बिहार में आदिवासी विद्रोह

बिहार में आदिवासी विद्रोह के विषय पर ध्यान देना सरकारी परीक्षाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस विषय से उम्मीदवारों को राज्य के ऐतिहासिक और सामाजिक पहलुओं को समझने में मदद मिलती है। आदिवासी विद्रोह ने राज्य के समाज और राजनीतिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाला है। इससे उम्मीदवारों को परीक्षा में अधिक अंक प्राप्त करने की संभावना बढ़ती है।

 

बिहार में आदिवासी विद्रोह

विद्रोह मुख्य रूप से आदिवासियों के भूमि स्वामित्व के बदले अंग्रेजों द्वारा शोषण और बाहरी लोगों को भूमि के हस्तांतरण के खिलाफ थे।

इस तरह के विद्रोहों की प्रकृति ज्यादातर स्थानीय और असंगठित थी।

बिहार के जनजातीय विद्रोह 19 वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में शुरू हुए थे।

 

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बिहार में महत्वपूर्ण आदिवासी विद्रोह

 

विद्रोह का नाम संबद्ध लोग सालों प्रकृति और उद्देश्य
हो और मुंडा राजा परहत 1820, 1827, 1899, 1900, 1860-1920 अंग्रेजों के खिलाफ नई भू-राजस्व नीति
कोल बुधु भगत 1831-32 बाहरी लोगों को जमीन के हस्तांतरण के खिलाफ
भूमिज गंगा नारायण 1832-33 अंग्रेजों की भू-राजस्व नीति के खिलाफ
संथाल सिद्धू-कान्हू 1855-56 साहूकारों, ठेकेदारों आदि के खिलाफ।
सफा हर विद्रोह  Baba Bhagirath Manjhi, Lal Hembram & Paica Murmu 1870 धार्मिक भावनाओं पर प्रतिबंध के खिलाफ
मुंडा बिरसा मुंडा 1899-1900 आदिवासी भूमि के हस्तांतरण के खिलाफ
ताना भगत जात्रा भगत 1914 मकान मालिक और ठेकेदारों के खिलाफ

 

 

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