कर्नाटक युद्ध, कारण, युद्ध के परिणाम

कर्नाटक युद्ध, कारण, युद्ध के परिणाम :

1742ई. के बाद फ्रांसीसी भी व्यापारिक लाभ कमाने की तुलना में राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में सक्रिय हो गये।परिणामस्वरूप अंग्रेज और फ्रांसीसियों में युद्ध प्रारंभ हो गया। अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच लङे गये युद्ध को कर्नाटक का युद्ध के नाम से जाना गया।कोरोमंडल समुद्र तट पर स्थित क्षेत्र जिसे कर्नाटक या कर्णाटक कहा जाता था। परंतु अधिकार को लेकर इन दोनों कंपनियों में लगभग बीस वर्ष तक संघर्ष हुआ। कोरोमंडल समुद्रतट पर स्थित किलाबंद मद्रास और पांडिचेरी क्रमशः अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की सामरिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण बस्तियाँ थी। तत्कालीन कर्नाटक दक्कन के सूबेदार के नियंत्रण में था,  जिसकी राजधानी आरकाट थी।

र्नाटक युद्ध, कारण, युद्ध के परिणाम

प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-48ई.)-

  • किसके बीच लड़ाई हुई: अंग्रेजी और फ्रांसीसी सेना।
  • शामिल लोग: जोसेफ फ्रांकोइस डुप्लेक्स (फ्रांसीसी गवर्नर-जनरल), मेजर स्ट्रिंगर लॉरेंस (ब्रिटिश), अनवरुद्दीन खान (कर्नाटक के नवाब)।
  • कब: 1746 – 1748
  • कहाँ: कर्नाटक क्षेत्र, दक्षिणी भारत
  • परिणाम: अनिर्णायक.
  • इस युद्ध का तात्कालिक कारण था अंग्रेज कैप्टन बर्नेट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना द्वारा कुछ फ्रांसीसी जहांजों पर अधिकार कर लेना।
  • बदलें में फ्रांसीसी गवर्नर (मारीशस) ला बूर्दने के सहयोग से डूप्ले ने मद्रास के गवर्नर मोर्स को आत्म समर्पण के लिए मजबूर कर दिया,इस समय अंग्रेज फ्रांसीसियों के सामने बिल्कुल असहाय थे।
  • प्रथम कर्नाटक युद्ध के समय ही कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन ने महफूज खां के नेतृत्व में दस हजार सिपाहियों की एक सेना का फ्रांसीसियों पर आक्रमण के लिए भेजा, कैप्टन पैराडाइज के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने सेंटथोमे के युद्ध में नवाब को पराजित किया।
  • जून,1748ई. में अंग्रेज रियर-एडमिरल बोस्काबेन के नेतृत्व में एक जहांजी बेङा ने पांडिचेरी को घेरा,परंतु सफलता नहीं मिली।
  • यूरोप में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच ऑस्ट्रिया में लङे जा रहे उत्तराधिकार युद्ध की समाप्ति हेतु 1749ई. में ऑक्सा-ला-शैपेल नामक संधि के सम्पन्न होने पर भारत में भी इन दोनों कंपनियों के बीच संघर्ष समाप्त हो गया। मद्रास पुनःअंग्रेजों को मिल गया।

