एकार्थक शब्द

एकार्थक शब्द : ऐसे शब्द, जिनका अर्थ देखने और सुनने में एक–सा लगता है, परन्तु वे समानार्थी नहीं होते हैं। ध्यान से देखने पर पता चलता है कि उनमें कुछ अन्तर भी है

एकार्थक शब्द

एकार्थक शब्द

                                                                  ( अ )

  • आयु-सम्पूर्ण जीवन की अवधि को ‘आयु’ कहते है। जैसे -आप दीर्घायु हों। आपकी आयु लम्बी हो।
    अपयश-स्थायी रूप से दोषी होना।
    अधिक-आवश्यकता से ज्यादा। जैसे- बाढ़ में गंगा में जल अधिक हो जाता है।
    अनुराग- किसी विषय या व्यक्ति पर शुद्धभाव से मन केन्द्रित करना।
    • आसक्ति- मोहजनित प्रेम को ‘आसक्ति’ कहते है।
     अन्तःकरण- विशुद्ध मन की विवेकपूर्ण शक्ति।
    आत्मा- जीवों में चेतन, अतीन्द्रिय और अभौतिक तत्व, जिसका कभी नाश नहीं होता।
    अध्यक्ष- किसी गोष्ठी, समिति, परिषद् या संस्था के स्थायी प्रधान को अध्यक्ष कहते है।
    अर्चना- धूप, दीप, फूल, इत्यादि, से देवता की पूजा।
    अभिनन्दन- किसी श्रेष्ठ का मान या स्वागत।
    आदि साधारणतः एक या दो उदाहरण के बाद ‘आदि’ का प्रयोग होता है।
    आज्ञा-आदरणीय या पूज्य व्यक्ति द्वारा किया गया कार्यनिर्देश।
    आदेश- किसी अधिकारी व्यक्ति द्वारा दिया गया कार्यनिर्देश।
  • आदरणीयअपने से बड़ों या महान् व्यक्तियों के प्रति सम्मानसूचक शब्द।
    अभिलाषा-किसी विशेष वस्तु की हार्दिक इच्छा।
     अलौकिक- उत्तम गुणवाला
    अस्वाभाविक- प्रकृति-विरुद्ध
    अनभिज्ञ- जिसे पता न हो
    अज्ञात- जिसका पता न हो
    अपरिचित- नावाकिफ
    आशंका- जान जाने का खतरा
    अनुदान- आर्थिक सहायता
    • अगोचर- जिसे इन्द्रियों द्वारा नहीं प्रज्ञा द्वारा जाना जाय
    अज्ञेय- जिसका बोध असंभव हो
    अनुरूप-रूप के अनुसार
    अनुकूल- अपने पक्ष के मुताबिक
    अनुभव- अभ्यासादि द्वारा प्राप्त ज्ञान
    अनुभूति- चिन्तन-मननादि द्वारा आंतरिक ज्ञान
    अभिज्ञ- अनेक विषयों का ज्ञानी
    अनबन- दो व्यक्तियों का आपस में न बनना
    अमूल्य– जिसकी कीमत कोई न दे सके
    अर्पण- अपने से बड़ों के लिए
    अन्वेषण- अज्ञात पदार्थ स्थानादि का पता लगाना
    अनुसंधान- छानबीन, जाँच-पड़ताल
    अशुद्धि- लायी गई भूल
  • अपराध-सामाजिक कानून का उल्लंघन अपराध है।
  • अवस्था-जीवन के कुछ बीते हुए काल या स्थिति को ‘अवस्था’ कहते है।
  • अहंकार-मन का गर्व। झूठे अपनेपन का बोध।
    अनुग्रह-कृपा। किसी छोटे से प्रसत्र होकर उसका कुछ उपकार या भलाई करना।
    अनुकम्पा- बहुत कृपा। किसी के दुःख से दुखी होकर उसपर की गयी दया।
    अनुरोध- अनुरोध बराबरवालों से किया जाता है।
    अभिमान- प्रतिष्ठा में अपने को बड़ा और दूसरे को छोटा समझना।
    अस्त्र- वह हथियार, जो फेंककर चलाया जाता है।

                                                              आ

  • आधि-मानसिक कष्ट
    • आह्लाद-वह प्रसन्नता, जो क्षणिक, पर तीव्र भावों से संबंधित हो
    आगामी- आगे आनेवाला समय
    आराधना- किसी देवता या गुरुजन के समक्ष दया याचना
    अभिनेत्री- रंगमंच पर नारी की भूमिका अदा करनेवाली
    आमंत्रण- किसी समारोह में सम्मिलित होने के लिए सामान्य बुलावा

 

                                                                     ( इ )

  • इत्यादि-साधारणतः दो से अधिक
    इच्छा-किसी भी वस्तु की साधारण चाह।
    ईर्ष्या- दूसरों की उन्नति से जलना

                                                 

                                                                          ( उ )

