बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल की तराई में अवस्थित कपिलवस्तु राज्य में स्थित लुम्बिनी वन में 563 ई० पू० में हुआ था। इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। कपिलवस्तु शाक्य गणराज्य की राजधानी थी तथा गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोधन यहाँ के राजा थे।जन्म के सातवें दिन गौतम बुद्ध की माता महामाया का देहान्त हो गया।इनका पालन पोषण इनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया।सांसारिक दु:खों के प्रति चिंतनशील सिद्धार्थ को वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं लगा। गौतम सिद्धार्थ के मन में वैराग्य भाव को प्रबल करने वाली चार घटनायें अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।इन दृश्यों ने उनके सांसारिक वितृष्णा के भाव को और मजबूत कर दिया।बुद्ध के जीवन पर चार घटनाओं का प्रभाव पड़ा-वृद्ध व्यक्ति, बीमार व्यक्ति,मृत व्यक्ति, आनन्दमय सन्यासी।
बौद्ध धर्म का दर्शन
बौद्ध धर्म ने आत्मा की सत्ता को अस्वीकार कर दिया। इसके अनुसार हम जिस व्यक्ति को देखते है वह पाँच तत्वों से मिलकर बना होता है। बौद्ध धर्म कर्म व पूर्नजन्म में विश्वास करता है।
बौद्ध धर्म में चार आर्य सत्य होते है- 1. दुःख, 2. दुःख समुदाय, 3. दुःख निरोद्ध 4. दुःख निषेद्ध गामिनी प्रतिपदा
चार आर्य सत्य
1.दु:ख – संसार दुखों का घर है
2.दु:ख समुदाय – दुखों का मूल कारण अज्ञान व तृष्णा है
3.दु:ख निरोध – दुखों का निरोध संभव है तृष्णा व अज्ञान का विनाश ही दु:ख निरोध का मार्ग है
4.दु:ख निरोध मार्ग – तृष्णा का विनाश अष्टांगिक मार्ग द्वारा संभव है इसे दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपदा भी कहते है
दुख का निर्वाण अष्टागिंक मार्ग द्वारा संभव है। इसको तीन भागों में बांटा जाता है-
1.प्रज्ञा – इसमें सम्यक दृष्टि ,सकंल्प , वाक् आतें है।
2.शील – इसमें सम्यक कर्मान्त, व आजीविका आते है।
3.समाधी- इसमें सम्यक व्यायाम , स्मृति, व समाधी आते है।
बौद्ध धर्म के दर्शन को प्रतीत्यसमुत्पाद कहते है। बौद्ध दर्शन अनात्मवादी , अनिश्चयवादी कहलाता है।
बौद्ध दर्शन का प्रमुख सम्प्रदाय शुन्यवाद है। जिसे माध्यमिक वाद भी कहते है। यह महायान शाखा एक भाग माना जाता है। इसका सबसे बड़ा समर्थक नागार्जुन को मानते है।
बौद्ध संघ
- बौद्ध धर्म के त्रिरत्नों बुद्ध, धम्म और संघ में संघ का स्थान महत्वपूर्ण था।
- सारनाथ में मृगदाव में धर्म का उपदेश देने के पश्चात 5 शिष्यों के साथ बुद्ध ने संघ की स्थापना की।
- बौद्ध संघ का संगठन गणतांत्रिक आधार पर हुआ था।
- संघ में प्रविष्ट होने को उपसम्पदा कहा जाता था।
- भिक्षु लोग वर्षा काल को छोड़कर शेष समय धर्म का उपदेश देने के लिए भ्रमण करते रहते थे।
- संघ का द्वार सभी लोगों के लिए खुला था।