Quick Notes

  • कार्नेटिक युद्ध – I (1746-48 ई०)
  • यह युद्ध ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध, जो कि 1740 ई० में आरंभ हुआ, का विस्तार मात्र था  |
  • डूप्ले 1741 ई० में पांडिचेरी का गवर्नर बनकर आया तथा 1742 ई० में अपनी भारतीय सेना का गठन किया।
  • अंग्रेजों ने 1746 ई० में अपनी भारतीय सेना का गठन किया।
  • 1746 ई० में एक अंग्रेज सेनापति बारनेट ने फ्रांसीसियों के कुछ जहाज पकड़ लिये।
  • डूप्ले के आमंत्रण पर 3000 सैनिकों को लेकर मारीसस के फ्रेंच गवर्नर ला-बुर्डीने ने मद्रास को घेर लिया। परंतु, उसने कुछ राशि लेकर मद्रास नगर अंग्रेजों को लौटा दिया।
  • परंतु डूप्ले ने इसकी मान्यता नहीं दी एवं मद्रास को अपने अधिकार में कर लिया, परंतु पांडिचेरी से 18 मील दूर सेंट डेविड पर अधिकार न कर सका।
  • दोनों कंपनियों के आपसी टकराव से भंग हो रही शांति को कायम रखने के उद्देश्य से कर्नाटक के नवाब अनवरूद्दीन ने दोनों कंपनियों को युद्ध बंद करने का आदेश दिया।
  • डूप्ले ने मद्रास जीतकर अनवरूद्दीन को सौंपने का प्रस्ताव दिया था, परंतु बाद में उसके द्वारा ऐसा नहीं किये जाने पर अड्यार नदी के किनारे सेंट टॉमे नामक स्थान पर नवाब की सेना (महफूज खाँ के नेतृत्व में) तथा फ्रेंच सेना (कैप्टन पेराडाइज के नेतृत्व में) के बीच युद्ध हुआ इस युद्ध में अंग्रेजों ने नवाब को मदद की।
  • फ्रांसीसियों की लगभग 1000 की छोटी संख्या वाली सेना ने 10000 की बड़ी संख्या वाली नवाब की सेना को परास्त कर दिया।
  • एक्स-ला-शॉपल संधि (1748 ई०) के द्वारा यूरोप में फ्रांस एवं ब्रिटेन के बीच युद्ध समाप्त हो गया तथा साथ ही भारत में भी प्रथम कार्नेटिक युद्ध भी समाप्त हो गया।

 

 

द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-54ई.) –

  • के बीच लड़ाई: हैदराबाद के निजाम के पदों के लिए विभिन्न दावेदार, और कर्नाटक के नवाब; प्रत्येक दावेदार को ब्रिटिश या फ्रांसीसी द्वारा समर्थित किया जा रहा है।
  • शामिल लोग: मुहम्मद अली और चंदा साहिब (कर्नाटक या आर्कोट के नवाब के लिए); मुजफ्फर जंग और नासिर जंग (हैदराबाद के निजाम के पद के लिए)।
  • कब: 1749 – 1754
  • कहां: कर्नाटक (दक्षिणी भारत)
  • नतीजा: मुजफ्फर जंग हैदराबाद के निजाम बने। मुहम्मद अली कर्नाटक के नवाब बने।
  • इस युद्ध के समय कर्नाटक के नवाबी के पद को लेकर संघर्ष हुआ,चांदा साहब ने नवाबी के लिए डूप्ले का सहयोग प्राप्तत किया, दूसरी ओर डूप्ले ने मुजफ्फरजंग के लिए दक्कन की सूबेदारी का समर्थन किया।
  • अंग्रेजों ने अनवरुद्दीन और नासिरजंग को अपना समर्थन प्रदान किया।
  • चांदासाहब ने 1749ई. में अंबुर में अनवरुद्दीन को पराजित कर मार डाला तथा कर्नाटक के अधिकांश हिस्सों पर अधिकार कर लिया लेकिन मुजफ्फर जंग दक्कन की सूबेदारी हेतु अपने भाई नासिर जंग से पराजित हुआ। लेकिन 1750में नासिर की मृत्यु के बाद मुजफ्फर दक्कन का सूबेदार बन गया।
  • इस समय दक्षिण भारत में फ्रांसीसियों का प्रभाव चरम पर था इसी बीच राबर्ट क्लाइव जो इंग्लैण्ड से मद्रास एक किरानी के रूप में आया था,1751ई. में 500 सिपाहियों के साथ धारवार पर धावा बोलकर कब्जा कर लिया।
  • शीघ्र ही फ्रांसीसी सेना को आत्मसमर्पण हेतु विवश होना पङा और चांदा साहब की हत्या कर दी गई।
  • फ्रांस स्थित अधिकारियों ने भारत में डूप्ले की नीति की आलोचना करते हुए उसे वापस इंग्लैण्ड बुला लिया तथा उसके स्थान पर गोदहे को 1अगस्त 1754ई. को गवर्नर बनाया गया।
  • डूप्ले के बारे में जे.और.मैरियत ने कहा कि डूप्ले ने भारत की पूंजी मद्रास में तलाश कर भयानक भूल की, क्लाइव ने इसे बंगाल में खोज लिया।

