संधि विच्छेद : संधि की परिभाषा, भेद, संधि के प्रकार, सूची और उदाहरण

 संधि विच्छेद : संधि की परिभाषा, भेद, संधि के प्रकार, सूची और उदाहरण

दो वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को संधि कहते है |

दो शब्दों के मेल से बने शब्द को पुनः अलग अलग करने को संधि विच्छेद कहते हैं

जब दो वर्णों का मिलन अत्यंत निकट कारण होता है तब उनमे कोई न कोई परिवर्तन होता है और वही परिवर्तन संधि के नाम से जाना जाता है |

दो शब्दों के मेल से बने शब्द को पुनः अलग अलग करने को संधि विच्छेद कहते हैं

उदाहरण –
हिम + आलय (अ   + आ)
हिम + (अ + आ) + लय
हिमा आ लय (‘म‘ के साथ ‘आ‘ का संयोग होने पर ‘हिमा‘ बना)
अब ‘हिमा‘ और ‘लय’ दोनों को मिला देने पर ‘हिमालय बना।

संधि कितने प्रकार की होती है?

संधि तीन प्रकार की होती है:

स्वर संधि

व्यंजन संधि

विसर्ग संधि 

ये भी पढ़ें – हिंदी मुहावरे और उनके अर्थ

स्वर संधि : स्वर संधि के प्रकार, स्वर संधि की परिभाषा

स्वर संधि: स्वर संधि में दो स्वरों के मेल से नए स्वर बनते हैं, जैसे दो वर्णों ‘अ’ और ‘इ’ के मिलने से ‘ए’ बन जाता है। यह संधि वाक्य में अधिक सुविधा प्रदान करती है और भाषा को समृद्ध बनाती है।

स्वर संधि, हिंदी व्याकरण में वर्णों के मेल या एक से दूसरे के प्रत्ययों के अधिनियम से स्वर वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण या व्यंजन वर्ण के साथ स्वर वर्ण का मिलना है। स्वर संधि के कारण, एक से दूसरे शब्द या पद के संरचना और उच्चारण में बदलाव हो सकता है। स्वर संधि भाषा के विभिन्न विधियों में से एक है, जो भाषा को संवाद में सुविधाजनक बनाने में मदद करती है।

 

जैसे – रवि + इन्द्र

इ + इ = ई (यहाँ ‘इ’ और ‘इ’ दो  स्वरों  के बीच संधि होकर ‘ई’ रूप हुआ)

स्वर संधि के पाँच प्रकार की होती है।

दीर्घ स्वर संधि

गुण स्वर संधि

वृद्धि स्वर संधि

यण स्वर संधि

अयादि स्वर संधि

दीर्घ स्वर संधि

इसमें दो स्वर्ण या सजातीय स्वरों के बीच संधि होकर उनके दीर्घ रूप हो जाते है| अर्थात दो स्वर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाता हैं|

अभीष्ट (अभि+इष्ट),

अन्नाभाव (अन्न+अभाव),

बुद्धीश (बुद्ध+ईश),

भारतीश्वर (भारती+ईश्वर),

भानूदय (भानु+उदय),

भोजनालय (भोजन+आलय),

भूपरि (भू+उपरि),

भूत्तम (भू+उत्तम),

देवाधिवति (देव+अधिपति),

धर्मार्थ (धर्म+अर्थ),

 गिरीश (गिरि+ईश),

गिरीन्द्र (गिर+इन्द्र),

गुणालय (गुण+आलय

इस संधि के चार रूप होते है-

1 – अ/आ  +  अ/आ  = 

अ + आ = आ

अ + आ = आ

आ + अ = आ

आ + आ = आ

2 – इ / ई + इ / ई = ई

इ + इ = ई

इ + ई = ई

ई + इ = ई

ई + ई = ई

3 – उ / ऊ + उ / ऊ = ऊ

उ + उ = ऊ

उ + ऊ = ऊ

ऊ + उ = ऊ

ऊ + ऊ = ऊ

4 – ऋ + ऋ/ ऋ =  ऋ (सिर्फ संस्कृत में प्रयोग)

जैसे – पितृ + ऋण = पितृण

गुण स्वर संधि

यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद इ/ई  आए तो ‘ए’ ; ऊ/ऊ आए तो ‘ओ’ और ‘ऋ’ आए तो ‘अर’ हो  जाता है |

चंद्रोदय (चन्द्र+उदय)

दीर्घोपल (दीर्घ+ऊपल

देवेंद्र (देव+इन्द्र)