  • उत्साह-काम करने की बढ़ती हुई रुचि।
    उद्योग-उद्यम, परिश्रम
    उपाय- समस्या, सुलझना
    उल्लास- किसी अभिलषित पदार्थ की प्राप्ति
  • उपासना- किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक निष्ठ साधना करना
    उपकरणसामग्री जो किसी कार्य की सिद्धि के लिए जुटायी जाती है
    • उपादान-किसी पदार्थ के निर्माण करने की साम्रगी
    उदाहरण- किसी बात को सिद्ध करने के दिया गया प्रमाण

 

 

                                                    ( क, ख, ग )

  • कर्मठ जिस काम पर लगाया जाय उसपर लगा रहनेवाला।
  • कृपा- दूसरे के कष्ट दूर करने की साधरण चेष्टा।
  • कलंक कुसंगति के कारण चरित्र पर दोष लगाना।
    काफी-आवश्यकता से अधिक। जैसे- गर्मी में भी गंगा में काफी पानी रहता है।
    • कष्ट-आभाव या असमर्थता के कारण मानसिक और शारीरिक कष्ट होता है।
    क्लेश- यह मानसिक अप्रिय भावों या अवस्थाओं का सूचक है।
    कंगाल-जिसे पेट पालने के लिए भीख माँगनी पड़े।
    कुशल- जो हर काम में मानसिक तथा शारीरिक शक्तियों का अच्छा प्रयोग करना जानता है।
    क्रांति- जनसाधारण द्वारा शासन को उलटने के लिए किया गया संघर्ष
    खेद- किसी गलती पर दुःखी होना। जैसे- मुझे खेद है कि मैं समय पर न पहुँच सका।
    खटपट- दो पक्षों के बीच झगड़ा
    ग्रन्थ-इससे पुस्तक के आकर की गुरुता और विषय के गाम्भीर्य का बोध होता है।
    ग्लानि- किसी पाप या अपराध का अफ़सोस

 

                                                         ( प, भ )

  • पाप नैतिक नियमों का उल्लंघन
  • पारितोषिक किसी प्रतियोगिता में विजयी को
    पुरस्कार- किसी अच्छे काम के लिए
  • पास-अधिकार के सामीप्य का बोध।
  • प्रेम-व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है।
  • पुस्तक-साधारणतः सभी प्रकार की छपी किताब|
    प्रणाम- बड़ों को ‘प्रणाम’ किया जाता है
  • पूजनीय- सम्मानसूचक शब्द।
    पीड़ा-रोग-चोट आदि के कारण शारीरिक ‘पीड़ा’ होती है।
    पत्नी- किसी की विवाहिता के लिए
    पुलिन- नदी तट की गीली भूमि
    परिचर्या- रोगी की सेवा
    प्रतिदान- बदले में कुछ देना
    पुत्र- अपना बेटा
    प्रदान बड़ों की ओर से छोटों को
    प्राणिपात- चरणों को इस प्रकार छूना जिसमें नाक, घुटने और वक्षस्थल भी धरती का स्पर्श हों
    प्रार्थना- ईश्वर या बड़ों के लिए
    भिन्न- अलग होना
    भ्रम- जो नहीं है उसे मान बैठना
  • प्रणय-सख्यभाव मिश्रित अनुराग।

  

                                       ( स )

स्वाधीनता-‘स्वाधीनता’ देश या राष्ट के लिए प्रयुक्त होती है।
सखा-जो आपस में एकप्राण, एकमन, किन्तु दो शरीर है।
सहानुभूति- दूसरे के दुःख को अपना दुःख समझना।
स्त्रेह-छोटों के प्रति प्रेमभाव रखना।
सम्राट- राजाओं का राजा।
शुश्रूषा- दीन-दुखियों और रोगियों की सेवा
स्त्रेह- अपने से छोटों के प्रति ‘स्त्रेह’ होता है।
संदेह- दुविधा होना (साँप को रस्सी या रस्सी को साँप)
शंका- शक
सैकत- नदी तट की रेतीली भूमि
साथी- जो जीवन भर साथ निभाए
संकोच- किसी काम के करने में हिचक होना
स्त्री- कोई भी औरत।
संत- पवित्र, निष्काम, निर्विरोध जीवन जीनेवाला
 स्वच्छंदता- नियम पालन नहीं कर स्वच्छंद रहना
सहयोग- किसी काम को मिल-जुलकर करना
सहायता- किसी काम में मदद करना/ हाथ बँटाना

स्वागत-अपनी सभ्यता और प्रथा के वश किसी को सम्मान देना।

  • साहस-भय पर विजय प्राप्त करना।
    सेवा-गुरुजनों की टहल।
    सुहृद्- अच्छा हृदय रखनेवाला।
    साधारण-  जिसमें कोई विशिष्ट गुण या चमत्कार न हो।
    सामान्य- जो बात दो अथवा कई वस्तुओं तथा व्यक्तियों आदि में समान रूप से पायी जाती हो।
    स्वतंत्रता – ‘स्वतंत्रा’ का प्रयोग व्यक्तियों के लिए होता है।
    शोक-किसी की मृत्यु पर दुःखी होना।
  • शस्त्र-वह हथियार जो हाथ में थामकर चलाया जाता है। जैसे- तलवार।
    सभापति-किसी आयोजित बड़ी अस्थायी सभा के प्रधान को ‘सभापति’ कहते है।

