क्या आप कोविड-19 के बारे में ये चौंकाने वाले तथ्य जानते हैं
जब दुनिया 2020 के आगमन पर जश्न की तैयारी में जुटी थी तब चीन के वुहान सेंट्रल हॉस्पीटल के आपातकालीन विभाग के डॉ. ली वेनलियांग को सात मरीज़ मिले. ये सबके सब फेफड़े की बीमारी न्यूमोनिया से पीड़ित थे. इन सबको क्वारंटीन किया गया.
30 दिसंबर को अपने सहकर्मियों के साथ प्राइवेट वीचैट मैसेजिंग ऐप पर डॉक्टर ली वेनलियांग ने आशंका जताई कि क्या सार्स (सीवर एक्यूट रिस्पेरटरी सिंड्रोम) का नया दौर आ चुका है?
इमेज स्रोत,GETTY IMAGESसार्स भी कोरोना वायरस का एक रूप है. पहली बार यह चीन में ही 2003 में सामने आया था. इसके बाद यह 26 देशों में फैला और इसकी चपेट में आठ हज़ार से ज़्यादा लोग आए थे.
हालांकि डॉ. ली ने जिस बीमारी की पहचान की थी, वह सार्स का दूसरा चरण नहीं था बल्कि कोविड-19 वायरस (सार्स-कोव-2) का पहला चरण था.
चीनी मीडिया के मुताबिक अपने सहकर्मियों के बीच इस बीमारी के फैलने की चेतावानी देने के तीन दिन बाद डॉ. ली को पुलिस ने आठ अन्य लोगों के साथ अफ़वाह फैलाने के आरोप में हिरासत में ले लिया.
काम पर लौटने के बाद डॉ. ली कोविड-19 से संक्रमित हो गए. महज 34 साल के डॉ. ली की मौत सात फरवरी को हो गई. परिवार में उनकी गर्भवती पत्नी और एक बेटा था.
कैसे हुई संक्रमण की शुरुआत
वुहान शहर के नए हिस्से में स्थित है हुआनान सीफूड मार्केट. छोटे छोटे दुकानदारों से भरा यह बाज़ार हर तरह के मांस, मछलियों के लिए एक तरह से हब है.
दिसंबर, 2019 के अंतिम सप्ताह में डॉक्टरों और नर्सों ने जब इस बीमारी के फैलने की चेतावनी देनी शुरू की तब स्वास्थ्यकर्मियों ने सबसे पहले कोरोना महामारी का इस बाज़ार से कनेक्शन देखा, ज़्यादातर संक्रमित मरीज़ हुआनान सीफूड मार्केट में काम करने वाले लोग थे. 31 दिसंबर को वुहान के स्वास्थ्य आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट बीजिंग प्रशासन को सौंपी. अगले दिन बाज़ार को क्वारंटीन कर दिया गया.
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वुहान में ही हुए मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, इंसानों में कोरोना वायरस का पहला मामला, सीफूड मार्केट में संक्रमण फैलने से चार सप्ताह पहले ही सामने आ चुका था. वुहान के एक बुज़ुर्ग आदमी में एक दिसंबर, 2019 को कोरोना वायरस के लक्षण मिला था और इस बुज़ुर्ग का सीफूड मार्केट से कोई लिंक भी नहीं निकला था.
जनवरी में वुहान के स्वास्थ्यकर्मियों ने देखा कि शहर के अस्पतालों में लगातार कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं. किसी ने भी इस वायरस के इतनी तेजी से फैलने का अनुमान नहीं जताया था. लेकिन यह महामारी चीन ही नहीं, बल्कि एशियाई महाद्वीप में तेजी से फैलने लगा था.
वुहान में कोविड-19 से मौत का पहला मामला 11 जनवरी, 2020 को सामने आया. इसके महज नौ दिन बाद कोरोना वायरस चीन से निकलकर जापान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड तक पहुंच गया था. दुनिया भर के चिकित्सीय और तकनीकी विकास को कोरोना वायरस ने पीछे छोड़ दिया था.
