मानव श्वसन तन्त्र || Human Respiratory System

 

मानव श्वसन तन्त्र || Human Respiratory System

 

मानव श्वसन तंत्र, या श्वसन प्रणाली, मनुष्य के श्वसन क्रिया को संचालित करने वाली एक महत्वपूर्ण तंत्र है। इसमें श्वसन आंतरिक जीवन प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें ऑक्सीजन प्रदान करता है और कार्बन डाइऑक्साइड को शरीर से बाहर निकालता है।

मानव श्वसन तंत्र मुख्य रूप से फेफड़ों, नाक, गला और फेफड़ों को अधिग्रहण करने और विसर्जित करने जैसी प्रक्रियाओं से मिलता-जुलता है। यह तंत्र श्वसन के लिए मुख्य अंगों के साथ-साथ मस्तिष्क के केंद्रीय नियंत्रण के द्वारा भी नियंत्रित होता है। जब हम साँस लेते हैं, नस्यांतरित होने वाले प्रतिक्रियात्मक प्रक्रियाएं फेफड़ों को संकेत भेजती हैं जो उन्हें खोलने और बंद करने के लिए उत्तेजित करती हैं, जिससे वायु श्वसन शुरू होता है। इस प्रक्रिया को संचालित करने में नस्यांतरित तंत्र और मस्तिष्क का केंद्रीय नियंत्रण एक साथ काम करते हैं।

इस तंत्र के कार्य को नियंत्रित करने के लिए नस्यांतरित तंत्र का नियंत्रण वास्तव में श्वसन मार्ग की व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए नार्वस सिस्टम से आवश्यक अवसादी की चेतावनी का कार्य करता है। इसी तरह, मस्तिष्क का केंद्रीय नियंत्रण वायुमंडल के ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड स्तरों को मानव श्वसन तंत्र के अनुकूलन में सहायक होता है।

इस प्रकार, मानव श्वसन तंत्र शरीर को आवश्यक ऑक्सीजन प्रदान करता है और कार्बन डाइऑक्साइड को निकालता है, जिससे शरीर के सार्वभौमिक कार्य संचालित होते हैं।

 

 

 

श्वसन के प्रकार (Types of Respiration)

ऑक्सीजन के उपभोग के आधार (On the basis on consumption of oxygen) पर श्वसन दो प्रकार का होता है–

1.वायुवीय श्वसन (Aerobic Respiration)

2.अवायवीय श्वसन (Anaerobic Respiration)

वायुवीय श्वसन (Aerobic Respiration)

वायुवीय श्वसन श्वसन सभी जीवित कोशिकाओं में होता है। इस प्रकार के श्वसन में  भोजन के दहन में O2 का उपयोग होता है।

श्वसन के दौरान ग्लूकोज (C6H12O2 ) के एक अणु का ऑक्सीकरण (Oxidation) इस प्रकार से होता है–

C6H12O2 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + ऊर्जा

वायुवीय श्वसन में ग्लूकोज के एक अणु से 38 ATP का निर्माण होता है।

अवायवीय श्वसन  (Anaerobic Respiration)

अवायवीय श्वसन जीवाणुओं, कवकों, अंकुरण करने वाले बीजों, RBC में होता है। इसमें ग्लूकोज का अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है जिससे उत्पादों के रूप में CO2, एथिल एल्कोहल या लैक्टिक अम्ल बनता है। इस श्वसन में कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण के लिए O2 आवश्यक नहीं होती है।

C6H12O2 + 6O2 → 6CO2 + C2H5OH+ ऊर्जा

 

अवायवीय श्वसन में ग्लूकोज के अणु से केवल 2 ATP बनते हैं ।

वायुवीय श्वसन तथा अवायवीय श्वसन में अन्तर  ( Difference Between Aerobic Respiration and Anaerobic Respiration)

क्र.स. वायुवीय श्वसन

(Aerobic Respiration)

अवायवीय श्वसन 

 (Anaerobic Respiration)

1. भोजन के दहन में O2 का उपयोग कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण के लिए O2 आवश्यकता नहीं
  सभी जीवित कोशिकाओं में जीवाणुओं, कवकों, अंकुरण करने वाले बीजों, RBC
  38 ATP का निर्माण 2 ATP
   
3. ग्लूकोज का पूर्ण ऑक्सीकरण ग्लूकोज का अपूर्ण ऑक्सीकरण
4. C6H12O2 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + ऊर्जा C6H12O2 + 6O2 → 6CO2 + C2H5OH+ ऊर्जा
 