देवेश (देव+ईश)

देवर्षि (देव+ऋषि)

गणेश (गण+ईश)

गंगोर्मि (गंगा+ऊर्मि)

जलोदय (जल+उदय)

जलोर्मि (जल+ऊर्मि)

खगेश (खग+ईश)

लोकोपयोग (लोक+उपयोग)

महोत्सव (महा+उत्सव)

महोजस्वी (महा+ओजस्वी)

महोर्जस्वी (महा+ऊर्जस्वी)

महोर्मि (महा+उर्मि)

महेश्वर (महा+ईश्वर

महेश (महा+ईश

महोपदेश (महा+उपदेश)

महेंद्र (महा+इन्द्र)

मृगेंद्र (मृग+इन्द्र)

महर्षि (महा+ऋषि)

नरेश (नर+ईश)

नरेंद्र (नर+इन्द्र)

परमोत्सव (परम+उत्सव)

1 – अ/आ + इ/ई = ए   जैसे – देव + इन्द्र = देवेन्द्र

देव + ईश = देवेश

गण + ईश = गणेश

सुर + इन्द्र = सुरेंद्र

2 – अ/आ + उ/ऊ = ओ जैसे –    वीर + उचित = वीरोचित

नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा

सूर्य + उदय = सूर्योदय

चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय

  1. अ/आ + ऋ = अर   जैसे – महा + ऋषि = महर्षि

सप्त + ऋषि = सप्तर्षि

वृद्धि स्वर संधि

यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ए/ऐ रहे तो ‘ऐ’ और ओ/औ  रहे तो ‘औ’ बन जाता है|

एकदैव (एकदा+एव)

एकैव (एक+एव)

एकैक (एक+एक)

दिनैक (दिन+एक)

देवैश्वर्य (देव+ऐश्वर्य)

धर्मैक्य (धर्म+ऐक्य)

जलौस (जल+ओस)

जलौक (जल+ओक

जलौषध (जल+औषध)

महौज (महा+ओज)

महौदार्य (महा+औदार्य)

महौषध (महा+औषध)

महैश्वर्य (महा+ऐश्वर्य)

मतैक्य (मत+ऐक्य)

नवैश्वर्य (नव+ऐश्वर्य)

परमौज (परम+ओज)

परमौषध (परम+औषध)

 परमौदार्य (परम+औदार्य)

परमैश्वर्य (परम+एश्वर्य)

सदैव (सदा+एव)

सर्वदैव (सर्वदा+एव)

तत्रैव (तत्र+एव)

तथैव (तथा+एव)

उष्णौदन (उष्ण+ओदन)

वनौषधि (नव+औषधि)

विश्वैक्य (विश्व+ऐक्य)

  1. अ/आ + ए/ऐ = ऐ   जैसे – एक + एक = एकैक

सदा + एव = सदैव

  1. अ/आ + ओ/औ = औ   जैसे –  जल  +  ओघ = जलौघ

महा + ओषधि = महौषधि

महा + औषध = महौषध

परम् + औदार्य = परमौदार्य

यण स्वर संधि

यदि इ/ई, उ/ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आए तो इ/ई का ‘य’ उ/ऊ का ‘व’ और ऋ का ‘र’ हो जाता है |

अध्ययन (अधि+अयन)

अन्वादेश (अनु+आदेश)

अत्यंत (अति+अंत)

अन्वय (अनु+अय)

अन्वर्थ (अनु+अर्थ)

अत्यर्थ (अति+अर्थ)

अत्युक्ति (अति+उक्ति)

अत्युत्तम (अति+उत्तम)

अन्वय (अनु+अय)

अन्विष्ट (अनु+इष्ट)

अत्यधिक (अति+अधिक)

अत्याचार (अति+आचार)

अत्यूष्म (अति+ऊष्म)

अन्वीक्षण (अनु+ईक्षण)

अत्यावश्यक (अति+आवश्यक)

भान्वागमन (भानु+आगमन)

ऋत्वन्त (ऋतु+अन्त)

देव्यागम (देवी+आगमन)

देव्युक्ति (देवी+उक्ति)

देव्यालय (देवी+आलय)

देव्यैश्वर्य (देवी+ऐश्वर्य)

देव्योज (देवी+ओज)

देव्यौदार्य (देवी+औदार्य)

देव्यंग(देवी+अंग)

धात्विक (धातु+इक)

गुर्वौदन (गुरु+ओदन)

गुर्वौदार्य (गुरु+औदार्य)