- जाति सम्बन्धी कोई प्रतिबन्ध नहीं थे। बाद में बुद्ध ने अल्पवयस्क,चोर, हत्यारों, ऋणी व्यक्तियों, राजा के सेवक, दास तथा रोगी व्यक्ति का संघ में प्रवेश वर्जित कर दिया।
- कठोर नियम का पालन करते हुए भिक्षु कासाय (गेरुआ) वस्त्र धारण करते थे।
- अपराधी भिक्षुओं को दण्ड देने का भी विधान था।
- संघ की कार्यवाही एक निश्चित विधान के आधार पर चलती थी। संघ की सभा में प्रस्ताव (नत्ति) का पाठ (अनुसावन) होता था।
- प्रस्ताव पर मतभेद होने की स्थिति में अलग अलग रंग की शलाका द्वारा लोग अपना मत पक्ष या विपक्ष में प्रस्तुत करते थे।
- सभा में बैठने की व्यवस्था करने वाला अधिकारी आसन प्रज्ञापक होता था।
- सभा के वैध कार्रवाई के लिए न्यूनतम उपस्थिति संख्या (कोरम) 20 थी।
बौद्ध संगीतियाँ
बौद्ध धर्म की कुल चार संगतियां आयोजित की गई है-
संगीतियाँ | शासक | अध्यक्ष | स्थान | विशेष |
प्रथम बौद्ध संगीति 483 ई.पू. | अजात शत्रु | महाकश्यप | सप्तपर्णी गुफा, बिहार (राजगृह) | बुद्ध के उपदेशों को विनय पिटक व सूत पिटक में संकलित किया |
द्वितीय बौद्ध संगीति 383 ई.पू. | कालाशोक | शाबकमीर | चुल्लवग (वैशाली) | इसमें भिक्षुसंघ दो भागों थेरवादी व महासंघिक में विभक्त हो गया |
तृतीय बौद्ध संगीति 250/251 ई.पू. | अशोक | मोग्गलिपुत तिस्स | पाटलीपुत्र | अभिधम्म पिटक की स्थापना एवं संघभेद को समाप्त करने के लिए कठोर नियम बनाए |
चतुर्थ बौद्ध संगीति प्रथम शताब्दी ई. | कनिष्क | अध्यक्ष – वसुमित्र उपाध्यक्ष – अश्वघोष | कुंडलवन, कश्मीर | बौद्ध धर्म हीनयान व महायान में विभक्त |
बौद्ध दार्शनिक व विद्वान
◆ अश्वघोष – बुद्ध चरित्र की रचना की।
◆ नागार्जुन – शुन्यवाद के प्रतिपादक ।
◆ बुद्धघोष – विशुद्धिमग्ग की रचना की। जिसे त्रिपिटक की कूंजी कहते है।
◆ दिग्गनाम- तर्कशास्त्र के प्रणेता मध्यकालिन न्याय के जनक कहलाते है।
◆ मैत्रैनाथ- विज्ञान वाद के जनक।
◆ धर्मकृति- ज्ञान मीमांसात्मक के प्रणेता। डॉ. स्टेचबातस्की ने इन्हे भारत का कांट कहा है।
महात्मा बुद्ध के प्रमुख शिष्य
- (1) आनन्द-यह महात्मा बुद्ध के चचेरे भाई थे।
- (2) सारिपुत्र-यह वैदिक धर्म के अनुयायी ब्राह्मण थे तथा महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व एवं लोकोपकारी धर्म से प्रभावित होकर बौद्ध भिक्षु हो गये थे।
- (3) मौद्गल्यायन-ये काशी के विद्वान थे तथा सारिपुत्र के साथ ही बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए थे।
- (4) उपालि
- (5) सुनीति
- (6) देवदत्त-यह बुद्ध के चचेरे भाई थे।
- (7) अनुरुद्ध-यह एक अति धनाढ्य व्यापारी का पुत्र था।
- (8) अनाथ पिण्डक-यह एक धनी व्यापारी था। इसने जेत कुमार से जेतवन खरीदकर बौद्ध संघ को समर्पित कर दिया था।
- बिम्बिसार और प्रसेनजित-ये क्रमशः मगध और कोशल के सम्राट थे। इन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में अत्यधिक सहयोग दिया।
बुद्ध के जीवन से जुड़े चार पशु
