लोकसभा तथा राज्यसभा में अंतर

लोकसभा तथा राज्यसभा में अंतर को समझना आगामी परीक्षाओं की तैयारी में विशेष महत्वपूर्ण है। ये विभिन्न पहलुओं में भारतीय संसदीय लोकतंत्र की महत्वपूर्ण पहलुओं को समाहित करते हैं, जैसे कि संयोजन, भूमिकाएँ, शक्तियाँ, और प्रतिनिधित्व। इस विषय के माहिर होने से भारतीय राजनीतिक प्रणाली के कार्यक्रम को व्यापक रूप से समझने की सुनिश्चित होती है, जो अक्सर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं का महत्वपूर्ण घटक होता है। इसके अलावा, इन अंतरों को समझने से विश्लेषणात्मक कौशलों को बढ़ावा मिलता है, शासन संरचनाओं की गहरी समझ को प्रोत्साहित किया जाता है, और छात्रों को सवालों का सामना करने में आत्मविश्वास देता है, जिससे उनकी परीक्षा तैयारी में वृद्धि होती है।

लोकसभा तथा राज्यसभा में अंतर

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लोकसभा तथा राज्यसभा में अंतर (Differences Between Lok Sabha and Rajya Sabha)

 

लोकसभा राज्यसभा
1. इसका कार्यकाल 5 वर्ष है तथा इससे पूर्व भी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर भंग कर सकता है | राज्यसभा स्थाई सदन है एवं प्रत्येक 2 वर्ष पर ⅓ सदस्य अवकाश ग्रहण कर लेते हैं एवं उतने ही नवनिर्वाचित होते हैं |
2. धन विधेयक मात्र लोकसभा में ही पुनः स्थापित किए जा सकता हैं | धन विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है |
3. जनता द्वारा लोकसभा के सदस्य सार्वजनिक एवं गुप्त मतदान द्वारा चुने जाते हैं | राज्यसभा के सदस्यों का चयन संबंधित राज्यों की विधानसभाएं में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर निर्वाचित करती हैं |
4. यह राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व घोषित नहीं कर सकती है | राज्यसभा को राज्य सूची के किसी विषय को राज्य सभा में उपस्थित एवं मतदान देने वाले सदस्यों के कम से कम ⅔ सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने का अधिकार है |
5. लोकसभा, राज्यसभा द्वारा पारित प्रस्ताव का अनुमोदन करती है | उपराष्ट्रपति को हटाने संबंधी प्रस्ताव राज्यसभा में ही प्रारंभ किया जाता है |
6. लोकसभा को किसी प्रकार के विशेष अधिकार की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि राज्य सभा विघटित नहीं होती है | लोकसभा के भंग होने की स्थिति में आपातकाल की उद्घोषणा का अनुमोदन राज्यसभा करती है |

 

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