भारतीय संविधान में संघात्मक और एकात्मक व्यवस्था के लक्षण
भारत एक संवैधानिक गणराज्य है ।
भारत के संविधान की’ प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा जाता है ।
भारत में संघीय शासन व्यवस्था लागू है किन्तु संविधान में कहीं भी फेडरेशन (संघात्मक) शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है ।
संविधान में भारत को ‘राज्यों का संघ’ कहा गया है ।
- प्रो. डी. डी. बसु के अनुसार- ”भारत का संविधान न तो शुद्ध रूप से परिसंघीय है और न शुद्ध रूप से ऐकिक है; यह दोनों का संयोजन है ।”
- कें. सी. हेयर के अनुसार- ”भारत मुख्यत: एकात्मक राज्य है, जिसमें संघीय विशेषताएं नाममात्र की है । भारत का संविधान संघीय कम एकात्मक अधिक है ।
- प्रो. पायली के अनुसार- ”भारत का ढाँचा संघात्मक है किन्तु. उसकी आत्मा एकात्मक है ”
संघात्मक व्यवस्था के लक्षण
- स्वतंत्र व सर्वोच्च न्यायालय ।
- संविधान की सर्वोच्चता ।
- केन्द्र व राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन ।
- केन्द्र राज्य में पृथक-पृथक सरकारें ।
एकात्मक व्यवस्था के लक्षण
- संविधान संशोधन सरलता से ।
- संघ तथा राज्य के लिए एक ही संविधान।
- संकटकाल में एकात्मक स्वरूप ।
- शक्तियों का बंटवारा केन्द्र के पक्ष में ।
- राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति ।
- राज्य सूची के विषय पर केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार ।
- राज्य विधानमंडलों द्वारा पारित कानूनों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखने का राज्यपालों को अधिकार ।
- केन्द्र सरकार को राज्यों की सीमा परिवर्तन करने का अधिकार ।
- एकीकृत न्याय व्यवस्था ।
- इकहरी नागरिकता ।