1.हाथी – बुद्ध के गर्भ में आने का प्रतीक
2.साँड – यौवन का प्रतीक
3.घोडा – गृह त्याग का प्रतीक
4.शेर – समृद्धि का प्रतीक
अन्य प्रतीक :-
1.जन्म – कमल व साँड
2.निर्वाण – बोधिवृक्ष
3.प्रथम उपदेश – धर्मचक्र
4.परिनिर्वाण – स्तूप
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न :- बुद्ध, धम्म, संघ
बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग:
(1) सम्यक दृष्टि – चार आर्य सत्यों की सही परख
(2) सम्यक् संकल्प – भौतिक वस्तु तथा दुर्भावना का त्याग
(3) सम्यक् वचन – सत्य बोलना
(4) सम्यक् कर्म – सत्य कर्म करना
(5) सम्यक् आजीव – ईमानदारी से आजीविका कमाना
(6) सम्यक् व्यायाम – शुद्ध विचार ग्रहण करना
(7) सम्यक् स्मृति – मन, वचन तथा कर्म की प्रत्येक क्रिया के प्रति सचेत रहना
(8) सम्यक् समाधि – चित्त की एकाग्रता
बौद्ध सम्प्रदाय:
हीनयान व महायान में अंतर
हीनयान | महायान |
1 सभी को अपनी मुक्ति का मार्ग स्वयं ढूँढना पड़ता है | यह गुणों के हस्तांतरण में विश्वास रखता है |
2 यह बौद्ध धर्म की एतिहासिक में विश्वास करता है | बोधिसत्व में विश्वास रखता है |
बोधिसत्व पद की प्राप्ति के लिए 9 चर्चाओं तथागत अनुशासनों का पालन बताया है | सभी लोगों को बुद्धत्व की प्राप्ति होने की बात कहीं है |
संसार को दुखमय माना है | आशावादी दृष्टिकोण रखता है |
स्वयं के प्रयत्नों पर बल देता है | बुद्ध के प्रति विश्वास तथा भक्ति पर बल देता है |
बौद्ध का साहित्य पालि भाषा में है | बौद्ध का साहित्य संस्कृत भाषा में है |
बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय
प्रथमबौद्ध संगीति में रुढ़िवादियों की प्रधानता थी, इन्हें स्थविर (रुढ़िवादी) कहा गया।
महासांघिक तथा थेरवाद
- द्वितीय बौद्ध संगीति में भिक्षुओं के दो गुटों में तीव्र मतभेद उभर पड़े।
- एक पूर्वी गुट जिसमें वैशाली तथा मगध के भिक्षु थे और दूसरा था पश्चिमी गुट जिसमें कौशाम्बी, पाठण और अवन्ती के भिक्षु थे।
- पूर्वी गुट के लोग जिन्होंने अनुशासन के दस नियमों को स्वीकार कर लिया था महासांघिक या अचारियावाद कहलाये तथा पश्चिमी लोग थेरवाद कहलाये।।
- महासांघिक या थेरवाद हीनयान से ही सम्बन्धित थे।
- थेरवाद का महत्वपूर्ण सम्प्रदाय सर्वास्तिवादियों का था, जिसकी स्थापना राहुलभद्र ने की थी।
- शुरू में इसका केंद्र मथुरा में था, वहाँ से यह गांधार तथा उसके पश्चात कश्मीर पहुँचा।।
- महासांघिक समुदाय दूसरी परिषद के समय बना था।
- इसकी स्थापना महाकस्सप ने की थी।
- शुरू में यह वैशाली में स्थित था, उसके पश्चात यह उत्तर भारत में फैला ।
- बाद में यह आन्ध्र प्रदेश में फैला जहाँ अमरावती और नागार्जुन कोंडा इसके प्रमुख केन्द्र थे।
- थेरवादियों के सिद्धान्त ग्रन्थ संस्कृत में हैं, किन्तु महासंघकों के ग्रन्थ प्राकृत में है।
- थेरवाद कालान्तर में महिशासकों एवं वज्जिपुत्तकों में विभाजित हो गया।
