समास की परिभाषा, प्रकार, उदाहरण
समास :- दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं।
‘समास’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है – ‘सम्’ और ‘आस्’|
सम का अर्थ होता है निकट तथा आस् का अर्थ है बैठना|
सामासिक शब्द :- समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न लुप्त हो जाते हैं।
सुलोचना | सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी |
लंबोदर | लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी |
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समास – विग्रह :- सामासिक शब्दों के बीच के संबंध को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है।
समस्त पद | समास–विग्रह |
सुलोचना | सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी |
पीतांबर | पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण |
लंबोदर | लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी |
दुरात्मा | बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट) |
पूर्वपद और उत्तरपद :- समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं।
जैसे–यथासंभव, गंगाजल, अनंत, घनश्याम, नवरात्र, दिन-रात, पीतांबर आदि। … उदाहरण के लिए यथासंभव सामासिक शब्द में यथा, पूर्व पद एवं संभव, उत्तर पद है। यहां पूर्व पद प्रधान है और अव्यय है।
समासSamके भेद
समास के छः भेद होते हैं :-
- अव्ययीभाव
- तत्पुरुष
- द्विगु
- द्वन्द्व
- बहुव्रीहि
- कर्मधारय
- अव्ययीभाव समास
जिस समास का पहला पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। उपसर्ग युक्त पद भी इस समास के अंतर्गत माने जाते है
जैसे :- यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) न् इनमें यथा और आ अव्यय हैं।
कुछ अन्य उदाहरण :-
- हाथोंहाथ – हाथ ही हाथ में
- हररोज़ – रोज़-रोज़
- रातोंरात – रात ही रात में
- यथासामर्थ्य – सामर्थ्य के अनुसार
- यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
- यथाविधि- विधि के अनुसार
- यथाक्रम – क्रम के अनुसार
- भरपेट- पेट भरकर
- बेशक – शक के बिना
- प्रतिवर्ष – हर वर्ष
- प्रतिदिन – प्रत्येक दिन
- निस्संदेह – संदेह के बिना
- निडर – डर के बिना
- आजीवन – जीवन-भर
- तत्पुरुष समास
जिस समास का उत्तरपद (द्वितीय पद) प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :- तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा रचित
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं :-
- संबंध तत्पुरुष (गंगाजल – गंगा का जल)
- संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर – रसोई के लिए घर)
- कर्म तत्पुरुष (गिरहकट – गिरह को काटने वाला)
- करण तत्पुरुष (मनचाहा – मन से चाहा)
- अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला – देश से निकाला)
- अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास – नगर में वास)
तत्पुरुष समास के प्रकार
- लुप्तपद तत्पुरुष समास
- लुप्त चिन्ह तत्पुरुष समास
- नञ तत्पुरुष समास
- द्विगु समास
- कर्मधारय तत्पुरुष समास
- उपपद तत्पुरुष समास
- अलूक तत्पुरुष समास
जैसे :-
- असभ्य न सभ्य अनंत न अंत
- अनादि न आदि असंभव न संभव
- हस्तलिखित – हस्त से लिखित (करण तत्पुरुष)
- स्वर्गवास – स्वर्ग में वास (अधिकरण तत्पुरुष)
- सूर्योदय – सूर्य का उदय (संबंध तत्पुरुष)
- रोगमुक्त – रोग से मुक्त (अपादान तत्पुरुष)
- मुंहतोड़ – मुंह को तोड़ने वाला (कर्म तत्पुरुष)
- देवालय – देव के लिए आलय (संप्रदान तत्पुरुष)
- जेबकतरा – जेब को कतरने वाला (कर्म तत्पुरुष)
- कर्मधारय समास
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और तथा इस समास में प्रायः प्रथम पद विशेषण होता है तथा दूसरा पद विशेष्य होता है |
उपमान और उपमेय से युक्त पद भी इस समास के अंतर्गत माने जाते है।
जैसे :-
- सज्जन – सत् (अच्छा) जन
- संसार सागर – सागर रूपी संसार
- पीतांबर – पीला अंबर (वस्त्र)
- परमात्मा – परम है जो आत्मा
- नीलकमल – नीला कमल
- नरसिंह – नरों में सिंह के समान
- देहलता – देह रूपी लता
- दहीबड़ा – दही में डूबा बड़ा
- कमलनयन – कमल के समान नयन
- द्विगु समास
इस समास में पहला पद कोई संख्यावाची शब्द होता है और पूरा पद किसी समूह का बोध कराता है विग्रह करने पर अंत में समाहार या समूह लिख दिया जाता है।
जैसे :-
- नवग्रह – नौ ग्रहों का समूह
- दोपहर – दो पहरों का समाहार
- त्रिलोक – तीन लोकों का समाहार
- चौमासा – चार मासों का समूह
- नवरात्र – नौ रात्रियों का समूह
- शताब्दी – सौ अब्दो (वर्षों) का समूह
- अठन्नी – आठ आनों का समूह
- त्रयम्बकेश्वर – तीन लोकों का ईश्वर
- तिरंगा – तिन रंगों वाला
- दुबे – दो वेदों का समूह
- सप्तपदी – सात पदों का समूह
- द्वन्द्व समास
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है।
जैसे :-
- हरिहर – हरि और हर
- सीता – राम – सीता और राम
- शीतोष्ण – सहित या उष्ण
- राधा – कृष्ण – राधा और कृष्ण
- पाप – पुण्य – पाप और पुण्य
- पच्चीस – पाँच और बीस
- खरा – खोटा – खरा और खोटा
- ऊँच – नीच – ऊँच और नीच
- बहुव्रीहि समास
जिस समास के कोई भी पद प्रधान नहीं होता और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
इसमें विग्रह करने पर ‘वाला’, ‘जो’, ‘जिसका’, जिसकी’, जिसके आदि का प्रयोग किया जाता है
जैसे :-
- सुलोचना – सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
- सुग्रीव – वह जिसकी ग्रीवा सुन्दर है (वानरराज)
- श्वेतांबर – श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी
- विमल – मल से रहित है जो वह (स्वच्छ)
- लंबोदर – लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
- महावीर – महान है जो वीर वह (हनुमान)
- पीतांबर – पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
- नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
- दशानन – दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
- त्रिनेत्र – वह जिसके तीन नेत्र है (शिव)