विजय नगर साम्राज्य :
स्थापना-
काकतीय शासक प्रताप रुद्रदेव के सेवक दो भाईयों हरिहर एवं बुक्का ने 1336 ई० में विजय नगर साम्राज्य की स्थापना की।
विजय नगर की राजधानी हम्पी में थी।
विजय नगर पर क्रमश: संगम, सालुव, तुलुव एवं अरावीडु वंशों ने शासन किया।
संगम वंश
संगम वंश में हरिहर (1336-53 ई०), बुक्का (1353-79 ई०), हरिहर-II (1379-1404 ई०), देवराय-I (1404-19 ई०), देवराय-II (1429-49 ई०), मल्लिकार्जुन (1446-1466 ई०), विरुपाक्ष-II (1466-86 ई०) आदि शासक हुए।
बुक्का-I द्वारा वेदमार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की गई।
इटली के यात्री निकोलस कॉप्टी द्वारा देवराय-I के शासनकाल में विजय नगर की यात्रा की गई।
देवराय-III के शासन-काल में फारसी राजदूत अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर की यात्रा की। उसके अनुसार विजयनगर में 300 बंदरगाह थे।
देवराय-II को एक अभिलेख में जगबेटकर की उपाधि दी गई है, इसका अर्थ होता है हाथियों का शिकारी।
प्रौढ़ देवराय इस वंश के शासक मल्लिकार्जुन को कहा जाता था।
सालुव वंश
सालुव वंश (1485-1506 ई०) की स्थापना सालुव नरसिंह ने की।
तुलुव वंश
वीर नरसिंह ने विजयनगर में तुलुव वंश (1505-65 ई०) की स्थापना की।
8 अगस्त 1509 ई० को तुलुव वंश का महान शासक कृष्णदेवराय गद्दी पर बैठा।
पुर्तगाली यात्री डोमिगोस पायस ने कृष्णदेव राय के काल में विजयनगर की यात्रा की।
कृष्णदेव राय का काल तेलुगू साहित्य का स्वर्णकाल कहलाता है, इस काल में उसके दरबार में तेलुगू साहित्य 8 सर्वश्रेष्ठ कवि थे जिन्हें अष्टदिगगज कहा जाता था।
तेलुगू में अमुक्तमाल्याम एवं संस्कृति में जाम्बवती कल्याणम् की रचना कृष्णदेव राय ने की।
कृष्णदेव राय के दरबारी तेनालीराम ने पांडुरंग महात्म्यम् की रचना की।
हजारा एवं विट्ठल स्वामी मंदिरों का निर्माण कृष्णदेव राय ने करवाया।
आंध्रभोज, अभिनव भोज एवं आन्ध्र पितामह आदि उपाधियाँ कृष्णदेव राय ने धारण की।
राक्षसी-तंगड़ी या तालिकोटा या बन्नीहट्टी के 25 जनवरी 1565 ई० को हुए युद्ध में विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया।
तालिकोटा युद्ध में विजयनगर की ओर से राम राय ने हिस्सा लिया।
अरावीडु वंश
विजयनगर में चौथे राजवंश अरावीडु वंश (1570-1650 ई०) की स्थापना तिरुमल द्वारा सदाशिव को अपदस्थ करके की गयी।
अरावीडु वंश की राजधानी पेनुकोंडा में थी।
Important Facts
घटते क्रम में विजयनगर की प्रशासनिक इकाई इस प्रकार थी-मंडलम् (प्रांत)-कोट्टम (कमिश्नरी)-वलनाड (जिला) नोड. (मेलाग्राम-50 ग्रामों का एक समूह)-ऊर (ग्राम)
राज्य की आय का प्रमुख साधन भू-राजस्व था जो कुल उपज का 1/6 हिस्सा लिया जाता था।
दक्षिण भारत में बसे उत्तर-भारतीय लोगों को बडवा कहा जाता था।
मनुष्यों की खरीद-बिक्री को बेसवग कहते थे।
1354 ई० के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि विजयनगर में सती प्रथा प्रचलन में थी।
राज्य के नियंत्रण वाली भूमि को भंडारवादग्राम कहा जाता था।
कृष्णदेव राय को संत वायसराय भी कहा जाता है।
विजयनगर का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह गोवा था।
कृष्णदेवराय वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
कृष्णदेवराय के राजकवि अल्सानी पेद्वन को आंध्र-कविता का पितामह कहा गया।
प्रशासनिक व्यवस्था
नायंकर व्यवस्था – चोल युग एवं विजयनगर युग के राजतंत्रों में अंतर यही नायंकर व्यवस्था है।
नोयक – विजयनगर के सेनानायकों को नायक कहा जाता था। ये नायक वस्तुतः भू-सामंत थे । जिन्हें अपने अधीनस्थ एक सेना के रख-रखाव के लिए भूमि दी जाती थी।
अमरम – नायको को दिया गया भू-खंड। इसके कारण नायकों को अमरनायक भी कहा जाता था।
आयंगार व्यवस्था – प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रत्येक ग्राम को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में संगठित किया गया था। इन संगठित ग्रामीण इकाईयों के प्रशासन हेतु 12 प्रशासकीय अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी, जिन्हें वेतन के बदले लगान मुक्त एवं कर मुक्त जमीन दी जाती थी इस व्यवस्था को आयंगार व्यवस्था कहते था