 

श्वसन तन्त्र की उत्पति (Origin) भुर्णीय एण्डोडर्म (Endoderm) से होती है।

मानव के श्वसन तन्त्र (Respiratory System) को दो भागों में बांटा गया है–

(a) श्वसन पथ (Respiratory Path)

(b) श्वसन अंग (Respiratory organs)

श्वसन पथ (Respiratory Path)

यह वायु के आवागमन का पथ है। इसके निम्न भाग हैं-

  • बाहा नासाछीद्र (External Nares)
  1. नासा मार्ग (Nasal Tract)
  2. ग्रसनी (Parynx)
  3. वायु नाल (Wind Pipe)

 

  1. बाहा नासाछिद्र (External Nasal Pore)

नासाछिद्र की संख्या दो होती है। ये नासामार्ग के प्रघाण (Vestibule) भाग में खुलते है।

  1. नासा मार्ग (Nasal Tract)

नासा मार्ग के तीन भाग होते है  –

  • प्रघाण (Vestibule)
  1. श्वसन (Respiratory Part)
  2. घ्राण भाग (Olfactory Part )

 प्रघाण (Vestibule)

ये नासामार्ग का सबसे छोटा भाग होता है। यह केरेटिन विहीन स्तरित उपकला (Non keratinized squamous epithelium) से ढका होता है।

श्वसन भाग (Respiratory region)

ये नासामार्ग (Nasal Passage) का मध्य है। जो घ्राण (Olfactory) भाग में खुलता है।

घ्राण भाग (Olfactory region)

यह नासा मार्ग का पश्च ऊपरी भाग है, जो तंत्रिका संवेदी उपकला (Neuro sensory epithelium) से अस्तरित होता है। इस उपकला को घ्राण उपकला (Olfactory epithelium) या शनीडेरियन झिल्ली भी कहते है। इस उपकला के द्वारा गंध का पता लगाया जाता है।

ग्रसनी (Pharynx)

ग्रसनी श्वसन तंत्र तथा पाचन तंत्र दोनों का उभयनिष्ट भाग है। इसके तीन भाग होते हैं-

  • नासा ग्रसनी (Nasopharynx)
  1. मुख ग्रसनी (Oropharynx)
  2. कंठ ग्रसनी (Laryngopharynx)

वायु नाल (Wind Pipe)

यह नलिका वायु के फेफड़ों में आवागमन का मुख्य भाग है। यह नलिका दो भागों में विभक्त होती है–

  • लैरिंक्स (Larynx)
  • श्वासनली (Trachea)

कंठ या ध्वनि बॉक्स (Larynx or Sound box)

यह श्वास नली का अग्र रूपांतरित भाग होता है। इसे ध्वनी उत्पादक अंग (Sound producing organ) भी कहते है। यह 9 प्रकार की उपास्थियों से बनी होती है इसमें स्वर रज्जू या वोकल कार्ड पाए जाते है जिसमें वायु गुजरने पर इसमें कम्पन होता है जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है

 

ग्लोटिस (Glottis)

लेरिंक्स कंठ में एक छिद्र (slit aperture) के रूप में खुलती है, जिसे ग्लोटिस कहते है। यह ग्रसनी के अधर पर स्थित होता है।

वायु लेरिंक्स में ग्लोटिस से ही होकर प्रवेश करती है।

एपिग्लोटिस (Epiglottis)

यह ग्लोटिस पर पाया जाने वाला झिल्लीनुमा ढक्कन है जो भोजन को निगलते समय ग्लोटिस छिद्र को ढक लेता है। यह प्रत्यास्थ उपास्थि (Elastic Cartilage) का बना होता है।

कंठ की कार्टिलेज (Cartilage of the larynx)

कंठ का निर्माण उपास्थि (Cartilage) के 9 टुकड़े द्वारा हैं। जो निम्न है-

  • थाइरोइड उपास्थि इसे एडम का एप्पल (Adam’s Apple) भी कहते है।
  • क्रिकॉयड उपास्थि
  • ऐरिटीनॉइडस
  • सैंटोरिनी की उपास्थि
  • क्युनिफॉर्म उपास्थि

 

वाक् तन्तु (Vocal cord)

लेरिंक्स श्वसन मार्ग के साथ ध्वनी उत्पादन का कार्य भी करता है।   इसमें ध्वनि उत्पादन के लिए वाक् तन्तु (Vocal cord) पाए जाते हैं। जो झिल्लीनुमा होते है ।