वायरस जानवरों से इंसानों तक कैसे पहुंचा और उसके बाद इतने बड़े पैमाने पर कैसे फैल गया, इसका पता लगाने की कोशिश यह लोग कर रहे थे.
वहीं दिसंबर में, अस्पताल में कोरोना वायरस के पहले मरीज़ के दाख़िल होने के कुछ ही घंटों के अंदर मरीज के स्वाब का विश्लेषण वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के वैज्ञानिकों ने शुरू कर दिया था.
बेहद कम समय में 10 जनवरी, 2020 को प्रोफेसर यंग जेन जैंग के नेतृत्व में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 का पहला जीनोमिक सीक्वेंस प्रकाशित कर दिया. यह कोरोना वायरस की पहेली को समझने के लिए पहला बेहद महत्वपूर्ण प्रयास था.
प्रोफेसर एंडरसन ने बताया, “जब हमने पहला सीक्वेंस देखा तभी हमें मालूम हो गया कि यह कोरोना वायरस का ही एक रूप है और सार्स से 80 प्रतिशत मिलता जुलता भी था.”
दरअसल, कोरोना वायरस, वायरसों का एक बड़ा परिवार है. इनमें सैकड़ों की पहचान हो चुकी है और यह सुअर, ऊंट, चमगादड़ और बिल्लियों में पाए जाते हैं. कोविड-19 कोरोना वायरस परिवार का सातवां प्रारूप है जो जानवरों से इंसानों तक पहुंचा है.
प्रोफेसर एंडरसन के मुताबिक कोरोना वायरस की उत्पति चमगादड़ों से हुई है. क्योंकि ऐसे कई वायरस चमगादड़ों में पाए जाते हैं. लेकिन यह यह इंसानें तक कैसे पहुंचा?”
एंडरसन की टीम ने चमगादड़ों में पाए जाने वाले दूसरे कोरोना वायरस का अध्ययन भी किया जो कोविड-19 से 96 प्रतिशत मिलता जुलता है. इन वैज्ञानिकों को कोविड-19 जैसी समानताएं पैंगोलिन में पाए जाने वाले कोरोना वायरस में भी मिली हैं. पैंगोलिन की एशिया में सबसे ज़्यादा तस्करी होती है.
दुनिया भर के साथ कोविड-19 का पहला जेनेटिक सीक्वेंस साझा करने के दो दिनों के भीतर स्थानीय अधिकारियों ने प्रोफेसर जैंग की लेबोरेटरी को बंद कर दिया और उनके रिसर्च लाइसेंस को रद्द कर दिया गया.
चीनी मीडिया के मुताबिक इसकी कोई आधिकारिक वजह नहीं बताई गई लेकिन प्रोफेसर जैंग की टीम के अध्ययन ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को रास्ता दिखा दिया था.
कोविड-19 की रोकथाम के लिहाज से दुनिया का सबसे कामयाब देश 5.1 करोड़ की आबादी वाला दक्षिण कोरिया साबित हुआ है. दक्षिण कोरिया ने अपने यहां संक्रमितों के संपर्क में आने वाले लोगों का पता लगाने के लिए एक छोटी सी सेना तैयार कर ली और यही उसकी कामयाबी की सबसे बड़ी वजह रही.
जनवरी और फरवरी में दक्षिण कोरिया में कोरोना संक्रमण के कुछ ही मामले सामने आए और संक्रमण फैलने के ख़तरे को यह देश टालने में कामयाब रहा. लेकिन फरवरी के अंत में महज कुछ ही दिनों के अंदर दक्षिण कोरिया के एक शहर में कोरोना संक्रमण के हज़ारों मामले सामने आ गए.
डायेगो शहर में कोरोना संक्रमण महज एक मरीज़ के मूवमेंटस से फैला. मरीज़ नंबर 31 के नाम से कुख्यात इस मरीज़ को दक्षिण कोरिया का सुपर स्प्रेडर कहा जाता है.
10 दिनों के भीतर में वह एक हज़ार से ज़्यादा लोगों के संपर्क में आई थीं. लेकिन हर शख़्स का पता लगाकर उन्हें सेल्फ़ आइसोलेशन में रखा गया. इससे ख़तरा ज़्यादा नहीं बढ़ा.