 

( द )

  • देखना-सामान्य अर्थ में
    दर्शन करना-सम्मान अर्थ में
    दुर्मूल्य- जिसका मूल्य हैसियत से ज्यादा हो
    दृष्टांत- किसी बात की परिपुष्टि के लिए दिया गया तथ्य
    दर्प- नियम के विरुद्ध काम करने पर भी घमण्ड करना।
    दोष- उचित-अनुचित का भाव
  • दीन-निर्धनता के कारण जो दयापात्र हो चुका है।
    दया-दूसरे के दुःख को दूर करने की स्वाभाविक इच्छा।
    दुःख- साधारण कष्ट या मानसिक पीड़ा।
    दक्ष-जो हाथ से किए जानेवाले काम अच्छी तरह और जल्दी करता है।

 

                                                ( न )

  • निर्बला-कमजोर स्त्रियों के लिए
    न्याय-इन्साफ करना
    निपुण-जो अपने कार्य का पूरा ज्ञान प्राप्त कर उसका अच्छा जानकार बन चुका है।
    निबन्ध- ऐसी रचना, जिसमें विषय गौण हो और लेखक का व्यक्तित्व और उसकी शैली प्रधान हो।
    निधन- महान् और लोकप्रिय व्यक्ति की मृत्यु को ‘निधन’ कहा जाता है।
    निकट- सामीप्य का बोध। जैसे- मेरे गाँव के निकट एक स्कूल है।
    निर्णय- फैसला करना
    नमस्कार- बराबरवालों के लिए
    नमस्ते- बराबरवालों के लिए
    नायिका- नाटक या उपन्यास की मुख्य नारी
    निमंत्रण- भोजनादि के लिए विशेष बुलावा

 

 

                                                                          ( ब )

 

 

  • बुद्धि- कर्तव्य का निश्रय करती है।
  • बड़ाई- प्रशंसा
    बड़प्पन- महत्ता, स्वभाव की उच्चता
  • बालक-कोई भी लड़का।
    बड़ा-आकार का बोधक। जैसे- हमारा मकान बड़ा है।
    बहुत- परिमाण का बोधक। जैसे- आज उसने बहुत खाया।
    बहुमूल्य- बहुत कीमती वस्तु, पर जिसका मूल्य-निर्धारण किया जा सके।
    बड़ापन- अकार में बड़ा होना
    बचपन- बच्चे की अवस्था
    बधाई- किसी की उपलब्धि से अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुए उसकी उन्नति की शुभकामना
    बन्धु- आत्मीय मित्र। सम्बन्धी।

 

 

                                                                       ( म )

 

  • मित्र- वह पराया व्यक्ति, जिसके साथ आत्मीयता हो।
  • महाशय-सामान्य लोगों के लिए प्रयोग होता है।
    मन-मन में संकल्प-विकल्प होता है।
    महोदय- अपने से बड़ों को या अधिकारियों के लिए प्रयोग होता है।
    महिला-  स्त्री।
    मृत्यु- सामान्य शरीरान्त को ‘मृत्यु’ कहते है।

 

                                                                           ( व )

 

  • व्याधि- शारीरिक कष्ट
    व्रीडा- स्वाभाविक लज्जा होना
  • विश्र्वास-सामने हुई बात पर भरोसा करना|
    विषाद-अतिशय दुःखी होने के कारण किंकर्तव्य विमूढ़ होना।
    विपरीत- उल्टा होना
    वेदना- शारीरिक कष्ट
    विज्ञ- किसी खास विषय का ज्ञानी
    विद्रोह शासन के विरुद्ध कार्य
    वन्दना- देव बुद्धि से स्तुति करते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम करना
    व्यथा- किसी आघात के कारण मानसिक अथवा शारीरिक कष्ट या पीड़ा।
  • विच्छृंखलता- उद्दण्डता

 

                                                       ( त्र )

  • ऋषि-सत्य का साक्षात्कार करनेवाला
    त्रुटि-कमी का भाव प्रकट होना
    त्रास- भयंकर डर
    यातना- आघात में उत्पत्र कष्टों की अनुभूति (शारीरिक) ।
    क्षोभ- सफलता न मिलने या असामाजिक स्थिति पर दुखी होना।
    ज्ञान- इन्द्रियों द्वारा प्राप्त हर अनुभव।
    राजा- एक साधारण भूपति।
    लेख- ऐसी गद्यरचना, जिसमें वस्तु या विषय की प्रधानता हो।
    लज्जा- शर्म (साधारण अर्थ में)
    घमण्ड- सभी स्थितियों में अपने को बड़ा और दूसरे को हीन समझना।
    चित्त- चित्त में बातों का स्मरण-विस्मरण होता है।

 

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