भारतीय संविधान में उल्लिखित पाँच न्यायिक रिट

भारतीय संविधान में उल्लिखित पाँच न्यायिक रिट

 

भारतीय संविधान में उल्लिखित ये पाँच न्यायिक रिट इस प्रकार हैं – बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण |

इन रिटों को उच्च न्यायालय भी संविधान के अनुच्छेद-226 के अन्तर्गत निकाल सकता है |

बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)

इंग्लैंड में इसे हैबियस कार्पस कहते हैं जिसका शाब्दिक अर्थ होता है शरीर लेकर आओ |

इस रिट के द्वारा न्यायालय बंदी बनाये गये किसी व्यक्ति को अपने समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है |

जिससे व्यक्ति को बंदी बनाये जाने के कारणों का परीक्षण किया जा सके |

इस प्रकार यह रिट नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रति महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है |

परमादेश (Mandamus)

इंग्लैंड में इस रिट को मेंडमस नाम से जाता है जिसका अर्थ है समादेश या आदेश |

यह एक उच्च आदेश है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति, निगम, कनिष्ठ न्यायालय, सरकार या किसी लोक प्राधिकारी को रिट में विनिर्दिष्ट किसी कार्य को कराने हेतु निदेश दिया जाता है, ताकि मूल अधिकारों को सुरक्षित रखा जा सके | सामान्यतः न्यायालय परमादेश देता है तो मामला अंतिम रूप से समाप्त हो जाता है |

परन्तु उच्चतम न्यायालय ने एक नया उपकरण निरन्तर परमादेश का आविष्कार किया है |

न्यायालय इसका उपयोग वहाँ करता है जहाँ यह प्रतीत होता है कि किसी विषय को लगातार निगरानी या दृष्टि में रखना आवश्यक है और एक आदेश से न्याय नहीं हो सकेगा |

 

अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)

लोक पद अथवा उससे जुड़े हुए व्यक्तियों के अधिकारों व शक्तियों का परीक्षण को वारंटो रिट के माध्यम से होता है |

इस रिट द्वारा न्यायालय किसी लोक अधिकारी से यह पूछ सकता है कि वह किस अधिकार से उक्त कार्य को कर रहा है तथा अनुचित होने पर उक्त कार्य को करने से रोका जा सकता है |

प्रतिषेध (Prohibition)

प्रतिषेध की रिट किसी वरिष्ठ न्यायालय द्वारा किसी कनिष्ठ न्यायालय या अर्धन्यायिक अधिकरणों को जारी की जाती है जिससे वह ऐसी अधिकारिता का प्रयोग न करे जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो |

यह कनिष्ठ न्यायालय या अधिकरण को उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर कार्य करने से रोकती है |

उत्प्रेषण (Certiorari)

प्रतिषेध तथा उत्प्रेक्षण दोनों ही समान कारणों पर जारी की जाती हैं, परन्तु दोनों में एक मुख्य अन्तर यह है कि प्रतिषेध की रिट तब जारी होती है जब निर्णय न दिया गया हो और उत्प्रेक्षण की रिट तब जारी होती है जब निर्णय दे दिया गया हो, जो उच्च या उच्चतम न्यायालय के अधिकार का उल्लंघन हो |

उत्प्रेक्षण ऐसे प्राधिकारी के विरुद्ध भी जारी हो सकता है जो अधिकारिता के भीतर कार्य कर रहा है किन्तु जिसने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध कार्य किया हो |

 

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