इत्यादि (इति+आदि)

मन्वन्तर (मनु+अन्तर)

मध्वरि (मधु+अरि)

मध्वालय (मधु+आलय)

मात्रार्थ (मातृ+अर्थ)

न्यून (नि+ऊन)

नद्यर्पण (नदी+अर्पण)

नद्यूर्मि (नदी+ऊर्मि)

प्रत्युत्तर (प्रति+उत्तर)

प्रत्येक (प्रति+एक)

प्रत्युपकार (प्रति+उपकार)

प्रत्यूष (प्रति+ऊष)

पित्राज्ञा (पितृ+आज्ञा)

रीत्यानुसार (रीति+अनुसार)

स्वागत (सु+आगत)

सख्यागम (सखी+आगम)

सख्युचित (सखी+उचित)

सरस्वत्याराधना (सरस्वती+आराधना)

उपर्युक्त (उपरि+उक्त)

वध्वागमन (वधू+आगमन)

वाण्यूर्मि (वाणि+ऊर्मि)

वध्विष्ट (वधू+इष्ट)

वध्वीर्ष्या (वधू+ईर्ष्या)

यद्यपि (यदि+अपि)।

 

  1. इ/ई + भिन्न स्वर (य (यह भिन्न स्वर से मिल जाता है))

जैसे – प्रति + एक = प्रत्येक (प्रत ये क सभी खंडो को मिलाने पर ‘प्र्तेक’ बना)

यदि + अपि = यघपि

अति + आवश्यक = अत्यावश्यक

अति + उत्तम = अत्युत्तम

  1. उ/ऊ + भिन्न स्वर (व (यह भिन्न स्वर से मिल जाता है))

जैसे – अनु    +    अय   =   अन्वय (‘न’ ‘व’ से संयोगकर ‘न्व’ बना और सभी खंडों को मिलाने पर ‘अन्वय’ बना )

गुरु + औदार्य = गुओंदार्य

  1. ऋ + भिन्न स्वर ()

मातृ + आनन्द = मात्रानन्द
मात रा नन्द (‘त’ ‘रा’ से मिलकर ‘त्रा’ बना) शब्द हुआ – मात्रानन्द

अयादि स्वर संधि

यदि ए, ऐ, ओं और औ के बाद भिन्न स्वर आये तो ‘ए’ का अय ‘ऐ’ का आय, ‘ओ’ का अव और ‘औ’ का आव हो जाता है |अय, आय, अव,और आव के य और व आगेवाले भिन्न स्वर से मिल  जाते है |

अन्वेषण (अनु+एषण)

भवन (भो+अन)

भ्रात्रोक (भ्रातृ+ओक)

भ्रात्रेषणा (भ्रातृ+एषणा)

चयन (चे+अन)

गायक (गै+अक)

गायन (गै+अन)

गवीश (गो+ईश)

गवन (गो+अन)

गुर्वोदार्य (गुरु+औदार्य)

मध्वोदन (मधु+ओदन)

मध्वौषध (मधु+औषध)

मात्रादेश (मातृ+आदेश)

मात्रानन्द (मातृ+आनन्द)

मात्रंग (मातृ+अंग)

नयन (ने+अन)

नायक (नै+अक)

पवित्र (पो+इत्र)

पवन (पो+अन)

पावक (पौ+अक)

पावन (पौ+अन)

पित्रादेश (पितृ+आदेश)

पित्रनुदेश (पित्र+अनुदेश)

पित्रनुमति (पितृ+अनुमति)

पावन (पौ+अन), पावक (पौ+अक)

रवीश (रवि+ईश)

सायक (सै+अक)

शयन (शे+अन)

वध्वंग (वधू+अंग)

वध्वादेश (वधू+आदेश)

वध्वेषण (वधू+एषण)

वध्विष्ट (वधू+इष्ट)

वध्वर्थ (वधू+अर्थ)

श्रवण (श्रो+अन)

श्रावन (श्रौ+अन)।

 

जैसे – ने + अन = नयन

नै + इका = नायिका

पो + अन = पवन

पौ + अक = पावक

व्यंजन संधि की परिभाषा और उदाहरण

व्यंजन संधि: व्यंजन संधि में दो व्यंजनों के मिलने से नए व्यंजन या स्वर का उत्पादन होता है। उदाहरण के लिए, दो व्यंजनों ‘स’ और ‘त’ के मिलने से ‘स्त’ बन जाता है।