प्रोफेसर किम बताते हैं, “मरीज़ 31 ने हमें पहले नहीं बताया था कि वह शिनचेओनजी चर्च की सदस्य हैं. यह हमारी टीम ने बाद में पता लगाया.”
एक कांटैक्ट ट्रेसर ने पता लगाया कि कोविड-19 का टेस्ट कराने से दस दिन पहले तक, कोरोना के लक्षण होने के बाद भी वह डायेगो शहर में घूमती रहीं और इस दौरान एक हज़ार से ज़्यादा लोग उनके संपर्क में आए.
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प्रोफेसर योंग जेन जांग की टीम ने जनवरी महीने में जीनोम की खोज कर ली थी, इसके बाद दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के दस हज़ार से ज्यादा संक्रमितों के स्वाब का विश्लेषण किया और उसके नतीजे को जीआईएसएआईडी पर अपलोड किया.
हजारों बार कोविड-19 जीनोम का सीक्वेंसिंग करने के चलते वैज्ञानिक इसके जेनेटिक कोड में होने वाले बदलावों को पकड़ने में कामयाब हुए
न्यूयार्क के संक्रमित के लिए गए नमूने से पता चलता है कि उस सैंपल के वायरस में तीन बार बदलाव हुए हैं और वुहान में लिए अधिकांश सैंपल में वायरस के जीनोम में उन्हीं तीन बदलावों का पता चल| है संभव है कि इन सब संक्रमण का स्रोत एक ही रहा हो.
जनवरी के अंत में डॉ. हुडक्रॉफ्ट और नेक्स्टस्ट्रेन की टीम का ध्यान उन सैंपलों की ओर गया, जिनके जीनोम काफ़ी हद तक मिलते जुलते थे, इन जीनोम में होने वाले बदलाव भी एकसमान थे ये सैंपल दुनिया के आठ अलग अलग देशों- आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी, ब्रिटेन, अमरीका, चीन और नीदरलैंड्स से लिए गए थे. पहली नजर में इन सैंपलों की पड़ताल करने पर टीम को पता नहीं चला कि ये लाल रंग वाले सैंपल कहां से आए हैं.
हुडक्राफ्ट बताती हैं, “ये सैंपल एक तरह से एक ही पेड़ की शाखा लग रहे थे. यह अचरज में डालने वाला था क्योंकि जिन लोगों के सैंपल लिए गए थे, उनमें कोई समानता नहीं थी. तब हमें पता चला कि जिन ऑस्ट्रेलियाई लोगों के सैंपल लिए गए हैं, वे ईरान की यात्रा पर थे.”
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कोविड-19 के अध्ययन के लिहाज से जीनोम पर नजर रखना एक शक्तिशाली उपकरण साबित हुआ क्योंकि वायरस अपेक्षाकृत तेजी से बदल रहे थे. जीनोम के ट्रैक किए जाने से ही वैज्ञानिकों के लिए कुछ सैंपल के जरिए पूरे इलाके में संक्रमण फैलने की वजहों को समझना संभव हो पाया.
ईरान के सैंपल, एक ही परिवार की शाखाएं लग रही थीं. इन सैंपलों के जरिए नेक्स्टस्ट्रेन की टीम ने ना केवल यह पता लगा लिया है कि इन संक्रमणों का इकलौता स्रोत ईरान है बल्कि ईरान में भी यह किसी एक ही स्रोत से फैला है, इसका पता भी चल गया.
ईरान में ज़मीनी स्तर पर कांटैक्ट ट्रेस करने वालों ने पाया कि वहां संक्रमण पवित्र शहर क्यूम से फैला है. क्यूम में हर दिन हज़ारों धार्मिक पर्यटक पहुंच रहे थे और दो सप्ताह के भीतर कोरोना वायरस संक्रमण क्यूम से ईरान के प्रत्येक प्रांत तक पहुंच गया.