- महिशासकों के भी दो भाग हो गए- सर्वास्तिवादी एवं धर्मगुप्तिक।
- कात्यायनी नामक एक भिक्षु ने कश्मीर में सर्वास्तिवादियों के अभिधम्म का संग्रह किया एवं उसे आठ खण्डों में क्रमबद्ध किया।
हीनयान एवं महायान
- कनिष्क के समय चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म स्पष्टत: दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया : (1) हीनयान (2) महायान
हीनयान
- हीनयान ऐसे लोग जो बौद्ध धर्म के प्राचीन सिद्धान्तों को ज्यों का त्यों बनाये रखना चाहते थे तथा परिवर्तन के विरोधी थे हीनयानी कहलाये।
- हीनयान में बुद्ध को एक महापुरुष माना गया। हीनयान एक व्यक्तिवादी धर्म था, इसका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्रयत्नों से ही मोक्ष प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। |
- हीनयान मूर्तिपूजा एवं भक्ति में विश्वास नहीं करता।
- हीनयान भिक्षु जीवन का हिमायती है।
- हीनयान का आदर्श है अर्हत पद को प्राप्त करना या निर्वाण प्राप्त करना।
- परन्तु इनका मत है कि निर्वाण के पश्चात पुनर्जन्म नहीं होता।
(2) सौत्रान्तिक – यह सुत्त पिटक पर आधारित सम्प्रदाय है। इसमें ज्ञान के अनेक प्रमाण स्वीकार किये गये हैं। यह बाह्य वस्तु के साथ-साथ चित्र की भी सत्ता स्वीकार करता है। ज्ञान के भिन्न-भिन्न प्रमाण होते हैं।
महायान
- महायान सम्प्रदाय बुद्ध को देवता के रूप में स्वीकार करता है।
- महायान सिद्धान्तों के अनुसार बुद्ध मानव के दु:खत्राता के रूप में अवतार लेते रहे हैं।
- इनका अगला अवतार मैत्रेय के नाम से होगा।
- अतः इनकी तथा बोधिसत्वों की पूजा प्रारम्भ हो गयी।
- महायान सम्प्रदाय का प्राचीनतम ग्रन्थ ‘ललित विस्तार’ है।
- बोधिसत्व – निर्वाण प्राप्त करने वाले वे व्यक्ति, जो मुक्ति के बाद भी मानव जाति को उसके दुःखों से छुटकारा दिलाने के लिए प्रयत्नशील रहते थे, बोधिसत्व कहे गये। बोधिसत्व में करुणा तथा प्रज्ञा होती है।
- महायान में समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए परसेवा तथा परोपकार पर बल दिया गया।
- महायान मूर्तिपूजा तथा पुनर्जन्म में आस्था रखता है।
- महायान के सिद्धान्त सरल एवं सर्वसाधारण के लिए सुलभ हैं यह मुख्यत: गृहस्थ धर्म है।
महायान सम्प्रदाय के अन्तर्गत सम्प्रदाय
माध्यमिक (शून्यवाद)
- इस मत का प्रवर्तन नागार्जुन ने किया था। इनकी प्रसिद्ध रचना ‘माध्यमिककारिका’ है।
- यह मत सापेक्ष्यवाद भी कहलाता है।
- नागार्जुन, चन्द्रकीर्ति, शान्ति देव, आर्य देव, शान्ति रक्षित आदि इस सम्प्रदाय के प्रमुख भिक्षु थे।
- मैत्रेय या मैत्रेयनाथ ने इस सम्प्रदाय की स्थापना ईसा की तीसरी शताब्दी में की थी।
- इसका विकास असंग तथा वसुबन्धु ने किया था।
- यह मत चित्त या विज्ञान की ही एकमात्र सत्ता स्वीकार करता है जिससे इसे विज्ञानवाद कहा जाता है।