 

श्वास नली (Trachea)

श्वास नली (Trachea) C आकार में उपास्थिमय छल्लों (Cartilage Ring) से बनी नलिका है। यह वक्षीय गुहा में जाकर दो शाखाओं दांयी एंव बांयी में बंट जाती है, जिन्हें श्वसनी (Bronchi) कहते हैं। श्वास नली में कूटस्तरित पक्ष्माभी स्तम्भाकार उपकला (Pseudo Stratified Ciliated Columnar Epithelium) पायी जाती है।

 

प्रत्येक श्वसनी फेफड़ों में जाकर छोटी-छोटी नलिकाओं में विभक्त हो जाती है, जिन्हें क्रमशः द्वितीयक श्वसनी (Secondary Bronchi), तृतीयक श्वसनी (Tertiary Bronchi) कहते है।

 

तृतीयक श्वसनी (Tertiary Bronchi) छोटी-छोटी नलिकाओं शाखित नलिकाओं में विभक्त होती है। जिनको श्वसनिकाएँ (bronchioles) कहते हैं।

इन श्वसनिकाओं के अंतिम सिरे कुपिका (Alveoli) में खुलते है।

 

मानव श्वसन तन्त्र (Human Respiratory System in Hindi)

श्वसन अंग (Respiratory organs)

फेफड़े या फुफ्फुस (Lungs)

फेफड़े फुफ्फुसीय गुहा (Pleural Cavities) में स्थित होते है। ये संख्या में दो,शंकुवाकार, गुलाबी ठोस तथा स्पंजी होते है।

फुफ्फुसीय गुहा (Pleural cavity) में लसिका भरी रहती है, जिसे फुफ्फुसीय द्रव (Pleural fluid) कहते हैं । जो ग्लाइकोप्रोटीन है तथा प्लुरा द्वारा स्त्रावित किया जाता है।

प्रत्येक फुफ्फुसीय गुहा (Pleural cavity) के चारों ओर से फुफ्फुसावरण (Pleural Membrane or Pleura) घेरे रहता है। इस फुफ्फुसावरण (Pleural Membrane) के दो भाग होते है

  • Parietal Pleura देह भीति से लगा हुआ आवरण
  1. Visceral Pleura फेफड़ों से लगा आवरण

मानव के बांयें फेफड़े में दो पिण्ड (Lobes) होते है। जिनको सुपीरियर (Superior) तथा इनफीरियर (inferior) पिण्ड तथा दायें में तीन पिण्ड होते है, जिनको सुपीरियर, मिडिल, इनफीरियर पिण्ड कहते है।

दोनों फेफडों के बीच मिडिया स्टीनम नामक अवकाश होता है।

कुपिका (Alveoli)

श्वसनिकाएँ (bronchioles) के अंतिम सिरे प्रत्येक फेफड़ों में जाकर गुब्बारेनुमा संरचना बना लेती है, जिनको कुपिका (Alveoli) कहते है। मानव के फेफड़ों में लगभग 30-35 करोड़ कुपिकाएँ (Alveoli) पाई जाती है।

 

कुपिकाएँ फुफ्फुस की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई (Structural and functional unit) होती है।

कुपिकाओं की पतली भित्ति शल्की उपकला (Squamous Epithelium) की बनी होती है। कुपिकाओं की भित्ति में सूक्ष्म छिद्र (Micro pore) पाये जाते हैं। इन्हें “कुहन के रन्ध्र (Pores of Kuhn)” कहते हैं।

 

मानव में श्वसन  की क्रियाविधि (Mechanism of respiration in human)

अंत:श्वसन (Inspiration)

अंत:श्वसन के समय डायफ्राम (Diaphragm) तथा अन्तरापर्शुक पेशियों (Intercostal muscle) में संकुचन (Contraction) होते है। डायफ्राम चपटा होकर उदर गुहा की ओर खिसक जाता है। पसलियाँ बाहर तथा उपर की तरफ तथा उरोस्थि (Sternum) अधर व अग्र भाग की ओर खिसक जाता है।

वक्षीय गुहा (Thoracic cavity) का आयतन बढ़ जाता है, व फेफड़ों पर देहगुहा द्रव का दबाव घटता है फेफड़े फैल जाते हैं व फेफडों में वायुदाब, वायुमंडलीय दाब की तुलना में 1-3mmHg तक घट जाता है व बाहर की वायु निम्न मार्ग से फेफड़ों में जाती है –

