मोपला विद्रोह

मोपला विद्रोह भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण घटना था जो 1921 में केरल के मोपला इलाके में हुआ था। यह मुस्लिम समुदाय की आवाज के रूप में उठा, जो अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ विरोध प्रकट करने के लिए आगे आया। इसने आर्थिक और सामाजिक असमानता के खिलाफ उत्पन्न हुई थी। इसे आधिकारिक रूप से दमन किया गया, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

 

मोपला विद्रोह | MOPLAH VIDROH |

मोपला मुसलमान कौन थे

मोपला मलयाली भाषाई मुसलमान थे जो उत्तरी केरल के मालाबार तट पर निवास करते थे।
1921 में मालाबार की एक मिलियन की आबादी में मोपला मुसलमानों की जनसंख्या 32% थी, जो दक्षिण मालाबार के क्षेत्र में रहते थे।

भारत में पुर्तगालियों का आगमन हुआ तो उनके आने के बाद मोपला मुसलमानों ने आर्थिक संभावना की तलाश के लिए भारत के आंतरिक हिस्सों में स्थानांतरण शुरू किया, जिससे उनकी अन्य धर्मो जैसे हिंदुओं के साथ धार्मिक टकराव शुरू हुए।

 

मोपला विद्रोह

अगस्त 1921 में हुए मोपला विद्रोह को 100 साल हो चुके हैं। यह विद्रोह दोबारा सुर्खियों में बना हुआ है क्योंकि इसके 100 वर्ष होने पर ये मुद्दा फिर गर्म हो चुका है कि ये एक राष्ट्रीय विद्रोह था या एक साम्प्रदायिक दंगा।

हाल ही में एक राजनीतिक व्यक्ति ने मोपला विद्रोह को भारत में तालिबान मानसिकता की पहली अभिव्यक्तियों में से एक कहा हैं।

मोपला विद्रोह कब शुरू हुआ था

जब देश मे महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चल रहा था, इसी समय केरल में भी राजनीतिक शक्ति के विरोध के नाम पर विद्रोह शुरू हुआ था।

परंतु कुछ ही समय बाद इसने साम्प्रदायिक रूप ले लिया। मोपला दंगा असहयोग आंदोलन और ख़िलाफ़त आंदोलन के समय ही हुआ था।

मोपला विद्रोह के कारण

इस क्षेत्र में अधिकांश जमीदार ब्राह्मण थे जबकि अधिकांश मजदूर या काश्तकार मोपला मुसलमान थे।

ये मोपला मुसलमान कट्टरपंथी मौलानाओं के संपर्क में थे। ये मौलाना उग्र भाषण द्वारा इन काश्तकार मुसलमानों को उग्र आंदोलन के लिए प्रोत्साहित करते थे। इन मुसलमान काश्तकारों ने ये विद्रोह जमीदारों के खिलाफ शुरू किया था। कुछ इतिहासकारो के अनुसार ये विद्रोह जमीदारों के खिलाफ़ काश्तकार कानूनों के खिलाफ थी।

 

मोपला विद्रोह साम्प्रदायिक दंगा

अनेक इतिहासकार मानते हैं कि मोपला विद्रोह राजनीतिक शक्ति के खिलाफ संघर्ष के रूप में शुरू हुआ था|बाद में इसने सांप्रदायिक दंगों का रंग ले लिया था।

दंगों में 10,000 से अधिक हिंदुओं की सामूहिक हत्या की गई थी । महिलाओं के साथ निर्मम बलात्कार किए गए, लगभग 300 मंदिरों का विध्वंस भी किया गया था या उन्हें क्षति पहुंचाई गई थी । इस विद्रोह में  हिन्दू जमीदारों के घरों में करोड़ों की लूट करके उनके घरों को जला दिया गया था।

आंदोलन के प्रारंभिक चरण में राष्ट्रवादी नेताओं ने इस विद्रोह को समर्थन दिया था परंतु जब इसने साम्प्रदायिक रंग ले लिया था तो उन्होंने इससे अपना समर्थन वापिस ले लिया था।

विद्रोह का अंत –

अंग्रेजो ने 1921 के अंत मे इस विद्रोह को कुचल दिया था। इस विद्रोह को रोकने के लिए अंग्रेजो ने एक बटालियन मालाबार सेशल फ़ोर्स का गठन किया था।

 

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