- चित्त या विज्ञान के अतिरिक्त संसार में किसी भी वस्तु को अस्तित्व नहीं है।
बज्रयान
- बज्रयान सम्प्रदाय का आविर्भाव हर्षोत्तर काल की बौद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी।
- बौद्ध धर्म के इस सम्प्रदाय में स्त्रोतों, स्तवों, अनेक मुद्राओं अर्थात स्थितियों, मंडलों अर्थात रहस्यमय रेखांकृतियों, क्रियाओं अर्थात अनुष्ठानों और संस्कारों तथा चर्याओं अर्थात ध्यान के अभ्यासों एवं व्रतों द्वारा इसे रहस्य का आवरण पहना दिया गया।
- जादू, टोना, झाड़-फूक, भूत-प्रेत और दानवों तथा देवताओं की पूजा ये सब बौद्ध धर्म के अंग बन गए।
बौद्ध धर्म की विशेषताएं और उसके प्रसार के कारण
- स्त्रियों को भी संघ में स्थान मिला। अतः इससे बौद्ध धर्म का प्रचार होने में मदद मिली।
- संघ के संगठित प्रयास से भी धर्म-प्रचार एवं प्रसार में सहयोग मिला।
- यह वेद को प्रमाण वाक्य नहीं माना। अत: बौद्ध धर्म में दार्शनिक वाद-विवाद की कठोरता नहीं थी।
- बौद्ध धर्म ने ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार कर दिया।
- बुद्ध के व्यक्तित्व एवं उनकी उपदेश पद्धति ने धर्मप्रचार में उन्हें बड़ी मदद दी।
- इसमें वर्णभेद के लिए कोई स्थान नहीं था, इसलिए इसे निम्न जाति के लोगों का विशेष समर्थन मिला।
- आम जनता की भाषा पालि ने भी बौद्ध धर्म के प्रसार में योग दिया।
बौद्ध धर्म के ह्रास के कारण
- भिक्षु धीरे-धीरे आम जनता के जीवन से कट गए। इन्होंने पालि भाषा को त्याग दिया तथा संस्कृत भाषा अपना लिया।
- ब्राह्मण धर्म की जिन बुराइयों का बौद्ध धर्म ने विरोध किया था अंतत: यह उन्हीं से ग्रस्त हो गया।
- बिहारों में स्त्रियों को रखे जाने के कारण उनका और नौतिक पतन हुआ।
- बिहारों में एकत्रित धन के कारण तुर्की हमलावर इन्हें ललचायी नजर से देखने लग गए तथा बौद्ध बिहार विशेष रूप से हमलों के शिकार हो गए।
- बारहवीं सदी तक यह धर्म बिहार और बंगाल में जीवित रहा, किन्तु उसके बाद यह देश से लुप्त हो गया।
- धीरे-धीरे बौद्ध बिहार विलासिता के केन्द्र बन गए। ईसा की पहली सदी से बौद्ध धर्म में मूर्तिपूजा की शुरुआत हुई तथा उन्हें भक्तों, राजाओं से विपुल दान मिलने लगे।
- कालान्तर में बिहार ऐसे दुराचार के केन्द्र बन गए | जिनका बुद्ध ने विरोध किया था। मांस, मदिरा, मैथुन, तंत्र, यंत्र आदि का समर्थन करने वाले इस नए मत को वज्रयान कहा गया।
- ईसा की बारहवीं सदी तक बौद्ध धर्म भारत में लुप्त हो चुका था।
- इस प्रकार बारहवीं सदी तक बौद्ध धर्म अपनी जन्म भूमि से लगभग लुप्तप्राय हो चला था।
बौद्ध धर्म का महत्व और प्रभाव
- शैक्षिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिला, बिहार में नालन्दा तथा विक्रमशिला और गुजरात में वल्लभी प्रमुख विद्या केन्द्र थे।
- भिक्षुओं के लिए निर्धारित आचार संहिता ईसा पूर्व छठीं सदी में उत्तर-पूर्वी भारत में प्रकट हुए मुद्रा प्रचलन, निजी सम्पत्ति, और विलासिता के प्रति आंशिक विद्रोह का परिचायक है।
