स्वतंत्रता आदि से जुड़ा हुआ है।
भारत का संविधन पूरे भारत वर्ष के लिए एकल नागरिकता की व्यवस्था करता है। प्रत्येक व्यक्ति जो संविधान लागू होने के समय (26 जनवरी 1950) भारत के अधिकार क्षेत्र में निवास करता था और (क) जिसका जन्म में हुआ है या (ख) उसके माता पिता में से एक भारत में जन्म लिया हो या (ग) जो कम से कम पांच वर्षों तक साधारणत् भारत में रहा है, वह भारत का नागरिक हो गया। नागरिकता अधिनियम, 1955 संविधान लागू होने के बाद भारतीय नागरिकता की प्राप्ति, निर्धारण और रद्द करने की संबंध में है।
Note:
वे लोग जो किसी देश के पूर्ण सदस्य होते है एवं राज्य के प्रति जिसकी निष्ठा होती है उसे नागरिक (Citizen) कहा जाता है। ऐसे लोगों को देश के सभी सिविल और राजनैतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। यहीं अधिकार जब किसी दूसरे देश के नागरिक को नहीं मिलता है तो उसे विदेशी (Foreigner) कहते हैं।
ये विदेशी किसी न किसी देश का नागरिक होता है और उस देश के प्रति उसकी निष्ठा होती है इसीलिए उसके पास उस देश का पासपोर्ट होता है।
व्यक्ति को अगर किसी और देश जाना हो तो सामान्यतः पहले उस देश से अनुमति लेनी होती है, जिसे कि वीजा (Visa) कहा जाता है
बगैर या अवैध वीजा एवं पासपोर्ट के अगर कोई किसी और देश में रह रहा है, तो उसे अवैध प्रवासी (Illegal migrant) कहा जाता है।
◾ जो युद्ध, हिंसा, संघर्ष या उत्पीड़न से भाग गए हैं और दूसरे देश में सुरक्षा खोजने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर किसी और देश में शरण लेते हैं, शरणार्थी (Refugees) कहलाते है।
उदाहरण के लिए – भारत में यह नियम है कि यहाँ पैदा होने वाला बच्चा तभी भारत का नागरिक होगा जब या तो उसके माता-पिता दोनों उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो या फिर दोनों में से एक भारत का नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
भारत के संदर्भ में विदेशियों के अधिकार
भारत के संविधान का भाग 3 (अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक) मौलिक अधिकारों के बारे में है। विदेशियों को निम्नलिखित अधिकार भारत में प्राप्त नहीं हैं।
1Article 15- के तहत, धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद के विरुद्ध अधिकार; विदेशियों को प्राप्त नहीं है। यानी कि विदेशियों को इन आधारों पर भेदभाव किया जा सकता है।
2.Article 16- के तहत, लोक नियोजन के विषय में समता का अधिकार; विदेशियों को प्राप्त नहीं है। यानी कि सरकारी नौकरियों में विदेशियों के साथ भेदभाव किया जा सकता है।
3.Article 17- के तहत, स्वतंत्रता का अधिकार भी विदेशियों को प्राप्त नहीं है। यानी कि वो हमारे देश में आकर के स्वतंत्रता की उस स्तर को एंजॉय नहीं कर सकता है जो हम करते हैं।
4.Article 29 and 30- के तहत, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार; विदेशियों को प्राप्त नहीं है। यानी कि इन लोगों की भाषा, लिपि या संस्कृति भारत में बची रहे या नहीं रहे इससे हमारे संविधान को कोई मतलब नहीं है।
इसके अलावे ये लोग मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकते हैं, चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, इन लोगों को टैक्स भी नहीं देना होता है और देश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध भी नहीं रहना होता है।
नागरिकता के संवैधानिक प्रावधान
भारत के संविधान के भाग 2 में नागरिकता का वर्णन है, जिसके तहत अनुच्छेद 5 से 11 तक कुल 7 अनुच्छेद आते है।
अनुच्छेद 5 – संविधान के प्रारम्भ पर नागरिकता