1 – व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण का मेल – 

जैसे – दिक् + गज = दिग्गज

व्यंजन + व्यंजन (यहाँ दो व्यंजन वर्णों का मेल हुआ)

2 – व्यंजन वर्ण और स्वर वर्ण का मेल – 

जैसे – सत + चित + आनंद = सच्चिदानन्द

व्यंजन + व्यंजन + व्यंजन + स्वर (यहाँ व्यंजन और स्वर का मेल दिखाया गया है |)

3 – स्वर वर्ण और व्यंजन वर्ण का मेल और वर्ण रूपान्तरण : 

जैसे – अभि + सेक = अभिषेक

 षे  (‘से’ का ‘षे’ में रूपान्तर)

4 – किसी नए वर्ण का आगम – 

जैसे – आ + छादन = आच्छादन  (च् नये वर्ण का आगम)

(क) क् / च / ट् / त् / प् + कोई स्वर वर्ण/वर्गो का 3 रा/4 था वर्ण

यदि क् / च / ट् / त् / प्  के बाद कोई स्वर वर्ण आए या वर्गीय व्यंजनों का तीसरा या चौथा वर्ण आए तो ऐसी स्थिति में

‘क्’ का ‘ग्’
‘च’ का ‘ज्’
‘ट्’ का ‘ड्’
‘त्’ का ‘’द्’ और
‘प्’ का ‘ब्’ हो  जाता है|

जैसे –

जगत + ईश = जगदीश,

वाक् + ईश = वागीश,

अच् + अन्त = अजन्त

विसर्ग संधि

विसर्ग संधि: विसर्ग संधि में ‘ह’ विसर्ग के समानार्थी वर्ण के साथ विसर्जन होता है, जो वाक्य के अर्थ में परिवर्तन लाता है। उदाहरण के लिए, ‘रामः गच्छति’ में ‘ह’ विसर्ग के स्थान पर ‘गच्छति’ हो जाता है।

 

विसर्ग संधि के नियम इस प्रकार है-

1 – विसर्ग (:) + च / छ  जैसे – निः + चल = निश्चल (: = श् )

2 – विसर्ग + ट / ठ  जैसे – धनुः + टंकार = धनुष्टकार

3 – विसर्ग + त / थ   जैसे – निः + तेजः = निस्तेज

4 – विसर्ग + वर्गों  3रा, 4था, 5वाँ वर्ण / अन्तःस्थ / ह (जैसे – सरः + ज = सरोज   मनः + रथ = मनोरथ)

5 – विसर्ग + क / ख / प  जैसे – प्रातः + काल = प्रातःकाल (दुः  +  ख = दुःख)

6 – विसर्ग + श / स (दुः + शासन = दुः शासन / दुश्शासन)
विसर्ग ज्यों का त्यों या विसर्ग का रूपांतरण अले ‘स’ में (यानी दोनों स्थितियाँ होती है)

7 – (इ / उ) विसर्ग + क / प  जैसे – निः + कपट = निष्कपट ( चतुः + पथ = चतुष्पथ)

8 – (अ / आ) विसर्ग + क / प  जैसे – नमः + कार = नमस्कार (पुरः + कार = पुरस्कार)

हिंदी की स्वतंत्र संधियाँ

हिंदी की निम्नलिखित छः प्रवृतियोवाली संधियाँ होती हैं-

महाप्राणीकरण

घोषीकरण

हस्वीकरण

आगम

व्यंजन लोपीकरण और

स्वर व्यंजन लोपीकरण

इसे विस्तार से इस प्रकार समझा जा सकता है-

1 – पूर्ण स्वर लोप

दो स्वरों के मिलने पर पूर्ण स्वर का लोप हो जाता है |

इसके भी दो प्रकार है-

1 – अविकारी पूर्णस्वर लोप : जैसे – मिल + अन = मिलन

लोप
छल + आवा = छलावा

2 – विकारी पूर्णस्वर लोप : जैसे – भूल + आवा = भुलावा

लूट + एरा = लुटेरा
लात + ईयल = लटियल

2 – हस्वकारी स्वर संधि

दो स्वरों के मिलने पर प्रथम खंड का अंतिम स्वर हस्व हो जाता है| इसकी भी दो स्थितियाँ होती हैं –

1 – अविकारी हस्वकारी : 

जैसे – साधु + ओं = साधुओं
डाकू +  ओं = डाकुओं

2 – विकारी हस्वकारी :

