दोहरी नागरिकता
प्रवासी भारतीय एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने के लिए दिसंबर 2003 में संसद के दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन विधेयक 2003 पारित किया गया|
नागरिकता संशोधन विधेयक 2003 द्वारा सिटीजनशिप एक्ट 1955 में मौजूद चार अनुसूचियों हटाकर 16 देशों स्विजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इजराइल, पुर्तगाल, फ्रांस, स्वीडन, न्यूजीलैंड, यूनान, साइप्रस, इटली, फिनलैंड, आयरलैंड, नीदरलैंड, ब्रिटेन एवं अमेरिका के प्रवासी भारतीयों के लिए दोहरी नागरिकता का प्रावधान किया गया|
प्रवासियों को दिए गए अधिकार – प्रभातियां को उनके अपने देश की नागरिकता की साथ-साथ भारत की नागरिकता भी उपलब्ध होगी जिसके तहत उनको निम्न अधिकार प्राप्त हैं
- सार्वजनिक नौकरियों के लिए संविधान के अनुच्छेद 16 में प्रदत अवसर की समानता का अधिकार भी प्रवासी भारतीयों को नहीं प्रदान किया गया है
- वर्ष 2006 में प्रवासी भारतीयों को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है
- भारत में कोई संवैधानिक पद इन्हें प्राप्त नहीं होगा
- प्रवासियों पर आरोपित प्रतिबंध – प्रवासी भारतीयों को निम्न अधिकारों से वंचित किया गया है
- ऐसी दोहरी नागरिकता प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों को भारत में आने जाने की स्वतंत्रता होगी
- उद्देश्य – भारत चीन के बाद दूसरा ऐसा देश है जिसके करोड़ों लोग विश्व के 110 देशों में बसे हुए हैं भारतीय प्रवासियों ने अमेरिका सहित तमाम देशों में शानदार आर्थिक तरक्की की है उनसे भारत में पूंजी निवेश करवाकर भारत के विदेशी मुद्रा कोष को समृद्ध बनाना एवं आर्थिक विकास को गति प्रदान करना ही का मूल उद्देश्य है
- इसके तहत इन्हें भारत में रहने, संपत्ति अर्जित करने एवं पूंजी निवेश करने का अधिकार होगा
नागरिकता संशोधन अध्यादेश 2005
केंद्र सरकार ने 28 जून 2005 को नागरिकता संशोधन अध्यादेश 2005 जारी किया गया जिसके प्रावधान निम्नलिखित है:
- उस जमीन से ताल्लुक रखते थे जो 15 अगस्त 1947 का हिस्सा बनी उनके नाबालिग बच्चे जिनकी राष्ट्रीयता ऐसे देश की है जो दोहरी नागरिकता की अनुमति देते हैं भारतीय नागरिकता के लिए पंजीकरण के योग्य है
- किसी भी राज्य की जनसंख्या को दो वर्गों में बांटा गया है वह है नागरिक एवं अन्य देशीय नागरिकों को सभी प्रकार के सिविल एवं राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं जबकि अन्य देशीयों को नहीं
- भारतीय मूल के वह लोग जो स्वयं या उनके माता-पिता, दादा दादी 20 जनवरी 1950 के बाद भारत से चले गए थे या 26 जनवरी 1950 को भारतीय नागरिक बनने के योग्य थे या
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2015
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने 6 जनवरी, 2015 से नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2015 को तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया था, जिसके तहत भारतीय नागरिक अधिनियम-1955 में निम्न संशोधन किए गए हैं।
- वर्तमान में भारतीय नागरिकता के लिए भारत में लगातार एक वर्ष तक रहना अनिवार्य है, लेकिन, अगर केन्द्र सरकार संतुष्ट है तो विशेष परिस्थितियों में इसमें छूट दी जा सकती है।
- इस प्रकार की विशेष परिस्थितियों के बारे में लिखित रिकॉर्ड दर्ज करने के बाद विशेष 12 माह के लिए छूट दी जा सकती है, जो अधिकतम 30 दिन के लिए अलग-अलग अंतराल के बाद दी जा सकती है।
- भारतीय नागरिकों केओ सी आई नाबालिग बच्चों का प्रवासी भारतीय नागरिक (ओ सी आई) के तौर पर पंजीकरण की शर्तों को उदार बनाया जाएगा।
- ऐसे नागरिकों के बच्चों या पोता-पोतियों अथवा पड़ पोता-पोतियों के लिए प्रवासी भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकरण का अधिकार होगा।
- धारा 7ए के तहत पंजीकृत प्रवासी भारतीय के पति या पत्नी या भारतीय नागरिक के पति या पत्नी के लिए प्रवासी भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकरण का अधिकार होगा और जिनकी शादी दो वर्ष की अवधि के लिए पंजीकृत या कायम रही हो, वे तुरंत ही इस धारा के तहत आवेदन कर सकते हैं।
- वर्तमान पी आई ओ कार्डधारकों के संबंध में केन्द्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित कर यह स्पष्ट कर सकती है कि किस दिनांक से सभी मौजूदा पी आई ओ कार्डधारकों को ओ सी आई कार्डधारकों के रूप में बदलने का निर्णय किया जाए।
- भूमि अधिग्रहण, कार्यमुक्ति, संकट, भारतीय नागरिकता की पहचान और अन्य संबंधित मुद्दों के लिए भारतीय नागरिकता अधिनियम-1955 है। इस अधिनियम के तहत जन्म, पीढ़ी, पंजीकरण, विशेष परिस्थितियों में स्थान का विलय या किसी स्थान में शामिल किये जाने के साथ ही नागरिकता समाप्त होने और संकट के समय में भी भारतीय नागरिकता प्रदान की जाती है।