भारत में रह रहे प्रत्येक व्यक्ति भारत के नागरिक तभी होंगे जब वे निम्नलिखित में से कोई एक शर्त पूरा करें – (1) उसका जन्म भारत में होना चाहिए, या (2) उसके माता-पिता में से किसी एक का जन्म भारत में होना चाहिए, या (3) संविधान लागू होने के 5 वर्ष पूर्व से वो भारत में रह रहा हो।
अनुच्छेद 6 – पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
अगर कोई व्यक्ति पाकिस्तान से भारत आया हो तो वह भारत का नागरिक बन सकता है। यदि, उसके माता-पिता या दादा-दादी अविभाजित भारत में पैदा हुए हों और यदि वह 19 जुलाई 1948 से पूर्व ही निवास करने के उद्देश्य से भारत आ चुका हो।
अनुच्छेद 7 – भारत से पाकिस्तान गए और फिर से भारत आने वाले व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
एक व्यक्ति जो 1 मार्च 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान चला गया हो, लेकिन बाद में फिर भारत में पुनर्वास के लिए लौट आये तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है लेकिन उसे एक प्रार्थना पत्र भारत सरकार को देना होगा और उसके बाद 6 माह तक भारत में निवास करना होगा।
अनुच्छेद 8 – भारत के बाहर रहने वाले भारतीय मूल के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
ये उन लोगों के लिए है जिसके माता-पिता या दादा-दादी अविभाजित भारत में पैदा हुए हों लेकिन वह भारत के बाहर कहीं और मामूली तौर पर निवास कर रहा हो, वह भी भारत का नागरिक बन सकता है। लेकिन उसे नागरिकता के लिए पंजीकरण का आवेदन उस देश में मौजूद भारत के राजनयिक को देना होगा। तो कुल मिलाकर ये वो चार तरह के लोग है जिसे संविधान लागू होने तक नागरिकता दी गई। आइये अब आगे के तीन अनुच्छेदों को समझते हैं।
अनुच्छेद 9 – विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्तियों का भारत का नागरिक न होना
वह व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा जो स्वेच्छा से किसी और देश का नागरिकता ग्रहण कर लेता हो। कहने का अर्थ ये है कि भारत दोहरी नागरिकता को मान्यता नहीं देता है। अगर कोई व्यक्ति किसी और देश की नागरिकता ग्रहण करता है तो उसे भारत की नागरिकता से वंचित होना होगा।
अनुच्छेद 10 – नागरिकता के अधिकारों का बने रहना
ये अनुच्छेद एक आश्वासन देता है कि जिन लोगों को अनुच्छेद 5, 6, 7, और 8 के तहत नागरिकता दी गई है वे भारत में नागरिक बने रहेंगे। यानी कि ऐसे लोगों से नागरिकता छीनी नहीं जाएगी।
अनुच्छेद 11 – संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना
इस अनुच्छेद के तहत, संसद के पास यह अधिकार है कि नागरिकता अर्जन और समाप्ति या इसी से संबन्धित कोई भी नियम या विधि बना सकती है। कहने का अर्थ ये है कि यह अनुच्छेद संसद को नागरिकता के संबंध में कानून बनाने की शक्ति देता है।
अनुच्छेद 5 से 11 तक का संवैधानिक प्रावधान बस यही है। जाहिर है इसमें भविष्य में नागरिकता को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं है, क्योंकि ये संविधान के लागू होने के समय के परिस्थितियों पर ही फोकस करता है। इसीलिए नागरिकता से संबन्धित सारी कमियों को दूर करने के लिए 1955 में नागरिकता अधिनियम लाया गया। नागरिकता के संबंध में ये सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, इसीलिए इसे समझना बहुत जरूरी है।
नागरिकता अधिनियम 1955 (Citizenship Act 1955)
इस अधिनियम में 18 धाराएँ हैं जिसमें से धारा 3 से लेकर 7 तक भारत की नागरिकता प्राप्त करने के क्रमशः 5 तरीके बताए गए हैं, जो कि निम्नलिखित है –
- जन्म के आधार पर (By birth)
2. वंश के आधार पर (By descent)
3. पंजीकरण के द्वारा (By registration)
4. प्राकृतिक तौर पर (Naturally)
5. क्षेत्र समाविष्ट के आधार पर (On the basis of area comprised)।
- जन्म के आधार परनागरिकता (Citizenship by birth)
ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जन्म के आधार पर भारत का नागरिक होगा जिसका जन्म भारत में 26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात किन्तु 1 जुलाई 1987 से पूर्व हुआ है।
भारत में इस व्यवस्था से अवैध प्रवासी की समस्या और गंभीर होती चली गई (खासकर के बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों के संदर्भ में), इसीलिए 1986 में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया और उसमें एक शर्त को जोड़ दिया गया।
1 जुलाई 1987 के बाद जन्म के आधार पर किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता तभी मिलेगी, जब उस व्यक्ति के जन्म के समय उसके माता या पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।
2003 में नागरिकता अधिनियम 1955 में एक और संशोधन के जरिये इसमें कुछ शर्ते जोड़ दी गई। इस संशोधन के लागू होने के बाद से (2004 से लागू हुआ) अब कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर भारत का नागरिक तभी बन सकता है जब उसके जन्म के समय (1) उसके माता-पिता दोनों भारत का नागरिक हो, या (2) उसके माता- पिता में से कोई एक भारत का नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
- वंश के आधार परनागरिकता (Citizenship by Descent)
26 जनवरी 1950 को या उसके बाद लेकिन 10 दिसम्बर 1992 के पूर्व भारत के बाहर पैदा हुआ कोई व्यक्ति वंश के आधार पर भारत का नागरिक होगा, यदि उसके जन्म के समय उसके पिता भारतीय नागरिक है।
लेकिन जन्म लेने वाले बच्चे का पिता अगर केवल वंश के आधार पर भारतीय नागरिक है तो फिर उसके बच्चे को 1 साल के भीतर उस देश में स्थित भारतीय दूतावास में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा।1992 में नागरिकता अधिनियम (धारा 4) 1955 में संशोधन करके ये प्रावधान कर दिया गया कि अब 10 दिसम्बर 1992 को या उसके बाद भारत के बाहर पैदा हुआ कोई बच्चा भारत का नागरिक होगा, यदि उसके माता या पिता में से कोई उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो।
जन्म लेने वाले बच्चे का माता या पिता अगर केवल वंश के आधार पर भारतीय नागरिक है तो फिर उसके बच्चे को 1 साल के भीतर उस देश में स्थित भारतीय दूतावास में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा।
2003 में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया और अब ये व्यवस्था ये है कि 3 दिसम्बर 2004 के पश्चात भारत के बाहर पैदा हुए किसी भी बच्चे को वंश के आधार पर नागरिकता तब तक नहीं मिलेगा जब तक कि जन्म से एक वर्ष के भीतर उस देश में स्थिति भारतीय दूतावास में रजिस्ट्रेशन न करवाया हो। (उसके माता या पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारतीय नागरिक होना ही चाहिए)
- पंजीकरण द्वारानागरिकता (Citizenship by registration)
केंद्र सरकार किसी आवेदन प्राप्त होने पर, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत किसी वैध प्रवासी को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण कर सकती है, यदि वह निम्नलिखित में से किसी भी एक श्रेणी में आता है-
(1) भारतीय मूल का वह व्यक्ति रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करने के 7 वर्ष पहले से भारत में मामूली तौर पर निवासी है;
रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन करने के पहले के ठीक 1 वर्ष की सम्पूर्ण अवधि में भारत में रहा हो, और इस 1 साल के पहले के 8 सालों में से कम से कम 6 साल की अवधि भारत में निवास किया हो। यही उपरोक्त प्रावधान तब भी लागू होता है, जब कोई व्यक्ति भारत के किसी नागरिक से विवाहित है।
(2) भारतीय मूल का वह व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी अन्य देश में रह रहा हो।
(3) भारत के नागरिक के नाबालिग बच्चे।