नासाछिद्र – नासामार्ग –ग्रसनी– ग्लोटिस – श्वास नली – प्राथमिक श्वसनी – द्वितीयक श्वसनी – तृतीयक श्वसनी ––श्वसनिका ––कुपिका

 

बहि:श्वसन (Expiration)

बहि :श्वसन के दौरान डायफ्राम अन्तरापर्शुक पेशियाँ (Intercostal muscle) शिथिल (Relax) हो जाती हैं, इससे डायफ्राम, उरोस्थि (Sternum) तथा पसलियाँ (Ribs) अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है। वक्षीय गुहा का आयतन (Volume) घट जाता है, फेफडों का वायुदाब दबा वायुमंडलीय दाब की तुलना में बढ़ जाता है। इससे फेफड़ों में भरी वायु श्वसन मार्ग से होती हुई बाहर निकल जाती है।

 

 

गैसों का विनिमय (Exchange of gases)

मानव में गैसों का विनिमय (Exchange of gases) दो प्रकार से होता है। जिनको बाह्य तथा अन्तः श्वसन (External and Internal Respiration) कहा जा सकता है।

कुपिकाओं में गैसों विनिमय (Exchange of gases in alveoli)

फेफडों में O2 व CO2 का कुपिकाओं में विनिमय बाह्य श्वसन (External Respiration) कहलाता है। इस श्वसन को “हिमेटोसिस” भी कहते हैं।

कुपिका में उपस्थित O2 का आंशिक दाब (PO2) 104 mmHg होता है व धमनी रुधिर में इसका मान 40 mm of Hg होता है, जिससे  कुपिका से O2 निकलकर धमनी रुधिर में चली जाती है।

कुपिका में उपस्थित CO2 का आंशिक दाब (PCO2) mmHg होता है जबकि धमनी रुधिर में इसका मान 46 mmHg होता है, जिससे CO2 धमनी रुधिर से निकलकर कुपिका में आ जाती है।

 

ऊतकों में गैसों विनिमय (Exchange of gases in tissue)

ऑक्सीजनित रुधिर O2 को लेकर ऊतकों तक जाता है। तथा ऊतकों तथा रुधिर के मध्य गैसों का आदान-प्रदान होता है। जिसे अन्तः श्वसन (Internal Respiration) कहते है।

ऊतकों में O2 का आंशिक दाब (PO2) 40mmHg जबकि धमनी में  95mmHg होता है जिससे रक्त धमनी से ऊतकों में चला जाता है। इसी प्रकार ऊतकों में CO का आंशिक दाब (PCO2) 45mmHg जबकि शिरा में 40 mmHg होता है जिससे रक्त ऊतकों से शिरा में चला जाता है।

गैसों का परिवहन (Transport of gases)

ऑक्सीजन का परिवहन

O2 का परिवहन दो रूपों में होता है –

  • प्लाज्मा के साथ घुलित अवस्था में O2का परिवहन

100ML ऑक्सीजनित रुधिर में 20ml ऑक्सीजन होती है। इसमें से 0.3ml से 0.6ml ऑक्सीजन प्लाज्मा के साथ घुलित अवस्था में परिवहित होते है।

  • ऑक्सी-हीमोग्लोबिन के रूप में O2का परिवहन

ऑक्सी-हीमोग्लोबिन के रूप में 97-99% ऑक्सीजन  का परिवहन होता है।

 

हीमोग्लोबिन (Hemoglobin)

 

हीमोग्लोबिन एक महत्वपूर्ण प्रोटीन है जो रक्त में पाया जाता है और ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाने में मदद करता है। यह लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है और उन्हें अपने अधिकांश ऑक्सीजन परिवहन करने के लिए संचित करता है।

हीमोग्लोबिन में एक विशेष प्रोटीन शृंग, हीम, अवस्थित होता है जो ऑक्सीजन को अपशिष्ट करने की क्षमता रखता है। जब ऑक्सीजन रक्त कोशिकाओं से जुड़ता है, तो हीमोग्लोबिन में अपेक्षित प्रकार से ऑक्सीजन मोलेक्यूल जोड़े जाते हैं, जिससे हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को अधिक प्रभावी रूप से परिवहन कर सकता है।