Quick Revision

कार्नेटिक युद्धIII ( 1758-63 ई०)

यह युद्ध भी यूरोपीय संघर्ष का ही एक विस्तार था।

1756 ई० में सप्तवर्षीय युद्ध के आरंभ होते ही भारत में दोनों कंपनियों के बीच शांति की स्थिति समाप्त हो गयी |

फ्रांसीसी सरकार ने काउंट लाली को अप्रैल 1758 में भारतीय प्रदेशों का गवर्नर बनाकर भेजा जो कि एक उग्र स्वभाव का व्यक्ति था।

काउंट लाली ने 1758 ई० में फोर्ट सेंट डेविड पर अधिकार कर लिया तथा तंजौर पर बकाया 56 लाख रुपये हासिल करने के लिए आक्रमण कर दिया।

उधर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल पर अधिकार कर लिया।

1758 ई० में काउंट लाली ने मद्रास का घेरा डाला तथा हैदराबाद से बुस्सी को भी बुला लिया।

‘बुस्सी’ को वापस बुलाना ‘लाली’ की एक बड़ी रणनीतिक भूल थी, इस अवसर पर गवर्नर क्लाइव ने बंगाल से अंग्रेजों की एक सेना हैदराबाद के लिए भेज दी।

सालारजंग एक डरपोक व्यक्ति था तथा उसने अंग्रेजों से संधि कर ली। इसके साथ ही हैदराबाद से फ्रांसीसी प्रभुत्व समाप्त हो गया।

1700 ई० में सर आयर कूट की अंग्रेज सेना ने वान्डिवाश-युद्ध में फ्रांसीसी सेना को बुरी तरह परास्त कर दिया।

वान्डिवाश युद्ध के पश्चात फ्रांसीसियों का प्रतिरोध समाप्त हो गया तथा अब वे मात्र पांडिचेरी (जो कि अंग्रेजों ने जीत लेने के बावजूद उन्हें लौटा दिया) तक सीमित रह गये।

 

 

तृतीय कर्नाटक युद्ध (1757-63 ई.)-

तीसरा कर्नाटक युद्ध – विवरण

तीसरे कर्नाटक युद्ध या वांडीवाश की लड़ाई के बारे में तथ्य

के बीच लड़ाई: फ्रांसीसी और ब्रिटिश

शामिल लोग: काउंट डी लैली (फ्रेंच जनरल), ब्रिटिश लेफ्टिनेंट-जनरल सर आइरे कोटे

कब: 1757 – 1763

कहां: कर्नाटक, दक्षिण भारत

परिणाम: ब्रिटिश जीत

 

युद्ध का तात्कालिक कारण

इस युद्ध का तात्कालिक कारण था क्लाइव और वाट्सन द्वारा बंगाल स्थित चंद्रनगर पर अधिकार करना।

इस युद्ध के अंतर्गत अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच वांडिवाश नामक निर्णायक लङाई लङी गई।

22 जनवरी,1760ई. को लङे गये वांडिवाश के युद्ध में अंग्रेजी सेना को आयरकूट ने तथा फ्रांसीसी सेना को लाली ने नेतृत्व प्रदान किया। इस युद्ध में फ्रांसीसी पराजित हुए, यही पराजय भारत में उनके पतन की शुरुआत थी।

16 जनवरी,1761ई. को पांडिचेरी पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।

तीसरे कर्नाटक युद्ध के प्रभाव

भारत में एक साम्राज्य के निर्माण की फ्रांसीसी उम्मीदें पूरी तरह से धराशायी हो गईं।