जैसे –  साधु + अक्कडी = सधुक्कडी
बाबू + आ = बबुआ

3 – आगम स्वर संधि

इसकी भी दो स्थितियाँ है –

1 – अविकारी  आगम स्वर : इसका अंतिम स्वर में कोई विकार नहीं होता |

जैसे – तिथि + आँ = तिथियाँ
शक्ति + ओं = शक्तियों

2 – विकारी आगम स्वर : इसका अंतिम स्वर विकृत हो जाता है|

जैसे – नदी + आँ = नदियाँ
लड़की + आँ = लड़कियाँ

4 – पूर्णस्वर लोपी व्यंजन संधि

इसमें प्रथम खंड के अंतिम स्वर का लोप हो जाया करता है |

जैसे – तुम + ही = तुम्हीं
उन + ही = उन्हीं

5 – स्वर व्यंजन लोपी व्यंजन संधि 

इसमें प्रथम खंड के स्वर तथा अंतिम खंड के व्यंजन का लोप हो जाता है |

जैसे – कुछ + ही = कुछी
इस + ही =  इसी

6 – मध्यवर्ण लोपी व्यंजन संधि

इसमें प्रथम खंड के अंतिम वर्ण का लोप हो जाता है|

जैसे – वह + ही = वही
यह + ही = यही

7 – पूर्ण स्वर हस्वकारी व्यंजन संधि

इसमें प्रथम खंड का प्रथम वर्ण हस्व हो जाता है |

जैसे – अकन + कटा = कनकटा
पानी + घाट = पनघट पनिघट

8 – महाप्राणीकरण व्यंजन संधि

यदि प्रथम खंड का अंतिम वर्ण ‘ब’ हो तथा द्वितीय खंड का प्रथम वर्ण ‘ह’ हो तो ‘ह’ का ‘भ’ हो जाता है और ‘ब’ का लोप हो जाता है |

जैसे – अब + ही = कभी
कब + ही = कभी
सब + ही = सभी

9 –  सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि

इसमें प्रथम खंड के अनुनासिक सब्जयुक्त व्यंजन का लोप हो जाता है, उसकी केवल अनुनासिकता बची रहती है|

जैसे – जहाँ + ही = जहीं
कहाँ + ही = कहीं
वहाँ + ही = वहीं

10 – आकारागम व्यंजन संधि

इसमें संधि करने पर बीच में आकार का आगम हो जाया करता है|

जैसे – सत्य + नाश = सत्यानाश
मूसल + धार = मूसलाधार

 