हीमोग्लोबिन का महत्वपूर्ण कार्य शरीर के विभिन्न अंगों और ऊतकों को आवश्यक ऑक्सीजन से पूर्ण करना है। जब रक्त हीमोग्लोबिन से लय उत्पन्न करता है, तो ऑक्सीजन ऊतकों और ऊतकों में सामान्य जीवन के कार्यों के लिए उपयुक्त स्तर पर पहुंचाया जाता है।

साथ ही, हीमोग्लोबिन भी अन्य अत्यंत महत्वपूर्ण आयरन-युक्त पदार्थों के परिवहन के लिए उपयोगी होता है, जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड। इस प्रकार, हीमोग्लोबिन रक्त प्रवाह के माध्यम से शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के उपयोगी परिवहन के लिए महत्वपूर्ण होता है।

 

IMPORTANT FACTS RELATED TO HIMOGLOBIN:

 

हीमोग्लोबिन RBC में पाया जाने वाला श्वसन वर्णक है, इसमें हीम प्रोस्थेटिक समूह तथा ग्लोबिन प्रोटीन होती है।

हीम प्रोस्थेटिक समूह में आयरन Fe2+ अवस्था में होता है।

O2 हीमोग्लोबिन  के साथ जुड़कर इसके परिवहन में सहायता करता है।

हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृपत्ता व O2 की सांद्रता के मध्य आरेखित वर्क को “वियोजन वक्र” कहते हैं ।

यदि CO2 की सांद्रता बढती है तो हिमोग्लोबिन की संतृपता घटती है।

CO2 की उच्च सांद्रता पर वियोजन वक्र दांयीं तरफ खिसक जाता है इसे “बोहर प्रभाव” भी कहते हैं ।

 

हीमोग्लोबिन की O2 की तुलना में CO के साथ 230-250 गुणा ज्यादा बंधन क्षमता होती है जिसके कारण हीमोग्लोबिन CO के साथ एक कार्बोक्सी-हिमोग्लोबिन बनाता है, इसका रंग काला होता है, कार्बोक्सीहिमोग्लोबिन में आयरन Fe3+ अवस्था में आ जाता है। जो जानलेवा होता है। इसके कारण मानव की मृत्यु हो जाती है।

 

कार्बनडाइऑक्साइड का परिवहन

CO2 का परिवहन निम्न तीन प्रकार से होता है-

 

  1. प्लाज्मा में घुलित अवस्था में (7%):- रक्त प्लाज्मा में उपस्थित जल के साथ CO2क्रिया करके कार्बोनिक अम्ल बनाती है और इसी घुलित अवस्था में 7% CO2का परिवहन होता है।

NOTE: 100 ml रुधिर लगभग 0.3 ml CO2 का परिवहन प्लाज्मा के साथ घुलित अवस्था में करता है।

 

  1. बाइकार्बोनेट के रूप में (70%):- रक्त प्लाज्मा में बना कार्बोनिक अम्ल अत्यधिक आयनीकरण के कारण जल्दी ही H+व HCO32-में वियोजित हो जाता है।

3.कार्बो-मीनो हिमोग्लोबिन के रूप में (23%):- लगभग 20-25 प्रतिशत CO2 का हिमोग्लोबिन द्वारा कार्बेमिनो-हिमोग्लोबिन के रूप में वहन की जाती है। यह बंधन CO2 के आंशिक दाब पर निर्भर करती है।

 

संवातन का नियमन (Regulation of Breathing)

श्वसन का नियंत्रण शरीर के लिए एक महत्वपूर्ण क्रिया है, जो आवश्यक ऑक्सीजन प्रदान करता है और कार्बन डाइऑक्साइड को निकालता है।

श्वसन का नियंत्रण श्वसन तंत्र द्वारा होता है, जो नस्यांतरित तंत्र और मस्तिष्क के केंद्रीय नियंत्रण के साथ-साथ काम करता है।

श्वसन का नियंत्रण उन संकेतों द्वारा किया जाता है जो श्वसन मार्ग को खोलने और बंद करते हैं, जिससे वायु श्वसन शुरू होता है।

मस्तिष्क के केंद्रीय नियंत्रण से आवश्यक संकेत भेजे जाते हैं जो श्वसन की दर को नियंत्रित करते हैं, जैसे कि योगासन या शांति की स्थिति में श्वसन गहरा और धीमा हो सकता है।

इस प्रकार, श्वसन का नियंत्रण शरीर के संतुलन और कार्यों को सुनिश्चित करता है।

 

 

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