- बौद्ध धर्म ने स्त्रियों एवं शूद्रों के लिए अपने द्वार खुले रखे। बौद्ध धर्म में दीक्षित होने पर उन्हें हीनताओं से मुक्ति मिल गयी थी अहिंसा पर बल देने से गोधन की वृद्धि हुई।
- बौद्ध धर्म ने धन संग्रह न करने का उपदेश दिया बुद्ध ने कहा था कि किसानों को बीज और अन्य सुविधायें मिलनी चाहिए, व्यापारी को धन मिलना चाहिए तथा मजदूर को मजदूरी मिलनी चाहिए इससे बुराइयों को दूर करने में मदद मिलेगी।
- बौद्ध धर्म ने अपने लेखन से पालि भाषा को समृद्ध किया। बौद्ध धर्म के आधार ग्रन्थ त्रिपिटक पालि भाषा में है ये हैं (1) सुत्त पिटक- बुद्ध के उपदेशों का संकलन (2) विनय पिटक-भिक्षु संघ के नियम (3) अभिधम्मपिटक–धम्म सम्बन्धी दार्शनिक विवेचन।।
- बौद्ध धर्म के प्रभाव में गुफा स्थापत्य की भी शुरुआत हुई।
- बौद्ध काल में कृषि, व्यापार, उद्योग-धन्धों में उन्नति के कारण कुलीन लोगों के पास अपार धन एकत्रित हो गया था फलत: समाज में बड़ी सामाजिक एवं आर्थिक असमानताएं पैदा हो गयी। थीं।
- बुद्ध सम्भवतः पहले मानव थे जिनकी मूर्ति बनाकर पूजा की गयी।
- चैत्य, स्तूप इत्यादि कलात्मक गतिविधियों के प्रमुख आयाम रहे ।
- गांधार कला में बौद्ध धर्म केन्द्रीय तत्व था।
- कला के विकास में बौद्ध धर्म ने अपना अमूल्य योगदान दिया।
- ईसा की पहली सदी से बुद्ध की मूर्ति बनाकर पूजा की जाने लगी।
बौद्ध साहित्य
बौद्ध साहिय पालि भाषा में लिखा गया है बौद्ध साहित्य में त्रिपिटक महत्वपूर्ण है –
1.सुत्तपिटक (धर्म-सिद्धांत) – बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और बुद्ध के उपदेशों का वर्णन, यह पाँच भागों में विभक्त है – दीर्घ निकाय, मज्झिम निकाय, संयुक्त निकाय, अंगुतर निकाय, खुद्दक निकाय
2.अभिधम्म पिटक (आचार नियम) – बौद्ध धर्म का आध्यात्मिक व दार्शनिक विवेचन, जिसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘कथा वत्थू’ है
3.विनय पिटक – भिक्षु-भिक्षुणीयों के संघ व उनके दैनिक जीवन आचरण संबंधी नियमों का वर्णन| इसके तीन भाग है – विभंग, खंदक, परिवार
4.ललित विस्तार – महायान सम्प्रदाय के इस ग्रंथ में महात्मा बुद्ध के जीवन का उल्लेख मिलता है
5.जातक कथाएं – पालि भाषा में रचित इन कथाओं में बुद्ध के पूर्वजन्म की कथाएं एवं बुद्ध कालीन धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक जीवन का वर्णन मिलता है
6.महाविभाष – संस्कृत भाषा में वसुमित्र द्वारा रचित बौद्ध ग्रंथ
7.दीपवंश – पालि भाषा में इस ग्रंथ की रचना श्रीलंका में की गई
8.महावंश – 5 वीं सदी में श्रीलंका में रचित इस ग्रंथ का लेखक महानाम था
9.दिव्यावदान – बौद्धसाहित्य के इस ग्रंथ में परवर्ती मौर्य शासकों एवं शुंगवंशी पुष्यमित्र शुंग का उल्लेख मिलता है
10.धम्मपद – इसे बौद्ध धर्म की गीता कहते है
धर्मचक्रप्रवर्तन