इटली में कोविड-19 से पहली मौत वेनेटो क्षेत्र के दूर दराज वाले छोटे से गांव ‘वो’ में हुई थी. करीब तीन हजार की आबादी वाला गांव ‘वो’ राष्ट्रीय पार्क इयूगेनियन हिल्स के तल में स्थित है और वेनिस से महज एक घंटे की दूरी पर स्थित है.
21 फरवरी को इस गांव में कोविड-19 से पहली मौत हुई और उसके बाद स्थानीय अधिकारियों ने पूरे गांव को सीमा बंद कर दिया. इसके बाद गांव के सभी नागरिकों के स्वाब की कई बार जांच की गई, भले उनमें कोरोना संक्रमण के कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे.
लावेज्जो के समूह ने सबसे पहले बिना लक्षण वाले मामलों की बड़ी समस्या को स्थापित किया. इसके बाद दूसरे अध्ययनों में भी करीब 70 प्रतिशत तक संक्रमितों में किसी तरह के लक्षण नहीं होने की बात स्थापित हुई.
3000 की आबादी वाले गांव के लोगों के टेस्ट से दूसरी अहम जानकारी भी हासिल हुई, वहां 10 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा कोविड-19 संक्रमित नहीं पाया गया था.
प्रोफेसर लावेज्जो ने बताया, “हम यह नहीं कह रहे हैं कि बच्चे संक्रमित नहीं हो सकते. दूसरे अध्ययनों में उनके संक्रमित होने की बात आई है. लेकिन तथ्य यह है कि उस गांव में कम से कम दर्जन भर बच्चे संक्रमित लोगों के साथ रह रहे थे लेकिन उनमें से कोई भी संक्रमित नहीं हुआ. यह विचित्र बात है और इसको लेकर अधिक जांच किए जाने की जरूरत है.”
वैज्ञानिकों के मुताबिक कोविड-19 वायरस केवल एक तरीके से ही मानव शरीर में प्रवेश करता है. यह मानव कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले विशेष रिसेप्टर्स एसीई-2 के संपर्क में आकर गठजोड़ बना लेता है. प्रोफेसर माइक फ़रज़ान की लैबोरेटरी ने सार्स संक्रमण के दौरान 2003 में सबसे पहले एसीई-2 रिसेप्टर का पता लगया था.
माइक बताते हैं कि मुश्किल यह है कि एसीई-2 का अस्तित्व पूरे शरीर में होता है, आपके नाक, फेफड़े, आंत, हृदय, किडनी और दिमाग़ सब जगह एसीई-2 मौजूद है. एसीई-2 की इतनी जगह मौजूदगी के चलते ही कोविड-19 संक्रमण के लक्षणों में इतनी भिन्नताएं हैं. अगर संक्रमण नाक में हुआ तो आपके गंध पहचाने की क्षमता पर असर होगा और अगर संक्रमण फेफड़ों में हुआ तो खांसी होगी.
पाओलो यूनिवर्सिटी के मेडिकल डायरेक्टर प्रोफेसर जॉर्ज कलिल ने कहा, “हम जितनी जल्दी कर सकते हैं, उतनी तेजी दिखानी होगी. मुझे नहीं लगता है कि सबसे पहले वैक्सीन विकसित करने वाला विनर होगा. क्योंकि यह कार रेस नहीं है. सबसे बेहतर वैक्सीन विनर होगी, जो अधिकांश लोगों को- आदर्श स्थिति में 90 प्रतिशत लोगों को कोविड-19 के लक्षण और संक्रमण की चपेट में आने से बचाएगी.”
कलिल के मुताबिक वास्तविक तौर पर महामारी ख़त्म करने के लिए बुज़ुर्गों और कमतर स्वस्थ्य लोगों के लिए कारगर वैक्सीन विकसित करने की ज़रूरत है. उनके मुताबिक इन लोगों के शरीर में एंटीबॉडी विकसित होने में मुश्किल होती है.
कोविड-19 वायरस को लेकर एक बड़ी समस्या अभी तक बनी हुई है
उनके मुताबिक कोविड-19 संक्रमण के अगले हमले को रोकने के लिए सभी देशों में एक साथ ही वैक्सीन की उपलब्धता को सुनिश्चित करना होगा.