इसने ब्रिटेन को भारत में सर्वोपरि यूरोपीय शक्ति के रूप में स्थापित किया। भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की स्थापना का रास्ता साफ था।

फ्रांसीसी विफलता के कारण

अंग्रेजों की श्रेष्ठ नौसैनिक ताकत। वे यूरोप से सैनिकों को ला सकते थे और बंगाल से आपूर्ति भी प्रदान कर सकते थे। फ्रांसीसी के पास संसाधनों को फिर से भरने के लिए ऐसा कोई अवसर नहीं था।

फ्रांसीसी सेना में 300 यूरोपीय घुड़सवार, 2,250 यूरोपीय पैदल सेना, 1,300 सिपाही (सैनिक), 3,000 महारत्न और 16 तोपखाने थे, जबकि अंग्रेजों ने लगभग 80 यूरोपीय घोड़े, 250 देशी घोड़े, 1,900 यूरोपीय इन्फैंट्री, 2,100 सिपाही तैनात किए थे।

ब्रिटेन में मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता थे – तीन महत्वपूर्ण पद। इसके विपरीत, फ्रांसीसी के पास केवल एक मजबूत पद था, पांडिचेरी। इसका मतलब यह था कि अगर पांडिचेरी पर कब्जा कर लिया गया था, तो फ्रांसीसी को वसूली की बहुत कम उम्मीद थी। लेकिन ब्रिटेन अन्य दो ठिकानों में से किसी एक पर भरोसा कर सकता है अगर एक पर कब्जा कर लिया गया था।

प्लासी की लड़ाई-  अंग्रेजों को एक समृद्ध क्षेत्र, अर्थात् बंगाल के लिए खोल दिया।

अंग्रेजों के पास रॉबर्ट क्लाइव, स्ट्रिंगर लॉरेंस और सर आइरे कूट जैसे कई सक्षम और सक्षम सैनिक थे।

Quick Revision

कार्नेटिक युद्धIII ( 1758-63 ई०)

यह युद्ध भी यूरोपीय संघर्ष का ही एक विस्तार था।

1756 ई० में सप्तवर्षीय युद्ध के आरंभ होते ही भारत में दोनों कंपनियों के बीच शांति की स्थिति समाप्त हो गयी |

फ्रांसीसी सरकार ने काउंट लाली को अप्रैल 1758 में भारतीय प्रदेशों का गवर्नर बनाकर भेजा जो कि एक उग्र स्वभाव का व्यक्ति था।

काउंट लाली ने 1758 ई० में फोर्ट सेंट डेविड पर अधिकार कर लिया तथा तंजौर पर बकाया 56 लाख रुपये हासिल करने के लिए आक्रमण कर दिया।

उधर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल पर अधिकार कर लिया।

1758 ई० में काउंट लाली ने मद्रास का घेरा डाला तथा हैदराबाद से बुस्सी को भी बुला लिया।

‘बुस्सी’ को वापस बुलाना ‘लाली’ की एक बड़ी रणनीतिक भूल थी, इस अवसर पर गवर्नर क्लाइव ने बंगाल से अंग्रेजों की एक सेना हैदराबाद के लिए भेज दी।

सालारजंग एक डरपोक व्यक्ति था तथा उसने अंग्रेजों से संधि कर ली। इसके साथ ही हैदराबाद से फ्रांसीसी प्रभुत्व समाप्त हो गया।

1700 ई० में सर आयर कूट की अंग्रेज सेना ने वान्डिवाश-युद्ध में फ्रांसीसी सेना को बुरी तरह परास्त कर दिया।

वान्डिवाश युद्ध के पश्चात फ्रांसीसियों का प्रतिरोध समाप्त हो गया तथा अब वे मात्र पांडिचेरी (जो कि अंग्रेजों ने जीत लेने के बावजूद उन्हें लौटा दिया) तक सीमित रह गये।

 

 

 

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