- गौतम बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया। इसे ही धम-चक्र-प्रवर्तन कहते हैं।
- यहीं सारनाथ में ही उन्होंने संघ की स्थापना भी की।
- बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश उरुवेला में छूटे हुए, जो इस समय गौतम बुद्ध से सारनाथ में मिले, पाँच ब्राह्मणों को दिया। यश नामक एक धनाढ्य श्रेष्ठी भी बौद्ध धर्म का अनुयायी बना।
- सारनाथ से गौतम काशी पहुँचे, वहाँ से राजगृह तथा कपिलवस्तु।
- गौतम बुद्ध लगातार चालीस साल तक घूमते रहे एवं उपदेश देते रहे।
- अपने जीवन के अंमित समय में पावा में बुद्ध ने चुन्द नामक सुनार के घर भोजन किया तथा उदर रोग से पीड़ित हुए।
- यहाँ से वे कुशीनगर (कसया गाँव, देवरिया जिला, पूर्वी उत्तर प्रदेश) आए जहाँ 80 वर्ष की आयु में 483 ई० पू० में उनका महापरिनिर्वाण हुआ।
दस शील
निर्वाण प्राप्ति के लिए सदाचार तथा नैतिक जीवन पर बुद्ध ने अत्यधिक बल दिया, ये दस शील हैं
(1) अहिंसा
(2) सत्य
(3) अस्तेय (चोरी न करना)
(4) धन संचय न करना
(5) व्यभिचार न करना
(6) असमय भोजन न करना
(7) सुखप्रद बिस्तर पर न सोना
(8) धन संचय न करना
(9) स्त्रियों का संसर्ग न करना
(10) मद्य का सेवन न करना।
कर्म
- बौद्ध धर्म-कर्म प्रधान धर्म है। जो मनुष्य सम्यक् कर्म करेगा वह निर्वाण का अधिकारी होगा।
प्रयोजनवाद
- महात्मा बुद्ध नितान्त प्रयोजनवादी थे। उन्होंने अपने को सांसारिक विषयों तक ही सीमित रखा। उन्होंने पुराने समय से चले आ रहे आत्मा और ब्रह्म सम्बन्धी वाद-विवाद में अपने को नहीं उलझाया।
अनीश्वरवाद
- बौद्ध धर्म निरीश्वरवादी है वह सृष्टि कर्ता ईश्वर को नहीं स्वीकार करता है। बौद्ध धर्म वेद को प्रमाण वाक्य एवं देव वाक्य नहीं मानता है।
अनात्मवाद
बौद्ध धर्म में आत्मा की परिकल्पना नहीं है। अनात्मवाद के सिद्धान्त के अन्तर्गत यह मान्यता है कि व्यक्ति में जो आत्मा है वह उसके अवसान के साथ ही समाप्त हो जाती है। आत्मा शाश्वत या चिरस्थायी नहीं है।
पुनर्जन्म का सिद्धान्त
- बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है । बौद्ध धर्म कर्म के फल में विश्वास करता है। अपने कर्मों के फल से ही मनुष्य अच्छा-बुरा जन्म पाता है।
प्रतीत्य समुत्पाद
- इसे कारणता का सिद्धान्त भी कहते हैं। प्रतीत्य (इसके होने से) समुत्पाद (यह उत्पन्न होता है)। अर्थात् जगत में सभी वस्तुओं का अथवा कार्य का कारण है। बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती।
निर्वाण
- मनुष्य के जीवन का चरम लक्ष्य है निर्वाण प्राप्ति । निर्वाण से तात्पर्य है जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाना। बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण इसी जन्म से प्राप्त हो सकता है किन्तु महापरिनिर्वाण मृत्यु के पश्चात ही सम्भव है।
QUICK REVISION
- बुद्ध के पंचशील सिद्धांत का वर्णन छान्दोग्य उपनिषद में मिलता है