(4) कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा उसके माता-पिता भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हो।
(5) कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा उसके माता या पिता में से कोई पहले स्वतंत्र भारत का नागरिक था और रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन करने के ठीक 1 वर्ष पूर्व से भारत में मामूली तौर पर निवासी हो।
(6) कोई व्यक्ति, जो पूरी आयु तथा क्षमता का हो तथा भारत सरकार द्वारा जारी किए गए OCI कार्ड को पिछले 5 वर्ष से धारण कर रहा हो और रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन करने के ठीक 1 वर्ष पहले से भारत में मामूली तौर पर निवास कर रहा हो।
- प्राकृतिक रूप से नागरिकता (Citizenship by naturalisation)
भारत सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी व्यक्ति को प्राकृतिक तौर पर नागरिकता प्रदान कर सकती है बशर्ते कि वह अवैध प्रवासी न हो, और निम्नलिखित योग्यताएँ रखता हो:
(क) वह व्यक्ति ऐसे किसी देश से संबन्धित न हो, जहां भारतीय नागरिक प्राकृतिक रूप से नागरिक नहीं बन सकते।
(ख) यदि वह किसी अन्य देश का नागरिक हो तो भारतीय नागरिकता प्राप्त होने पर उसे उस देश की नागरिकता का त्याग करना होगा।
(ग) यदि कोई व्यक्ति भारत में रह रहा हो और नागरिकता संबंधी आवेदन देने के कम से कम 1 वर्ष पूर्व से भारत में लगातार निवास कर रहा हो और इस 1 वर्ष के पहले के 14 वर्षों में से कम से कम 11 वर्ष भारत में रहा हो।
(घ) उसका चरित्र भारत सरकार की नजर में अच्छा होना चाहिए और संविधान के आठवीं अनुसूची में उल्लिखित किसी भाषा का अच्छा ज्ञाता होना चाहिए।
- क्षेत्र समाविष्ट के आधार परनागरिकता (Citizenship by incorporation of territory)
किसी भी विदेशी क्षेत्र का जब भारत के द्वारा अधिग्रहण किया जाता है तो उस क्षेत्र विशेष के अंदर रह रहें लोगों को भारत की नागरिकता दी जाती है। जैसे कि जब पॉण्डिचेरी और गोवा को भारत में शामिल किया गया तो उसके लोगों को भारत की नागरिकता दी गयी।
नागरिकता समाप्ति के प्रावधान
- स्वैच्छिक त्याग (Voluntary renunciation)
नागरिकता अधिनियम धारा 8 के अनुसार, पूर्ण आयु और क्षमता प्राप्त कोई भारतीय नागरिक अपनी नागरिकता छोड़ना चाहे तो छोड़ सकता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति ऐसे समय में भारतीय नागरिकता छोड़ने की घोषणा करता है जब भारत किसी युद्ध में लगा हुआ हो, तो उसका रजिस्ट्रीकरण तब तक निर्धारित रखा जाएगा जब तक केंद्रीय सरकार निदेश नहीं दे देती।
- बर्खास्तगी के द्वारा (By Termination)
धारा 9 के अनुसार, यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वयं बर्खास्त हो जाएगी।
- वंचित करने द्वारा (By depriving)
केंद्र सरकार किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता से वंचित कर देगा, यदि;
(1) नागरिकता फर्जी तरीके से प्राप्त की गयी हो,
(2) यदि नागरिक ने संविधान के प्रति अनादर जताया हो,
(3) यदि नागरिक ने युद्ध के दौरान शत्रु के साथ गैर- कानूनी रूप से संबंध स्थापित किया हो या उसे कोई राष्ट्रविरोधी सूचना दी हो,
(4) पंजीकरण या प्राकृतिक नागरिकता के पाँच वर्ष के दौरान नागरिक को किसी देश में दो वर्ष की कैद हुई हो,
(5) नागरिक सामान्य रूप से भारत के बाहर सात वर्षों से रह रहा हो।
विदेशी भारतीय_नागरिकता (Overseas Citizen of India)
भारतीय मूल के व्यक्तियों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा कुछ योजनाएँ शुरू की गई ताकि वो किसी और देश के नागरिकता को छोड़े बिना भी भारतीय नागरिकता कर सके।
नागरिकता अधिनियम 1955 में ही संशोधन करके धारा 7क, धारा 7ख, धारा 7ग एवं धारा 7घ को सम्मिलित किया गया।