संधि विच्छेद के उदाहरण ।

हिमालय – हिम + आलय

स्वार्थ – स्व + अर्थ

स्वागत – सु + आगत

सावधान – स + अवधान

सर्वोत्तम – सर्व + उत्तम

सरोज – सर: + ज

समृद्धि – सम् + ऋद्धि

समुदाय – सम् + उदाय

सन्धि – सम् + धि

सदैव – सदा + एव

सदैव – सदा + एव

सत्याग्रह – सत्य + आग्रह

सतीश – सती + ईश

सज्जन – सत् + जन

संहार – सम् + हार

संस्कृत – सम् + कृत

संस्कार – सम् + कार

संसार – सम् + सार

संवाद – सम् + वाद

संवत – सम् + वत

संयोग – सम् + योग

संयम – सम् + यम

संभव – सम् + भव

संपूर्ण – सम् + पूर्ण

संतोष – सम् + तोष

संगठन – सम् + गठन

षड्दर्शन – षट् + दर्शन

व्यर्थ – वि + अर्थ

विषम – वि + सम

विधालय – विधा + आलय

विधार्थी – विधा + अर्थी

वाग्जाल – वाक् + जाल

वागीश – वाक् + ईश

लघूर्मी – लघु + ऊर्मी

लंबोदर – लंब + उदर

रावण – रौ + अण

रामायण – राम + अयन

रमेश – रमा + ईश

रत्नाकर – रत्न + आकर

युधिष्ठिर – युधि + स्थिर

यशोधरा – यश: + धरा

यशोदा – यश: + दा

यज्ञ – यज् + न

महोत्सव – महा + उत्सव

महेन्द्र – महा + इन्द्र

महाशय – महा: + आशय

महर्षि – महा + ऋषि

मनोरथ – मन: + रथ

मनोयोग – मन: + योग

मनोनीत – मन: + नीत

मनोज – मन: + ज

मनस्ताप – मन: + ताप

मतैक्य – मत + एक्य

भूषण – भूष + अन

भास्कर – भा: + कर

भावुक – भौ + उक

भानूदय – भानु + उदय

बहिष्कार – बहि: + कार

प्रत्येक – प्रति + एक

प्रत्यय – प्रति + अय

प्रत्यक्ष – प्रति + अक्ष

पृष्ठ – पृष + थ

पुरुषोत्तम – पुरुष + उत्तम

पुरस्कार – पुर: + कार

पावक – पौ + अक

पवित्र – पो + इत्र

पवन – पो + अन

परोपकार – पर + उपकार

परीक्षा – परि + ईक्षा

परिच्छेद – परि + छेद

परमात्मा – परम + आत्मा

परंतु – परम् + अंतु

पयोद – पय: + द

न्यून – नि + ऊन

नीरव – नि: + रव

निस्साहय – नि: + सहाय

निस्तार – नि: + तार

निष्फल – नि: + फल

निष्कपट – नि: + कपट

निषिद्ध – नि: + सिद्ध

निश्चल – नि: + छल

निर्विकार – नि: + विकार

निर्धन – नि: + धन

निर्जल – नि: + जल

निरोग – नि: + रोग

निराधार – नि: + आधार

नाविक – नौ + इक

नायिका – नै + इका

नायक – नै + अक

नमस्कार – नम: + कार

देव्यागम – देवी + आगम

देवेन्द्र – देव + इन्द्र

देवर्षि – देव + ऋषि

दुष्कर्म – दु: + कर्म

दुशासन – दु: + शासन

दुर्जय – दु: + जय

दुर्जन – दु: + जन

दिग्भ्रम – दिक् + भ्रम

दिग्गज – दिक् + गज

दिगंत –  दिक् + अंत

तृष्णा – त्ष + ना

तल्लीन – तत् + लीन

तपोवन – तप: + वन

तध्दित – तत् + हित

तथापि – तथा + अपि

ज्ञानोदय – ज्ञान + उदय

जनार्दन – जन + अर्दन

जगन्नाथ – जगत् + नाथ

जगदीश – जगत् + ईश

चयन – चे + अन

चंद्रोदय – चन्द्र + उदय

गिरीश – गिरि + ईश

गिरींद्र – गिरि + इंद्र

गवीश – गो + ईश

गणेश – गण् + ईश

कृतांत – कृत + अंत

कुशासन – कुश + आसन

किंचित – किम् + चित

कपीश – कपि + ईश

एकैक – एक + एक

ऋण – ऋ + न

उल्लेख – उत् + लेख

उल्लास – उत् + लास

उल्लंघन – उत् + लंघन

उन्माद – उत् + माद

उन्नयन – उत् + नयन

उद्योग – उत् + योग

उद्धत – उत् + हत

उद्दंड – उत् + दंड

उद्घाटन – उत् + घाटन

उदय – उत् + अय

उत्थान – उत् + थान

उत्कृष्ट – उत्कृष + त

उज्जवल – उत् + ज्वल

उच्छेद – उत् + छेद

उच्छिष्ट – ऊत् + शिष्ट

उच्चारण – उत् + चारण

इत्यादि – इति + आदि

आच्छादन – आ + छादन

आकृष्ट – आकृष + त

अभ्यगत – अभि + आगत

अभिषेक – अभि + षेक

अब्ज – अप् + ज

अन्वेषण – अन + एषण

अनुच्छेद – अनु + छेद

अत्युतम – अति + उत्तम

अतएव – अत: + एव

अजंत – अच + अन्त

विद्यालय– विद्या + आलय

नायक–  नै + अक

पावक– पौ + अक

महोत्सव– महा + उत्सव

स्वागत– सु + आगत

विद्यार्थी– विधा + अर्थी

सत्याग्रह– सत्य + आग्रह

सदाचार– सत् + आचार

भ्रष्टाचार– भ्रष्ट + आचार

महोदय– महा + उदय

गायक– गै + अक

हिमाचल– हिम + आचल

नमस्ते– नम: + ते

जगन्नाथ– जगत् + नाथ

युधिष्ठिर–  युधि + स्थिर

प्रतिदिन– प्रति + दिन

दिगम्बर– दिक् + अम्बर

अप्रत्याशित– अ + प्रत्याशित

नवोढ़ा– नव + ऊढ़ा

उद्योग– उत् + योग

लंकेश– लंका + ईश

दुर्गंध– दु: + गंध

गिरीश– गिरि + ईश

उज्जवल– उत् + ज्वल

उल्लास– उत् + लास

हिमालय– हिम + आलय

राजेंद्र– राजा + इन्द्र

अत्याचार– अति + आचार

भावुक– भौ + उक

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