बुद्ध के अस्थि अवशेषों पर भट्टी (दक्षिण भारत) में निर्मित प्राचीनतम स्तूप को महास्तूप की संज्ञा दि गई है - उरूवेला में पांच अन्य ब्राहमणों के साथ निरंजना नदी के किनारे तपस्या की। छः वर्ष पश्चात नृत्यकियों का गीत सुनकर मध्यम मार्ग की ओर प्रेरित हुए, व सुजाता के हाथों खीर खाकर ‘‘गया’’ में पीपल वृक्ष के नीचे साधनारत हो गये। यही वृक्ष बौधी वृक्ष कहलाता है।
- 29 वर्ष की आयु में घर छोड़कर सन्यासी बन गये। यह घटना महाभिनिष्क्रमण कहलाती है। घोड़े का नाम कांथक तथा सारथी का नाम चन्ना था।
आलारकालाम इनके प्रथम गुरू बने। उपनिषद्, सांख्य दर्शन का ज्ञान बुद्ध ने इन्ही से सीखा था। तत्पश्चात् उद्दक रामपुत्त से योग की शिक्षा ग्रहण की। - 35 वर्ष की आयु में बैशाख पूर्णिमा की रात को 49 दिनों की कठोर तपस्या के बाद ज्ञान की प्राप्ति हुई।
बुद्धि से ज्ञान प्राप्ति के कारण बुद्ध कहलाये तथा सत्य प्राप्त करने के कारण तथागत कहलाये व साक्यों के गुरू होने के कारण शाक्य मूनि कहलाये। - तपस्सु व मल्लि नामक दो बंजारो को सर्वप्रथम उपदेश दिये। तत्पश्चात् ऋषिपतन (सारनाथ) गये जहां कोण्डिन्य सहित पांचों ब्राहमणों (कोण्डिन्य, आंज, अस्साजि, वप्प, भद्धिय) को उपदेश देकर अपना शिष्य बनाया। यह घटना धर्म चक्र प्रवर्तन कहलाती है।
- बुद्ध के प्रथम धर्मोपदेश को बौद्ध साहित्य में ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ कहा जाता है
- बुद्ध ने जनसाधारण की भाषा ‘मागधी’ में अपने उपदेश दिए
- आनन्द व उपाली उनके प्रधान शिष्य थे
- तपस्सू और कलिक बुद्ध के प्रथम शूद्र अनुयायी थे
- महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़े 8 स्थान :- लुम्बिनी, गया, सारनाथ, कुशीनगर (कुशीनारा), श्रावस्ती, संकास्य, राजगृह, वैशाली| बौद्ध ग्रंथों में इन्हें ‘अष्टमहास्थान’ के नाम से जाना जाता है
- राजगृह में मगध नरेश बिबिसांर ने वेणुवन दान में दिया था। यही सारिपुत्र मौदग्लायन, उपालि शिष्य बने। कपिलवस्तु की यात्रा के दौरान आनन्द शिष्य बना।
- लिच्छवियों ने वैशाली में कुटाग्रशाला का निर्माण कराया तथा यही पहली बार आनन्द के कहने पर महिलाओं को संघ में प्रवेश दिया। प्रजापति गौतमी प्रथम व वैशाली नगर वधु आम्रपाली दुसरी शिष्य बनी।
- सारनाथ में बौद्ध संघ की स्थापना की। भिक्षु वर्षा काल को छोड़कर अन्य ऋतुओं में बौद्ध धर्म का प्रचार करते।
- बुद्ध सर्वाधिक वर्षा काल कौशल (21 वर्ष) व्यतीत किया तथा अन्तिम वर्षाकाल वैशाली में व्यतीत किया।
मल्ल की राजधानी पावा में चंद नामक लुहार के घर सुक्रमद्दव खाद्य पदार्थ खाने से रक्तातिसार हो गया तथा 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में इनकी मृत्यू हो गई। बुद्ध की मृत्यू को महापरिनिर्वाण कहते है। - बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया। जिन पर स्तूप बनाये गये।